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- कृष्ण की चेतावनी/रामधारी सिंह दिनकर
- सामने का वह सब/विनय दुबे
- हे भारत के राम जगो मैं तुम्हें जगाने आया हूँ / आशुतोष राणा
- हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए/दुष्यंत कुमार
- हम कौन थे! क्या हो गये हैं/मैथलीशरण गुप्त
- मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको/अदम गोंडवी
- मधुशाला/हरिवंशराय बच्चन
21 टिप्पणियाँ
जल
जवाब देंहटाएंजल कहता
इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता मुझे
प्यास लगने पर तभी तो
खोजने लगता है मुझे ।
बादलों से छनकर
जब बरस जाता
सहेजना ना जानता
इंसान इसलिए तरस जाता ।
ये माहौल देख के
नदियाँ रुदन करने लगती
उसका पानी आँसुओं के रूप में
इंसानों की आंखों में भरने लगी ।
कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ
जल है तो कल है
जल ही जीवन है
ये बातें इंसानो को कहाँ से
समझाओ ।
अब इंसानो करना
इतनी मेहरबानी
जल सेवा कर
बन जाना तुम दानी ।
संजय वर्मा "दृष्टि
125 , बलिदानी भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार (म. प्र )
अमृत सम्मान।
जवाब देंहटाएंमनुष्य जल के बिना नहीं रह सकता,
ये हमारे जीवन का एहम हिस्सा।
हमारा शरीर भी अधिकतर जल से ही बना,
जल हमारे भीतर जान डाल देता।
जल हमें प्रकृति बिना किसी शुल्क के देती,
लेकिन हम मनुष्य उसे प्रदुषित कर,
उपयोग के लिए भी उचित नहीं रहने देते।
आज पीने योग्य जल बहुत कम रह गया,
अगर सदुपयोग न किया,
तो निकट भविष्य जलविहीन होगा।
कुछ विशेषज्ञों की राय,
शायद तीसरा विश्व युद्ध,
जल को प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा के लिए हो।
इसीलिए सारे विश्व को सोचना होगा,
समुद्रजल को पीने लायक बनाना होगा,
और ये तकनीक सबको मुहैया करवानी होगी।
अनिल कुमार जसवाल,
राम निवास गगरेट,
जिला ऊना,
हिमाचल प्रदेश।
जल
जवाब देंहटाएंसूख गया आँखों का जल
नदिया में भी नीर कहाँ।
छूकर सलिल पवन बहता था
उसमें भी वह बात कहाँ।
सूखा जलद चला आता है
घन घोर घटा को साथ लिए।
नहीं बूँद जल की है उसमें
और निराशा साथ लिए।
प्यासी धरा तरसती देखो
ऑंखें नभ ओर टिकी हुई।
मेघ व्योम से जल बरसेगा
आस बूँद पर टिकी हुई।
जलद नीर संग आकर नभ में
बूँद बूँद जब बरसेंगे।
धरा हरित फिर से होजाये
नहीं प्यास जल तरसेंगे।
नयन सलिल से पूरित हो कर
प्रेम प्रीति से भर जाएं।
जल पूरित हो जलद प्यार से
जल भूमि पर बरसायें।
विषय- जल
जवाब देंहटाएंशीर्षक- पानी हूं मैं...
पानी बनकर जन्मा, जीवन का स्वरूप हूं मैं...
अम्बर के आंशू, धरा का गुरुर हूं मैं...
माता का काया, गंगा की छाया हूं मैं...
वरदान समझे जो, अनमोल माया हूं मैं...
जननी बन जन्म लिया, उनकी पालनहार हूं मैं...
व्यर्थ न समझो मुझको, पानी हूं मैं...
मुखाग्नि बुझा दे, ऐसी काया हूं मैं..
द्वेष भाव सब सम्मलित कर लूं, ऐसी अविरल धारा हूं मैं...
कुलों की लाज बचा, जीवन उद्धार लगाता हूं मैं...
श्राप बन, जीवन संहार करता हूं मैं...
सुख दुःख का साथी, हर बात का साक्षी हूं मैं...
व्यर्थ न समझो मुझको, पानी हूं मैं...
हर रूप दिखाऊँ, हर रिश्ता निभाऊं, हर सांचे में ढल जाऊं मैं...
न रूकूं मैं, न थकूं मैं, हर रास्ते में बढ़ता जाऊं मैं...
जग में जीवन मिला, इसका सम्मान बढ़ाऊं मैं...
पानी का क्या मोल, हर एक को समझाता जाऊं मैं...
पानी हूं मैं...पानी हूं मैं...हर एक कर्तव्य निभाऊं मैं...
व्यर्थ न समझो मुझको, पानी हूं मैं...
जय अग्निहोत्री 'यथार्थ'
कानपुर (उ०प्र०)
हिन्दी काव्य कोश
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
विषय - जल,विधा- कविता
*************************
जल से जीवन,जल बिन मृत्यु,
जल ही जीवन का आधार है।
जल से आस,जल से श्वास,
जल बिन सृष्टि निराधार है।।
वन-उपवन,पर्यावरण उल्लासित,
फल-फूल,साग-सब्जी,अनाज्य।
खेती-किसानी,फसल-सिंचाई में,
जल का फैला सर्वत्र सम्राज्य।।
पचि-पचि मरै जीव ए जल बिन,
जल तो कोयल कूक श्रृंगार है।
जल ही जीवन का आधार है।1।
अली,कली,गुंजार,सुहासित,
जल में मगर उमंगित उमदा।
ताल-तलैया,सरिता-सागर सब,
विटप,विहंग,मीन करे सजदा।।
जल है तो ही कल है सबका,
जल से धरा पर बसंत बहार है।
जल ही जीवन का आधार है।2
जल से हवा,जल है तो दवा है,
जल बिन सृष्टि न चल पाए।
शस्य श्यामला वसुधा जल से,
उर विकार भी जल ही मिटाएं।।
जल का बल असीमित है जानो,
जल निर्मल जीवन संचार है।
जल ही जीवन का आधार है।3।
जल से गैया,जल से मैया
जवान,किसान धन-धान्य,पावन।
मेघ-गगन में जल है समाया,
जल सावन सुहावन मनभावन।।
निश-दिन कमल-नयन जल भीगे,
गंग,जमुन नद,जग में जलधार है।
जल ही जीवन का आधार है।4।
स्वरचित मौलिक कविता रचना
रचनाकार- आचार्य कमलेन्द्र
नारायण चौबे
मुन्नू खेड़ा,पारा,जनपद-लखनऊ राज्य-उ0प्र0,9682879902
हिन्दी काव्य कोश, सादर नमन
**************************
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_काव्य_कोश
#tmkosh
#साप्ताहिक_काव्य_प्रतियोगिता
विषय: जल
दिनांक: ०६.०९.२०२३
आरंभ सृष्टि का तो अंत भी है जल,
जल से ही जीवन है,जीवन है जल।
ना रंग ना रूप पर गुणों से भरपूर,
बहे ऊपर से नीचे,नहीं कोई गुरूर।
घुलना मिलना है इसका स्वभाव,
रहे जहां स्वीकारे वैसा ही भाव।
बहे निर्मल सरल निष्कपट निष्पाप,
स्थितिवश कभी हिम तो कभी वाष्प।
शीतलता देती है इसकी शीतल प्रकृति,
इसके अनुचित लाभ की बढ़ रही प्रवृत्ति।
पंचतत्वों में से एक बड़ा अनमोल है जल,
दोहन इसका करे विकृत आने वाला कल।
उपकरण प्रकृति-श्रंगार का विशेष है ये जल,
रक्षा को संकल्पित हो इसकी रक्षित हों स्वयं।
👆स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा,सीमा अग्रवाल
गोमतीनगर, लखनऊ
उत्तर प्रदेश -२२६०१०
योगेन्द्र 'योगी' ( जल )
जवाब देंहटाएंपो० अतरौली जि० अलीगढ़ यू पी 202280
हिन्दी काव्य कोश
विधा- कविता
विषय- जल ।।
जल जीवन न व्यर्थ बहाओ,
समझो औरों को समझाओ।
कल की चिंता करो कराओ,
समझो औरों को समझाओ।।
जल न कल कल, मन न हलचल,
कैसे होगा जीवन उज्जवल।
है सम्मिलित ये पंच तत्व में,
ये हरा भरा न होगा भूतल।
हर मन इसकी अलख जगाओ,
समझो औरों को समझाओ।1
हर जीवन इस पर ही निर्भर,
बिन इसके वन उपवन निर्झर।
प्रकृति को भी महत्वपूर्ण अति,
काया माया सब कुछ जर जर।
शीध्र चेतना जन मन लाओ,
समझो औरों को समझाओ।2
महत्वहीन नदियां हो जायें,
न जल जीव जीवित रह पायें।
सागर सूखा किसे निहारे,
न नारायण जलविहार कर पायें।
कैसे जल क्रीड़ा कर पाओ,
समझो औरों को समझाओ।3
मानसून कैसे आयेंगे,
नाच मयूरा न पायेंगे।
नृत्य काल का 'योगी' होगा,
क्या खायेंगे क्या पियेंगे।
जन मन ज्योति दिव्य जलाओ,
समझो औरों को समझाओ।4
रचनाकार का नाम-- योगेन्द्र 'योगी'
कला भवन, छिपैटी, अतरौली,
जि० अलीगढ़ (यूं पी ) 202280
मो० न० 9412594057
विषय :-जल
जवाब देंहटाएंपानी वारि नीर अंबु पय है
हर नाम पर यह विजय है
पंचतत्व में यह अनमोल है
रंग रुप नही पर बेजोड़ है
जल है तो कल है
जल बिन जीवन विफल है
जल बिन न हलचल है
जीवन भी न उज्जवल है
जल में मधुर कलकल है
अग्नि दमन दमकल है
जल पर कृषक आस है
लहराये फसल विश्वास है
जल जीवन जीवन जल है
कर नदोहन विकृत कल है
जलसे भाप भाप सेजल है
भाप से चले रेल पलपल है
जल से भूमि बसंत बहार है
जल ही जीवन काआधार है
तर गला धरा जल से है
सर गर्व गंगा जल से है
स्वरचित एवं मौलिक
मंजु तिवारी दीवान
बिलासपुर छत्तीसगढ़
जल ही जीवन है
जवाब देंहटाएंजल बिन जग सूना
खेत खलिहान सूना
घर आँगन सूना
वृक्ष-लता सूना
जल है इनका जीवन आधार
कोई कैसे करे इनका तिरस्कार
कोई कैसे करे इनसे शत्रुता -सा व्यवहार!
जल है तो अस्तित्व हमारी है
जल है तो जीवन प्यारी है
जल है तो हरियाली है
जल है तो जिंदगी में खुशहाली है !
बेकार मत बहाओ जल
घर-घर की टंकी से मत गिराओ जल
बूंद-बूंद बचाओ जल
हर बूंद की कीमत है न्यारी
जल है ही इतनी प्यारी
जल है जीवन हमारी
दिनचर्या की है साथी हमारी
मानो तो यह बहता सोना है
इसे किसी हाल में नहीं खोना है
भविष्य के लिए इसे संजोना है !!
स्वरचित
डॉ अंजना वर्मा
पटना ,बिहार
विषय: जल
जवाब देंहटाएंजल ही जीवन है सृजनता का आधार
पर्यावरण अमूल्य निधि जल ही पालनहार
विधाता की अनुपम देन इसका कोई ना पारावार
धरा की प्यास बुझाता बिन इसके अधूरा जग संसार
अलंकृत करता वसुंधरा को गाए राग मल्हार
इंसा का सच्चा साथी गंधरहित, निराकार
नगरीकरण ,औद्योगिकरण बड़ा रहा प्रदूषण
जनसंख्या वृद्धि एक विकराल भूषण
भूमंडलीय उष्मीकरण बन गया श्राप
अलवणीय जल को लगा अभिशाप
जागो मानव बूंद -बूंद कीमत पहचानो अमृत है इस सत्य को मानो
मत करो जल से खिलवाड़
नहीं बचेगा भविष्य के लिए
फिर पछताओगे रोओगे ज़ार -ज़ार
आदत सुधारो वरना प्रकृति करेगी अत्याचार
संरक्षण करो मनोभाव धरो बनाओ सुंदर कल
अद्भुत संसाधन है इस पर गौर करो खुशहाली का प्रतीक है जल!!!
प्रीति कपूर
शालीमार बाग ,दिल्ली
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
#हिन्दी _काव्य _कोश
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
दिनांक- 8/9/2023
विषय - जल
जल ही जीवन जीवन ही जल है।
जल की काया जल मे विलीन है।
जल बिन सूना सब निरर्थक है।
बूंद बूंद जल से जीवन सार्थक है।।
वारिस घनघोर घटा बन छाता है।
अंतस ईहा उत्साहित हो जाती है।
अंबर जब अमृत रस बरसाता है।
शुष्क नयन से जल सरसाता है।।
वसुधा,निर्झर पाते जीवन जल है।
पशु-पक्षी,पेड़-पौधे जीवन जल है।
व्यर्थ बहता मानव अमुल्य जल है।
जल को न जाने सब जलमग्न है ।।
उर्मिला पुरोहित
उदयपुर, राजस्थान
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_काव्य_कोश
#tmkosh
रचना विषय- जल
नीर हूँ मैं, मेरी अनुभूति हैं शीतल-शीतल।
जैसे जिसको मेरा आभास हैं निर्मल-निर्मल।
जीवनी हैं मेरी विकराल और नीरस भी।
मैं कहीं हूँ ज्वलंत भी कहीं कोमल-कोमल।
माँ धरा की विशाल गोद में हिलकोरें लिए।
मेरा अम्बर पुकारता मुझे बादल! बादल!
कोई सागर, कोई सरिता, हैं कोई जीव-जन्तु।
कोई झरना हो सुनाई न दे जल की कल-कल।
रेत ही रेत हैं जिस खण्ड में जलकण ही नहीं।
मृगमारीचिका की दृष्टि में मैं हूँ छल- छल।
कोई चातक से जा कर पूछिए जल की उपमा।
प्रतीक्षा करते हैं स्वाति नक्षत्र का पल-पल।
एक विरहन के लिए हूँ प्रचण्ड सा सावन।
प्रेम परिणय पियूष स्रोत में हूँ मधु फल-फल।
कौन सा रंग मेरा, रस की क्या अनुभूति मेरी।
रंग सकता है मुझे तू जहां चाहे नल-नल।
तेरे नयनों से छलक जाता हूँ मैं सुख-दु:ख में।
और जीवन की प्यास तृप्त करूं हूँ जल-जल।
संवेदिता
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
यह रचना पूर्णतया मौलिक एवं स्वरचित है 🙏
जल
जवाब देंहटाएं****
जल ही जीवन है।
जल बिन सब सून है जल जल कलपता है संसार।
यूं तो चारों तरफ हमारे पानी की भरमार, पर शुद्ध जल ही चाहिए और सिर्फ इसकी है दरकार।
जल में हमने खुद ही मिलाया और की है प्रदूषण की भरमार। कूड़ा ,करकट कचरा, डालें हमने नदी नालों की धारा में, और पूछ रहे हैं किसने तुमको गंदा किया है? गंगा जमुना के कुल किनारों से ।अब भी समय है मान जाओ
हे मानव इतना
भी मदहोश न हो। जीवन दाता जल को जीवनदाता ही रहने
दो ।रोक दो जहर घोलना इसमें।
बिष न इसे बनने
दो।
वरना फैल जाएगा,
एक दिन इसका जहर
बूंद बूंद से बरस बरस कर फैल जाएगा सर्वत्र कहर।
मधु खोवाला
स्वरचित
पटना,बिहार
#हिन्दी-काव्य_कोश_साप्ताहिक_काव्य_प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएंनमन मंच
विषय- जल
दिनांक -7-9- 23
काव्य कोश के मंच पर , भइ कवियों की भीर ।
चर्चा मिलजुल सब करें, विषय होत गंभीर।।
कीमत समझो नीर की,फेंको नहीं फिजूल।
जब होती जल की कमी, जाये मस्ती भूल ।।
पेड़ लगाओ धरा पर, हरा -भरा जग होय।
पर्यावरण सुरक्षित हो, जल- स्तर ऊपर होय।।
नीर को यूँ न फेंकना, जल से जीवन होय।
जल बिन इस संसार में, जीवित बचे न कोय।।
पानी पानी सब करै ,नहीं बचाए कोय।
जौ पानी की कदर करै,प्यासा मरै न कोय।
जल बिन जीवन भी नहीं,बात समझ में आय।
वारि फिजूल न खर्चिए, रखिए इसे बचाय।
बबली विनती कर रही, हाथ जोड़ कर आज।
जल को आप बचाइए , जल बचाए समाज।।
आराधना शुक्ला "बबली "
अयोध्या ,उत्तर -प्रदेश
स्वरचित ,मौलिक
👍
हटाएंश्रीमती करुणा दुबे
जवाब देंहटाएं" कीर्ति श्री "
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
******************
#नमन-हिन्दी काव्य कोष मंच
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
#विषय--जल।
#दिनांक-08/09/2023
###############
जल की नन्ही बूंदों ने हैं करतब दिखाया,
जल की नन्ही बूंदों में हैं जीवन समाया।
यूँ व्यर्थ न बहाओ,जल की कीमत पहचानो,
सच कहते हैं-
" बूंद-बूंद से घट हैं भराया"।।
(1)
सूरज की प्रखर किरण हैं धरती को तपाती।
व्याकुल धरा की तब तो,
छाती ही फट जाती।।
तकते हैं आँसमा को
व्याकुल धरा के प्राणी।
तड़पे हैं जीव- जन्तु
चाहत गिर जाये पानी।।
झरती घटा से बूंदें,
मोती का हार बनाया ।
सौंधी माटी खुशबू का,
तब ही जादू छाया ।।
जल की नन्ही बूंदों ने------
(2)
जल, नीर, वारि, तोय कहे,
अंबु या कहें पानी।
पंच तत्व में समाहित,
जीवन की हैं निशानी ।।
खेतों में लहलहा उठे,
फसलें कई सुहानी ।
झरना, नदी, तलाबों,
पोखर, कुआँ की कहानी ।।
सूखे पड़े रहे नहीं,
इन में बचाओं पानी।
"रहिमन" कवि बखाने-
" सब सून बिन हैं पानी ।।
जल की नन्ही बूंदों ने----'
(3)
दूषित न हो जल देखो,
पर्यावरण बचाओ।
दोहन करो न भूमि जल,
पेड़- पौधों को लगाओ।।
जल हैं तो कल हैं अपना ,
बच्चों को भी सिखाओ।
पर प्यासे पंथी- पंछी को,
शुद्ध जल जरुर पिलाओ।।
"जल का दान, महाकल्याण",
पितृ तर्पण में देते पानी।
संताप न दो किसी को इतना,
आँखों से बह जाये पानी।।
जल की नन्ही बूंदों ने----'
जल की नन्ही बूंदों में----
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
द्वारा---श्रीमती करुणा दुबे
"कीर्ति श्री "
जबलपुर
मध्य प्रदेश ।।
👍
हटाएं
जवाब देंहटाएंहिंदी_काव्य_कोश#tmkosh
विषय-"जल"
***********
जल जीवन का तन, मन, धन।
इस जल को हम करें नमन।।
जल तो जीवन का आधार।
जीवन को देता आकार।।१
जल स्रोतों की करें सफाई।
जहां से हमने जल निधि पायी।
जल का उचित प्रयोग करें।
जिससे शाश्वत भोग करें।।२
वर्षा का जल कर संरक्षित।
कल का जीवन करें सुरक्षित।।
दूषित जल मत कभी जमायें।
मच्छर, मक्खी दूर भगाएं।।३
स्वच्छ रखें जल के भंडार।
बंद रखें रोगों के द्वार।।
निर्मल जल का सीखें योग।
फिर सब प्राणी रहें निरोग।।४
शुद्ध नीर का हो उपयोग।
नहीं रहेगा कोई रोग।।
जल के लिए न युद्ध करें।
गंदे जल को शुद्ध करें।।५
पंचतत्व का अनुपम धन।
रक्षा करता सबका तन।।
वैद्यों ने जल महिमा गायी।
सब रोगों की एक दवाई।।६
अपनी धरा को हरा करें।
जल स्रोतों को भरा करें।।
जल का मूल्य शीघ्र पहचान।
इसको दें पूरा सम्मान।।७
जल की महिमा सबने गायी।
जल की कौन करे भरपाई।
जल ही सब कुछ पावन कर दे।
मौसम को मनभावन कर दे।।८
शिवाकान्त शुक्ल
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
मौलिक,स्वरचित,अप्रकाशित
०८-०९-२३
हिन्दीकाव्यकोश
जवाब देंहटाएंटाईम कोश
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
दिनाँक-08-09-2023
विषय-:जल
शीर्षक-:जल
जल ही जीवन,जीवन ही जल,
स्मरण रहे यह बात
उपभोग हो इसका उचित रीति से,
अन्यथा पलक झपकते ही
नष्ट हो जायेगा,जीवों का बिसात,
जतन करना है हम सबको इसका
अन्यथा मानव का शून्य औकात,
यह उपहार मिला किस्मत से
न समझें इसको खैरात
इस अमूल्य निधि का मात्रा सीमित है
सोचना सुबह-शाम,दिन-रात
जल....
नीर प्रकृति का अनुपम उपहार
इससे तरता सारा संसार
रंगहीन द्रव रूप में मिलता
स्वादहीन पर बड़ा असरदार
उँच-नीच में भेद न करता
प्यासा पथिक जब हो किसी के द्वार
बहे चक्षु से तो अश्रु कहलाता
सरिता में यही लहरों की धार
गुण तो इसके हैं बहुतेरे
पर थोड़े शब्दों में अपनी ज़ज्बात
जल.......
सत्येंद्र कुमार गुप्ता
ग्राम बैजनाथपुर ब पोस्ट सलका
विकासखंड भैयाथान सूरजपुर छत्तीसगढ़
*जय श्री कृष्ण माधव
जवाब देंहटाएं*रमेशचन्द्र बोहरा
*नमन हिन्दी काव्य कोश
#tmkosh
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
*विषय-जल
*दिनांक-८.९.२०२३
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*जल के बिना चले ना जीवन
जल जीवन आधार
जल वायु पर कोई न बंधन
इन पर सबका अधिकार।
जल के चक्र से जीवन चलता
जल जीवन पनपाता
भोजन बिना चले जीवन पर
जल बिन नहीं चल पाता
सागर के जीवों से पूछो
जल बिन क्या संसार।
नदियां जल सागर ले जाती
सागर से बादल जल पाता
घूम घूम कर जलद वही
सूखी धरती की प्यास बुझाता
यही चक्र जल का धरती पर
जीवन का आधार।
रोटी जिसके लिए चांद है
देख भले ले खा नहीं पाता
सह नहीं पाता अगन भूख की
जल पी कर वह अगन बुझाता
जल न हो तो इनका जीवन
सहता कष्ट अपार।
रेती के टीलों ऊपर बस
जिनकी कहानी चलती है
मीलों से पानी ढो ढो कर
घुट घुट कर जवानी ढलती है
उनसे पूछो जल की कीमत
जल बिन सूखा संसार।
जल से जीवन जल से जंगल
जल से जगत का कारोबार
जल अमृत है जल पावन है
जल है तो है यह संसार
जल के बिना चले नहीं
तन की सांसों की सितार।
नदियों के जल से तट पर
जन्मी कई सभ्यताएं
जल को पूजा मान देवता
जल से जुड़ी परम्पराओं
जल न बरसे तो अकाल है
अति बरसे तो हाहाकार।
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*स्व लिखित,मौलिक सृजन-
*रमेशचन्द्र बोहरा
*जोधपुर-३४२००५
*राजस्थान।
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