Hindi Poems on Hindi Kavita Subject |
कविता- संवेदिता
मन को धीर बँधाती कविता,
हृदय-हृदय मन भाती कविता।
कविता का मर्मज्ञ न समझें,
उनको भी बहलाती कविता।
गहन वेदना अन्तर्मन में
आलिंगन कर आती कविता।
चुभन, जलन, नयनन में सावन,
शीतलता बरसाती कविता।
व्यथित, मौन, क्षतिग्रस्त हृदय को
प्रेम मगन सहलाती कविता।
मीत प्रिये! मनमीत प्रिये-सी,
दु:ख संताप मिटाती कविता।
कभी सत्य का दर्पण बनकर,
भाव-भँवर बह जाती कविता।
कोई कल्पना कोरी न हो,
नवल रंग, रंग जाती कविता।
बंधन है सीमाओं के यद्यपि
अनुभाव बहाती कविता।
छंद काव्य की परिधि में खिलकर
मधुर-मधुर महकाती कविता।
नमन शारदे माँ! अभिनन्दन,
आर्शीवचन सुनाती कविता।
कृपा मात लेखनी समाहित,
अक्षर-अक्षर गाती कविता।
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
कविता- अर्चना सिंह जया
अंतर्मन के कोमल भाव ,शब्दकोश से छलक-छलक
बन जाते हैं निर्मल कोमल शीतल सरिता कविता सी।
सुख-दुःख, हर्ष पीड़ा को उकेर देते हैं श्वेतपत्र पर,
छूते हैं औरों के मन को ,वेध देते भीतर तक हिय।
बहने दो वेदनाओं को बनकर शब्दों की सरिता सी,
औरों के पीर भी हर लेती कविता बन अश्रु कण सी।
मोती से अनमोल हैं होते शब्द, जब पिरो देते उसे
भाव विभोर होकर कवि-कवयित्री खाली पन्नों पर।
कुछ अपने, कुछ पराए दर्द उर में छुपाए होते वो,
छंद,गजल,कविता,गीत-संगीत में सजा परोस देते।
बह जाए मन के भाव स्याही संग शब्दों में बन कर,
कविता की सरिता सरल- स्वच्छ-निर्मल सी बहकर।
कविता में पिरो देते मानवजन अंतर्मन के भाव भर।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
Arambh hai prachand/ Piyush Mishra |
कविता- प्रीति कपूर
रसीली कृति मनोवेग से सजी
छंद ,गति ,लय,अलंकार से विधिवत बंधी
अनुभूति का सेतु बन कागज़ का लिबास
शब्दों में पिरोया भावना का विश्वास
आत्मिक सौंदर्य मुखरित बना साज़
यही है कविता अंतर्मन की आवाज़
प्रेम ,हास्य, वीर, श्रृंगार रस की स्वामिनी
समाज का अवलोकन करती गजगामिनी
नैतिकता का करे प्रसार
इंद्रधनुषी रंगों से सुसज्जित विचार
स्वच्छंद लेखनी इसका आधार
बिन शस्त्र जो करे प्रहार
प्राकृतिक लावण्य दर्शाती भरमार
कभी रश्मिरथी, कभी मधुशाला ,कभी अग्निपथ कलम का सार
हर भाव स्पंदित कर जीवन करे साकार
यही है कविता अंतस्थ की पुकार करे पीड़ा का संहार!!!
शालीमार बाग ,दिल्ली
कविता- मंजु तिवारी दीवान
कविता है कवि की बानी
जिसमें है अद्भूत कहानी
दे जाता है कुछ निशानी
कर जाता है पहलू निदानी
पद्य है कवि की जुबानी
प्रकृति भी लगती सुंदरानी
गागर में सागर है भरनी
दीर्घ को लघु में है कहनी
ओज प्रसाद माधुर्य की बात
अभिधा लक्ष्णा व्यंजना की घात
संधि समास वाक्यभेद की आधात
रस छंद अलंकार तुकांत की सौगात
गीत गजल ठुमरी कविता
पद्य काव्य है इनकी विदिता
काव्य है कवि की पहचान
व्यथित हृदय अनुभवी ज्ञान
कविता है कवियों की जान
कविता है हर युग की शान
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
कविता- मीना गोपाल त्रिपाठी
कोमल - मासूम हृदय की मैं
अविरल, अविराम सरिता हूं !
शब्दों की फुलवारी से सिंचित
अदभुत, अद्विवत कविता हूं !
हां, मैं कविता हूं !!
छंद,दोहे, गीतों के संग
अलंकारों से सज जाती
फिर ,नई-नवेली दुल्हन सी
मैं शब्दों में ढल जाती !
सांसों के सरगम में निहित मैं
अनंत , अनादि अमिता हूं !
हां, मैं कविता हूं !!
कभी उकेरती विरह- वेदना
कभी हृदय की पीर बनती
कभी सजती सप्त रंगों से, तो
कभी कहकहों की ताबीर लिखती !
मन के उद्द्गारों को धारण
करने वाली धरिता हूं!
हाँ, मैं कविता हूं !!
हाँ, मैं कविता हूं !!
अनुपपुर, मध्यप्रदेश
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