परिचय
डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था। आज के मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।
डॉ॰ बशीर बद्र 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर हैं। दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं। बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं। ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र साहब की ख़ासियत है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई है।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मींपाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगीयूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखनाजहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहेजब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहींमुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिलाअगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैंउम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भीकिसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक सेये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
तुम मोहब्बत को खेल कहते होहम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं नेबस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगायूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ साजो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैंदिल हमेशा उदास रहता है
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगाइतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरीलोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी हैख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वालामैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देनायक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा हैजिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दमतुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मेंतुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा मेंफिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थेबहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगामगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
वो चेहरा किताबी रहा सामनेबड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासलेन कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिजक गई
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेनाहर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
भूल शायद बहुत बड़ी कर लीदिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगामगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतेंआज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैंतमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगातुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम हैरहे सामने और दिखाई न दे
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखाकश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती हैकोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैंउन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी हैबेवफ़ाई कभी कभी करना
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखेंउदास होने का कोई सबब नहीं होता
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम हैकहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
न तुम होश में हो न हम होश में हैंचलो मय-कदे में वहीं बात होगी
गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती हैमुद्दतों सामना नहीं होता
बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाममुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है
जी बहुत चाहता है सच बोलेंक्या करें हौसला नहीं होता
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिलाजाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाएतुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों सेख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली हैजो भी गुज़रा है उस ने लूटा है
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