प्रतियोगिता से संबंधित नियम व शर्तें
रचना विषय - ' कविता ' प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने की प्रक्रिया♻️ रचना विषय प्रत्येक सोमवार सुबह पत्रिका के App पर प्रकाशित किया जायेगा। ♻️ रचनाकार को अपनी रचनाएँ App में दिए गए प्रतियोगिता विषय के कॉमेंट में लिखना होगा। ♻️ रचनाकार कॉमेंट में रचना पोस्ट करते समय रचना में नीचे अपना नाम जिला व प्रदेश अवश्य लिखें अन्यथा रचना अस्वीकृत होगी। ♻️ रचनाएँ 12-16 पंक्तियों में अपनी रचना पूर्ण करें। ♻️ रचना में हिन्दी भाषा के शब्दों के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाएगी अतः हिंदी के शब्द का ही प्रयोग करें। ♻️ रचना के उत्कृष्ट भाव होने पर कुछ अन्य भाषा के सामान्य शब्दों की छूट या उसे हिन्दी भाषा के शब्दों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। ♻️ रचना के उत्कृष्ट होने पर रचना के चयन हेतु उसमें कुछ शब्दों अथवा पंक्तियों के परिवर्तित कर उसे प्रकाशित करने का अधिकार निर्णायक समिति के पास सुरक्षित है | ♻️ यदि कोई रचनाकार हिन्दी से पृथक् भाषा के शब्दों का प्रयोग अधिक करता है तो उसकी रचना को निर्णय से हटा दिया जायेगा तथा प्रयास किया जायेगा कि उसे सुझाव दिया जाए। ♻️ रचनाएँ भावाश्रित होने के साथ ही व्याकरण तथा साहित्य के दोषों से मुक्त हों जिससे उसके चयन की सर्वाधिक संभावना हो। ♻️ साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता के आयोजन का उद्देश्य हिन्दी भाषा के प्रति जागृत करना है अतः प्रतियोगिता में सर्वाधिक ध्यान भाव के साथ हिन्दी शब्दों के सर्वाधिक प्रयोग पर है। ♻️ किसी भी शब्द की पुनरावृत्ति किसी भी लेखन में त्रुटि मानी जाती है अतः किसी शब्द की पुनरावृत्ति से बचने हुए हिन्दी भाषा के अलग - अलग उपयुक्त शब्दों का प्रयोग करें। ♻️ रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार रात्रि १० बजे तक ही स्वीकार होंगी। ♻️ साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता का परिणाम रविवार को पत्रिका की वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया जायेगा। ♻️ परिणाम प्रकाशित होने के बाद चुने गए रचनाकार को अपना पासपोर्ट साइज़ फोटो पत्रिका के आधिकारिक व्हाट्सएप +91 6392263716 पर भेज देना है। ♻️ पासपोर्ट साइज़ फोटो प्रशस्ति -पत्र पर प्रयोग करने हेतु मंगाया जाता है, यदि चुने गए रचनाकार द्वारा रविवार शाम तक फोटो नहीं भेजा गया तो बिना फोटो के ही प्रशस्ति -पत्र जारी कर दिया जायेगा। ♻️ प्रशस्ति -पत्र पत्रिका के फेसबुक पेज, फेसबुक ग्रुप या इंस्टाग्राम आदि से प्राप्त किया जा सकता है जिसकी लिंक वेबसाइट पर उपलब्ध है । ♻️ किसी आपातकालीन स्थिति में प्रशस्ति -पत्र को पत्रिका के व्हाट्सएप से भी प्राप्त किया जा सकता है। ♻️ प्रशस्ति -पत्र ई-फॉर्मेट में जारी किया जायेगा तथा जो रचनाकार चाहें इसकी हार्डकॉपी निःशुल्क प्रयागराज से प्राप्त कर सकते हैं। ♻️ प्रशस्ति -पत्र अपने डाक पते पर मंगाने हेतु रचनाकार को कुछ आवश्यक शुल्क देने होंगे, जिससे उनके पते पर इसे भेज दिया जा सके। ♦️ रचना कैसे करें?1️⃣ रचना करने के लिए सबसे पहले आप हिन्दी काव्य कोश के मोबाइल App पर आयेंगे जहाँ पर प्रत्येक सोमवार को विषय पोस्ट किया जाता है। 2️⃣पत्रिका के App पर दिए गए विषय पोस्ट पर क्लिक कर उसके नीचे दिए गए कॉमेंट बॉक्स में अपनी रचना लिखकर Submit कर देंगे। 3️⃣ रचनाकारों को हिन्दी काव्य कोश के फेसबुक ग्रुप में अपनी रचनाएँ अवश्य भेजनी चाहिए परंतु यह ऐच्छिक है। 4️⃣ रचना कॉमेंट में सबमिट होने के बाद उसे वही रचनाकार edit नहीं किया जाना है। 5️⃣ रचनाकारों को सुझाव दिया जाता है कि वे एक बार कॉमेंट करने से पहले Log in कर लें जिससे नाम के साथ उनका कॉमेंट प्रदर्शित हो। किसी प्रकार की समस्या होने पर पत्रिका के व्हाट्सएप नंबर +91 6392263716 पर समस्या साझा करें। 6️⃣ चुनी गई रचना का लिंक प्रत्येक विषय पोस्ट के नीचे जोड़ दिया जायेगा जिसपर क्लिक करके उस विषय की चुनी गई रचनाओं को बाद में पढ़ा जा सकेगा। 7️⃣ रचनाओं का चुनाव निर्णायक मंडल द्वारा निष्पक्ष रूप से किया जाता है।। अतः कोई भी रचनाकार निर्णय पर प्रश्न नहीं उठा सकता है।। यदि कोई रचनाकार चुनी गई रचनाओं पर अभद्र टिप्पणी करता है या चुनाव प्रक्रिया का विरोध करता है तो उसे हिन्दी काव्य कोश से बाहर कर दिया जायेगा।। 🏆📣🏆 प्रतियोगिता का परिणाम प्रत्येक सप्ताह रविवार को घोषित किया जाएगा। जिसमें निर्णायक समिति द्वारा समान रूप से चुनी गई रचना को उत्कृष्ट घोषित किया जायेगा। जिसे हिन्दी काव्य कोश के फेसबुक पेज तथा ग्रुप्स में भेजा जायेगा तथा उनकी रचना को पत्रिका की वेबसाट www.hindikavykosh.in पर प्रकाशित किया जायेगा।। 💯 रचना चोरी की अनेकों शिकायतें हिन्दी काव्य कोश की जाँच समिति को प्राप्त हो रही हैं। हिन्दी काव्य कोश आपको यह सूचित करता है कि यदि आपकी रचना में किसी भी रचनाकार की कोई भी पंक्तियाँ पाई गईं तो आपकी रचना का चुनाव होने के बाद भी आपको सदैव के लिए आपकी रचना को हटा कर सार्वजनिक रूप से बाहर कर दिया जायेगा।। सुझाव :🗝️ रचनाकारों को अपनी रचना नीचे कॉमेंट में पेस्ट करने के बाद पत्रिका परिवार के फ़ेसबुक ग्रुप में ऊपर दी गई विषय चित्र के साथ रचना पोस्ट करना चाहिए जिससे उसे अधिक साहित्य प्रेमियों तक पहुँचाया जा सके | फ़ेसबुक ग्रुप की लिंक पर क्लिक कर पोस्ट करें 🗝️ फेसबुक पर आप सभी #हिन्दी_काव्य_कोश तथा #tmkosh का प्रयोग अवश्य करें। ऐसा करने पर समिति कोश को आपकी पोस्ट देखने में मदद मिलती है। 🗝️ रचनाओं का चुनाव Whatsapp पर नहीं किया जायेगा | अतः रचनाकारों से निवेदन है कृपया प्रतियोगिता विषय की रचनायें Whatsapp पर न भेजें | प्रतियोगिता से बाहर की रचनायें ( कहानी,कविता,लेख ) आदि के प्रकाशन हेतु उन्हें Whatsapp पर भेजी जा सकती हैं | |
- 50 कालजयी रचनायें जिनपर समय की धूल नहीं जमी
- बशीर बद्र के 100 चुनिंदा शेर
- कृष्ण की चेतावनी/रामधारी सिंह दिनकर
- सामने का वह सब/विनय दुबे
- हे भारत के राम जगो मैं तुम्हें जगाने आया हूँ / आशुतोष राणा
- हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए/दुष्यंत कुमार
- हम कौन थे! क्या हो गये हैं/मैथलीशरण गुप्त
- मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको/अदम गोंडवी
- मधुशाला/हरिवंशराय बच्चन
34 टिप्पणियाँ
रक्षाबंधन
जवाब देंहटाएंसावन मास की पूर्णिमा को
सभी घरों में खुशियां छाई
थाली में श्रीफल चंदन लेकर
राखी बाँधने बहना आई।
बांध भाई के प्रेम का धागा
और मस्तक पर तिलक लगाया।
सगुन का श्रीफल हाथ थमाकर
बहना ने अपना फर्ज निभाया।
भाई तुम इसकी लाज बचाना
बहन का प्यार कभी न लजाना।
बहन पर आए जब संकट
संकटमोचन तुम बन जाना।।
भाई बोला सुन प्यारी बहना
यु ही तुम हँसती रहना।
उम्र तुझे मेरी लग जाये
आंच न तुझ पर आने पाए।।
(दीनदयाल जांगिड़)
ग्राम पोस्ट ललासरी तहसील डीडवाना जिला नागौर राजस्थान
9783509089
जवाब देंहटाएंकपोत की पाती इंसानों के नाम
जवाब देंहटाएं"कपोत का हौंसला"
धमाकों की गूंज से पीड़ित
शांति के कई दूत (कपोत )
अपने बच्चों को
छुपा रहे अपने पंखों में
सोच रहे !
शांति के
प्रतीक के रूप में
क्यों उड़ाते है हमें
हमारा कहना कि
जब जमी पर अशांति थमे
तभी उड़ाना हमें
लेकिन इंसान हमारी बोली
भला कहाँ समझ पाता
शांति का पाठ पढ़ाने से पहले
आतंकवादियों को
खत्म करना होगा
यदि ये हौंसला
नहीं है तो
बेवजह मत उडाओं हमें
हम खुद उड़ना जानते
उड़कर बता देंगे दुनिया को
आतंक के खात्मे के खिलाफ
आवाज मिलकर उठाए
क्योंकि
हम ही है असली संदेश वाहक
शांति के
धरती पर
शांति का पाठ पढाने का होंसला
हम कपोत
लेकर आए है
संजय वर्मा "दृष्टि "
125 बलिदानी भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला -धार (म प्र )
शिक्षा का पेड़।
जवाब देंहटाएंआओ दोस्तों,
सब मिलकर शिक्षित हो जाएं,
ज्ञान का ऐसा मंत्र जपें,
हमारी जड़ें,
खुब गहरी हो जाएं।
इनको हर रोज इस मंत्र से सींचे,
जिससे हमारा अस्तित्व एक विशाल तरुवर बन जाए।
जो भी हमारी छाया में बैठे,
उसे बौद्ध वृक्ष सा अनुभव हो जाए,
जो भी जहां पर जाए,
ऐसा ही बौद्ध वृक्ष लगाए।
समय वो आएगा,
जब एक बौद्ध वृक्ष का जंगल बन जाएगा,
कोई भी अज्ञानता में न रहेगा,
जब भी कोई पैदा होगा,
ऐसा ही बौद्ध वृक्ष बनेगा।
अनिल कुमार जसवाल
गगरेट,
जिला ऊना,
हिमाचल प्रदेश।
कविता
जवाब देंहटाएंकविता क्या होती है?
एक दिल का सुकून
या खुद का जूनून ||
एक अनकही दिल की बात
थोड़े उमड़ते हुए जज्बात ||
कागज़ पे खुद को ही खोल देना
जो नहीं कहे पाये वह बोल देना ||
कविता जैसे एक सुहाना सफर
चल पड़े जैसे खुद की ही एक डगर ||
जो दिलमें है वह शब्दों में ढल जाए
जो लिखा वह काश कोई समज जाए ||
तितलियों जैसी कुछ शब्दों की अठखेलिया
कुछ छुपी हुई, कुछ उलझी पहेलियाँ ||
कविता जैसे खुशियों की बहार
कविता जैसे मीठी असुअन की धार ||
हेमिषा शाह
अहमदाबाद गुजरात
स्वरचित रचना
*जय श्री कृष्ण माधव
जवाब देंहटाएं*रमेशचन्द्र बोहरा
*नमन मंच ,हिन्दी काव्य कोश
#tmkosh
*साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
*विषय-कविता
**********************
*कविता*
मन में घुटते प्रश्न अधर पर आते हैं
तब शब्द ग्रहण करती कविता।
ज्यों जग को चमकाता सविता
ऊर्जा मन को देती कविता
भावों का ज्वालामुखी है मन
लावा बन कर बहती कविता।
भावों की गंगा है कविता
जलधि अभाव की है कविता
शब्दों का शोषण है कविता
शब्दों का पोषण है कविता।
स्वान्त: सुखाय सी है कविता
सर्वजन हिताय भी है कविता
विपदा में रुलाती है कविता
उत्साह बढ़ाती है कविता।
कभी छन्दयुक्त रही कविता
अब छन्दमुक्त हो गयी कविता
कई वादों के जाल गुंथी
अब ख़ुद में उलझ गई कविता।
हंसी का चुटकुला नहीं कविता
ख़ुशी का रसगुल्ला नहीं कविता
कविता शब्दों का जाल नहीं
भावों की माला है कविता।
वर्षा की रिमझिम हैं कविता
तारों की झिलमिल है कविता
अंधड़ प्रहार सी है कविता
कभी मृदुल बयार सी है कविता।
प्रिय की आंखों का काजल कविता
मां की ममता का आंचल कविता
राखी के भाव भरे धागे कविता
सम्बन्धो की मधुर मिठास कविता।
हैं रूप अनेक धरे कविता
बहु रूप प्रभाव करे कविता
शब्दों से घाव करे कविता
शब्दों से घाव भरे कविता।
कोई मन में पुलक जगाता है
तब शब्द ग्रहण करती कविता
कोई धरती पर चोट लगाता है
तब शब्द ग्रहण करती कविता।
*******
* स्व लिखित, मौलिक सृजन -
*******रमेशचन्द्र बोहरा
******* जोधपुर-३४२००५
*******राजस्थान।
*जय श्रु कृष्ण माधव
जवाब देंहटाएं*रमेशचन्द्र बोहरा
*नमन मंच,हिन्दी काव्य कोश
#tmkosh
*साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
*विषय-कविता
*दिनांक-,29.8.2023
**********************
*कविता*
मन में घुटते प्रश्न अधर पर आते हैं
तब शब्द ग्रहण करती कविता।
ज्यों जग को चमकाता सविता
ऊर्जा मन को देती कविता
भावों का ज्वालामुखी है मन
लावा बन कर बहती कविता।
भावों की गंगा है कविता
जलधि अभाव की है कविता
शब्दों का शोषण है कविता
शब्दों का पोषण है कविता।
स्वान्त: सुखाय सी है कविता
सर्वजन हिताय भी है कविता
विपदा में रुलाती है कविता
उत्साह बढ़ाती है कविता।
कभी छन्दयुक्त रही कविता
अब छन्दमुक्त हो गयी कविता
कई वादों के जाल गुंथी
अब ख़ुद में उलझ गई कविता।
हंसी का चुटकुला नहीं कविता
ख़ुशी का रसगुल्ला नहीं कविता
कविता शब्दों का जाल नहीं
भावों की माला है कविता।
वर्षा की रिमझिम हैं कविता
तारों की झिलमिल है कविता
अंधड़ प्रहार सी है कविता
कभी मृदुल बयार सी है कविता।
प्रिय की आंखों का काजल कविता
मां की ममता का आंचल कविता
राखी के भाव भरे धागे कविता
सम्बन्धो की मधुर मिठास कविता।
हैं रूप अनेक धरे कविता
बहु रूप प्रभाव करे कविता
शब्दों से घाव करे कविता
शब्दों से घाव भरे कविता।
कोई मन में पुलक जगाता है
तब शब्द ग्रहण करती कविता
कोई धरती पर चोट लगाता है
तब शब्द ग्रहण करती कविता।
*******
* स्व लिखित, मौलिक सृजन-
*******रमेशचन्द्र बोहरा बोहरा
***** जोधपुर-३४२००५
*******राजस्थान।
#हिन्दी_काव्य_कोश#tmkosh
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
शीर्षक:कविता
दिनांक:29/08/2023
कविता
व्यक्ति,परिवार,समाज ,देश ,जग हितार्थ,
निस्वार्थ ,बुलंद आवाज़ उठाती कविता।
श्रमवीर श्रम पूजत ,सुखद स्वप्न यथार्थ,
कर्मप्रधान मानव जीवन,बताती कविता।
श्रम ज्वाला तप,मानव तन कुंदन बनता,
पथ प्रदर्शक बन,अलख जगाती कविता।
चिन्ता,तनाव,दुख-दर्द ,हरकर कुछ पल,
आमोद-प्रमोद ,एहसास कराती कविता।
मर्यादित उड़ान,सभ्यता-संस्कृति हद में
राष्ट्रीय प्रीति की रीति,सिखाती कविता।
पर्वत पिघल,गंगाजल बन चढ़ता शंकर,
अहम् से वयम् की पाठ,पढ़ाती कविता।
सूरज तपकर,तिमिर भगाता धरती का,
व्यंग्य वाण तपिश,तम मिटाती कविता।
माता-पिता ,गुरू ,दुःखी जन सेवा तीर्थ,
सही समय पर,जग को जगाती कविता।
बीरेन्द्र सिंह राज
नोएडा
गौतम बुद्ध नगर
उत्तर प्रदेश
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएंरचना विषय - विधा- कविता
वैश्विक भाषाओं के मध्य हिन्दी, सबसे प्रबल महान है।
काव्यात्मक कविता तो सचमुच हिन्दी साहित्य की जान है।।
नीर बिना ज्यूं मृतक सी मछली, कविता बिन हिन्दी त्यूं खीन है।
गुनगुन करते तितली भौंरे संग,
वन उपवन में सुमन लयलीन है।।
विहग विटप जैसे पर्यावरण महं, जीव घटक पारस्परिक महान हैं। काव्यात्मक कविता तो सचमुच,
हिन्दी साहित्य की जान है।।1।।
दिनकर,मधुकर,प्रलयंकर अज्ञेय,
पंत,सुमंत,वर्मा या फिर निराला।
आदि,द्विवेदी,शुक्ल,प्रेमचन्द चाहे, आचार्य हजारी प्रसाद मतवाला।।
सूर,कबीर,तुलसी या हों जायसी,
गुप्त,संत,केशव,मीरा की तान है।
काव्यात्मक कविता तो सचमुच,
हिन्दी साहित्य की जान है।।2।।
जलचर,थलचर,नभचर,सहचर,
मिलजुल हिलमिल सब रहते हैं।
तारसप्तक बीच सरगम के सुर में,
कवीश्वर भी हम सबसे कहते हैं।।
रगड़-भगड़,अवरोह,आरोह भाव,
कविता के सब अमर सोपान है ।
काव्यात्मक कविता तो सचमुच,
हिन्दी साहित्य की जान है।।3।।
शेष,महेश,गनेश,सुरेश,दिनेश रत,
निश-दिन शशि है वनिता सविता।
नर,नागर खुद मगन मन मस्त है,
करता रहता कुछ-कुछ कविता।।
कमल नेत्र में प्रभु मूरत बसी वह,
जीने की सरल सरस पहचान है। काव्यात्मक कविता तो सचमुच,
हिन्दी साहित्य की जान है।।4।।स्वरचित अप्रकाशित रचना
रचना का विषय - कविता
रचनाकार-आचार्य कमलेन्द्र
नारायण चौबे
मुन्नू खेड़ा,पारा,जनपद-लखनऊ, राज्य:(उ0प्र0)9682879902.
हिन्दी काव्य कोश-सादर नमन
**************************
#हिंदी_काव्य _कोश
जवाब देंहटाएं#tmkosh
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
रचना विषय- कविता
दिनांक 29-8-3023
शब्द- कविता
विधा 'कुंडलियां
कविता कोमल कामिनी, हर रस से भरपूर।
भाव प्रवण मधु यामिनी, भरती उर में नूर।
भरती उर में नूर, कल्पना की कूची से।
दुख,सुख,पीड़ा,हर्ष, बांचती मन सूची से।
हरती उर तम त्रास,जहाँ अक्षम है सविता।
हर संवेदनशील, हृदय में जन्में कविता।
-प्रगति शंकर
जिला झांसी उ प्र
#हिंदी_काव्य _कोश
जवाब देंहटाएं#tmkosh
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
रचना विषय- कविता
दिनांक 29-08-2023
शब्द- कविता
विधा 'कुंडलियां
कविता कोमल कामिनी, हर रस से भरपूर।
भाव प्रवण मधु यामिनी, भरती उर में नूर।
भरती उर में नूर, कल्पना की कूची से।
दुख,सुख,पीड़ा,हर्ष, बांचती मन सूची से।
हरती उर तम त्रास,जहाँ अक्षम है सविता।
हर संवेदनशील, हृदय में जन्में कविता।
-प्रगति शंकर
जिला झांसी उ प्र
योगेन्द्र 'योगी'
जवाब देंहटाएंपो० अतरौली जि० अलीगढ़ यू पी 202280
हिन्दी काव्य कोश
विधा- कविता
विषय- कविता।।
क ख ख घ में उलझा है, ये सारा संसार।
मन भावन है हिन्दी भाषा, सिखलाती है प्यार।।
हर भाषा को करे समाहित, ऐसी अपनी हिन्दी,
भारत मां के भाव बिराजे, लगती सुन्दर बिन्दी,
पग पग परिवर्तित होती पर, सरल अटल व्यवहार।1
ग्यारह स्वर इकतालीस व्यंजन, होते बामन अक्षर,
गणना संख्या की करते तो, ये रहती सबसे ऊपर,
शब्द शब्द साहित्य सिखाता, है सुद्रण सुन्दर सार।2
संस्कृत है जननी इसकी, पा संस्कार हर्षाए,
बहिन समझकर हर भाषा को, अपने गले लगाए,
कूट कूट कर भरा हुआ है, इसमें भारी शिष्टाचार।3
'योगी' जन्मी पली बड़ी, भारत में होता श्रंगार,
प्रतिभा विश्व पटल पर इसकी, आर्कषण आधार,
विवेकानंद ने जा विदेश में, की हिन्दी की ललकार।4
रचनाकार का नाम-- योगेन्द्र 'योगी'
कला भवन, छिपैटी, अतरौली,
जि० अलीगढ़ (यूं पी ) 202280
मो० न० 9412594057
विषय:कविता
जवाब देंहटाएंरसीली कृति मनोवेग से सजी
छंद ,गति ,लय,अलंकार से विधिवत बंधी
अनुभूति का सेतु बन कागज़ का लिबास
शब्दों में पिरोया भावना का विश्वास
आत्मिक सौंदर्य मुखरित बना साज़
यही है कविता अंतर्मन की आवाज़
प्रेम ,हास्य, वीर, श्रृंगार रस की स्वामिनी
समाज का अवलोकन करती गजगामिनी
नैतिकता का करे प्रसार
इंद्रधनुषी रंगों से सुसज्जित विचार
स्वच्छंद लेखनी इसका आधार
बिन शस्त्र जो करे प्रहार
प्राकृतिक लावण्य दर्शाती भरमार
कभी रश्मिरथी, कभी मधुशाला ,कभी अग्निपथ कलम का सार
हर भाव स्पंदित कर जीवन करे साकार
यही है कविता अंतस्थ की पुकार करे पीड़ा का संहार!!!
प्रीति कपूर
शालीमार बाग ,दिल्ली
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_काव्य_कोश
#tmkosh
#साप्ताहिक_काव्य_प्रतियोगिता
विषय: कविता
दिनांक: २८.०८.२०२३
मन से कही,
मन ने सुनी,
मन ही मन गुनी..मन की बात,
और फिर..बात वो ही..बन गई 'कविता'!
भाव से कहा,
भावना ने सुना,
भर कर..भीनी भीनी सी सुगंध,
भावुकता से ओतप्रोत..हुई वो 'कविता'!
जैसे..बहती हुई हो..नदी,
जैसे..खिलती हुई हो..कली,
वैसे ही लगती..बहुत ही भली,
स्वान्त: सुखाय..रची वो 'कविता'!
चिड़ियों की चहक..सी,
फूलों की महक..सी,
हृदय द्वार पर देती..हौले से दस्तक सी,
कर जाती..हृदय को स्पर्श..वो 'कविता'!
दुःख में..दुखिया बन,
सुख में..सुखिया बन,
अंतस का बनकर..स्पंदन,
सुप्त चेतना को..करे जागृत..वो 'कविता'!
तितली की तरह..उड़ती स्वछंद,
मगन-प्रफुल्लित..होकर निर्द्वन्द,
आवेगों से भरी..तो कभी अनजान,
स्वत: स्फुटित छंद..वो 'कविता'!
👆स्वरचित मौलिक रचना
द्वारा,सीमा अग्रवाल
गोमतीनगर, लखनऊ
उत्तर प्रदेश -२२६०१०
बहुत खूब
हटाएं#हिन्दी_काव्य_कोश
जवाब देंहटाएं#tmkosh
#साप्ताहिक_काव्य_प्रतियोगिता
विषय: कविता
दिनांक: 30/08/23
कोमल - मासूम हृदय की मैं
अविरल, अविराम सरिता हूं !
शब्दों की फुलवारी से सिंचित
अदभुत, अद्विवत कविता हूं !
हां, मैं कविता हूं !!
छंद,दोहे, गीतों के संग
अलंकारों से सज जाती
फिर ,नई-नवेली दुल्हन सी
मैं शब्दों में ढल जाती !
सांसों के सरगम में निहित मैं
अनंत , अनादि अमिता हूं !
हां, मैं कविता हूं !!
कभी उकेरती विरह- वेदना
कभी हृदय की पीर बनती
कभी सजती सप्त रंगों से, तो
कभी कहकहों की ताबीर लिखती !
मन के उद्द्गारों को धारण
करने वाली धरिता हूं!
हाँ, मैं कविता हूं !!
हाँ, मैं कविता हूं !!
मीना गोपाल त्रिपाठी
कोतमा, अनुपपुर(मध्यप्रदेश)
स्वरचित
#हिन्दी_काव्य_कोश
जवाब देंहटाएं#tmkosh
दिनांक -30/8/2023
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
विषय- कविता
अनगढ़ पाषाण कविता कवि शिल्पकार,
मिट्टी-पानी है कविता,कवि है कुंभकार।
पर्वत श्रृंखलाओं की संधियों से निर्झरित-
स्वतः स्फूर्त कविता,बने कवि की झंकार।।
कविता शब्दों के अक्षर-अक्षर में ध्वनित,
खगों द्वारा बिखराए बीजों से अंकुरित।
भाव से निर्मित कवि की प्रकृति है वह-
और उर से निकल होती धरा पे गुंजित।।
कविता है कवि की भावना एवं कल्पना,
शब्दों के रंग से बन जाती है वो अल्पना।
और यदि द्वेष भरे मन सागर से निकले-
तो सीख जाती नफरत की आग उगलना।।
कविता जब-जब पीर हृदय में उठती है,
तब-तब आँखों में सरिता बन बहती है।
यही कविता कवि उर को स्पंदित कर-
निकलती तो धरा को नई सुबह देती है।।
रचनाकार- मनोरमा शर्मा मनु
स्वरचित एवं मौलिक
हैदराबाद
तेलंगाना
विषय:-कविता
जवाब देंहटाएंकविता है कवि की बानी
जिसमें है अद्भूत कहानी
दे जाता है कुछ निशानी
कर जाता है पहलू निदानी
पद्य है कवि की जुबानी
प्रकृति भी लगती सुंदरानी
गागर में सागर है भरनी
दीर्घ को लघु में है कहनी
ओज प्रसाद माधुर्य की बात
अभिधा लक्ष्णा व्यंजना की घात
संधि समास वाक्यभेद की आधात
रस छंद अलंकार तुकांत की सौगात
गीत गजल ठुमरी कविता
पद्य काव्य है इनकी विदिता
काव्य है कवि की पहचान
व्यथित हृदय अनुभवी ज्ञान
कविता है कवियों की जान
कविता है हर युग की शान
प्रस्तुतकर्ता
मंजु तिवारी दीवान
बिलासपुर छत्तीसगढ़
विषय कविता
जवाब देंहटाएंकागज और कलम ह हाथ में
खूब जोश हो जिस बात में
उसी जोश को शब्द बनाकर
बनाऊं कोई कथा या लिख दू कविता ,
ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाकर
छंद की माला बनाकर
जो अलंकार को सजाता है
उसी अलंकार पर लिख दू कोई कविता
रस की रचना बनाकर
काव्य की विधा बताकर
साहित्य के शब्दों को संजोकर
बहादू कोई सरिता
या लिखूं कोई गजल या लिख दू कविता
या लिख दू कविता
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_काव्य_कोश
#tmkosh
दिनांक - २९/८/२०२३
शीर्षक- कविता
'कविता'
मन को धीर बँधाती कविता,
हृदय-हृदय मन भाती कविता।
कविता का मर्मज्ञ न समझें,
उनको भी बहलाती कविता।
गहन वेदना अन्तर्मन में
आलिंगन कर आती कविता।
चुभन, जलन, नयनन में सावन,
शीतलता बरसाती कविता।
व्यथित, मौन, क्षतिग्रस्त हृदय को
प्रेम मगन सहलाती कविता।
मीत प्रिये! मनमीत प्रिये-सी,
दु:ख संताप मिटाती कविता।
कभी सत्य का दर्पण बनकर,
भाव-भँवर बह जाती कविता।
कोई कल्पना कोरी न हो,
नवल रंग, रंग जाती कविता।
बंधन है सीमाओं के यद्यपि
अनुभाव बहाती कविता।
छंद काव्य की परिधि में खिलकर
मधुर-मधुर महकाती कविता।
नमन शारदे माँ! अभिनन्दन,
आर्शीवचन सुनाती कविता।
कृपा मात लेखनी समाहित,
अक्षर-अक्षर गाती कविता।
संवेदिता
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश - २२८००१
सुंदर सृजन
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जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएं#हिंदी काव्य कोश
# tm kosh
31-8-2023
विषय- कविता
स्वरचित व मौलिक रचना
✍️✍️✍️✍️
अंतर्मन के कोमल भाव ,शब्दकोश से छलक-छलक
बन जाते हैं निर्मल कोमल शीतल सरिता कविता सी।
सुख-दुःख, हर्ष पीड़ा को उकेर देते हैं श्वेतपत्र पर,
छूते हैं औरों के मन को ,वेध देते भीतर तक हिय।
बहने दो वेदनाओं को बनकर शब्दों की सरिता सी,
औरों के पीर भी हर लेती कविता बन अश्रु कण सी।
मोती से अनमोल हैं होते शब्द, जब पिरो देते उसे
भाव विभोर होकर कवि-कवयित्री खाली पन्नों पर।
कुछ अपने, कुछ पराए दर्द उर में छुपाए होते वो,
छंद,गजल,कविता,गीत-संगीत में सजा परोस देते।
बह जाए मन के भाव स्याही संग शब्दों में बन कर,
कविता की सरिता सरल- स्वच्छ-निर्मल सी बहकर।
कविता में पिरो देते मानवजन अंतर्मन के भाव भर।
* अर्चना सिंह जया, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
****कविता******
जवाब देंहटाएंजैसे घट घट में वास हो भगवान का कविता उसका प्रमाण हैं,
भावों भरी अभिव्यक्ति उसकी,शब्द इसके सम धनुष बाण हैं,
जीव निर्जीव में जान भर दे,अलहड़ को भी दे नई पहचान हैं,
जो खो गया दुनिया के मेले में कविता दिलाती उसका मान हैं,
मैं नदी की धार सम,कविता समुद्र की गहराइयों के समान हैं,
मैं नाचीज़ सी इंसा हूँ,कविता में ही समाया समस्त ब्रह्याण्ड हैं,
क्या कविता शब्दो का सार हैं?नही यह अभिव्यक्ति का आधार हैं,
कण कण में विराजमान को प्रस्तुत कर जी हाँ कविता ही संसार हैं
अद्वितीय,अलौकिक अद्भुत दिव्यता में समाई एक अमूल्य पारस हैं,
उघाड़ के रख दे सफेदपोशों को मिनटों में इसमें वो बात भी खास हैं,
भूत, भविष्य, वर्तमान का सार बताये,युगों युगों की कहानी सुनाये,
कभी प्रेमवारिधि की बारिश कर दे,तो कभी कभी संस्कृति भी बताये
जिसे खरीद लो मुँह बोले दाम मे,ये न कोई बाजारू बिकाऊ चीज़ हैं,
वस्त्रधारी की निर्वस्त्र कर दे,भरे बाजार में दिखाती तुम्हारी तमीज़ हैं,
स्वरचित मौलिक रचना
निशा कमवाल
अध्यापिका
दिल्ली
साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
जवाब देंहटाएंहिन्दी काव्य कोश
विषय– कविता
कुछ भाव उठे हिय में ऐसे, शब्दों का सम्मान हुआ।
पटल पर लेखनी चल उठी,कविता का निर्माण हुआ।।
कहीं पर कोमल भाव उठे कहीं कठोर लिख डाला है।
कहीं पर कविता बनी मनोरम, कहीं उद्वेग रच डाला है।।
कई रसों में डूबी कविता ने जब छंदों का आह्वान किया।
जैसे नए खिले पुष्पों ने,भ्रमर संग मकरंद का पान किया।।
कहीं प्रेम बहाती कविता, कहीं अलंकार सजाया है।
पाषाण हृदय वाले मन में, प्रेम का पुष्प खिलाया है।।
प्रकृति के रंग में डूबी कविता, जब रंग नए सजाती है।
सब रंग मिलकर हो एक रंग, कैसी यह शोभा पाती है।।
है विविधता से भरी हुई, जीवन के रंग दिखाती है।
मां भारती के आशीष से, लेखनी में उतर जाती है।।
आशुतोष"आनेंदु"
महाराजगंज, उत्तर प्रदेश
#हिन्दी_काव्य_कोश
जवाब देंहटाएं#दिनांक-01/09/2023
#विषय-कविता
भावों के सागर तट पर ,
स्मृति सीपी से,
गोताखोर कवि ने,
मोती-सा शब्द उगाहा है।
नव संगीत के पथ पर,
तारतम्यता की डोरी से,
कवित- हार बनाया है।
कविता तो है वह रचना,जो
हृदय राज्य पर छाती है।
सोची समझी शब्दों से गुथी,
इक जाल बनाई जाती है।
मानव स्मृतियों का भी,
आभास कराई जाती है।
प्रिया प्रियतम के मधुर स्वरों का,
श्रवण कराई जाती है।
स्वर्ग सुखों व लोक प्रकृती का,
स्वप्न दिखाई जाती है।
पूर्णतः मौलिक स्वरचित व अप्रकाशित रचना
विभा गुप्ता 'दीक्षा'
प्रयागराज, उत्तरप्रदेश
विषय _कविता
जवाब देंहटाएंहिन्दी काव्य कोश
दिनांक _1/9/23
प्रकृति के उत्थान पतनो से,
जीव जन्तु जग स्वर पठनो से।
नाद,नदी नग वन झरनों का ,
समाज के भाषण धरनों का।
ग्रह नक्षत्र खगोल चंद्र तारे,
कोई योद्धा जीते हारे।
लोक परलोक मन में गढ़ते,
ऐतिहासिक कथा लय पढ़ते।
उठती दिलो में मधुर ध्वनियां,
खिलती कलियां रंगी गलियां ।
स्मारक भवन सड़के गाडियां,
उगे दिलो में नित फुलवरियां ।
कविता कवि की महा कल्पना,
नव रसों संग नव उल्लाहना।
ओज प्रासाद मधु गुरबाणी,
बन जाती कविता कल्याणी ।
मोहम्मद अलीम
बसना
जिला महासमुन्द
छतीशगढ
विषय _कविता
हिन्दी काव्य कोश
दिनांक _1/9/23
प्रकृति के उत्थान पतनो से,
जीव जन्तु जग स्वर पठनो से।
नाद,नदी नग वन झरनों का ,
समाज के भाषण धरनों का।
ग्रह नक्षत्र खगोल चंद्र तारे,
कोई योद्धा जीते हारे।
लोक परलोक मन में गढ़ते,
ऐतिहासिक कथा लय पढ़ते।
उठती दिलो में मधुर ध्वनियां,
खिलती कलियां रंगी गलियां ।
स्मारक भवन सड़के गाडियां,
उगे दिलो में नित फुलवरियां ।
कविता कवि की महा कल्पना,
नव रसों संग नव उल्लाहना।
ओज प्रासाद मधु गुरबाणी,
बन जाती कविता कल्याणी ।
मोहम्मद अलीम
बसना
जिला महासमुन्द
छतीशगढ
नमन हिन्दी काव्य कोष
जवाब देंहटाएं#tmkosh
#साप्ताहिक _काव्य_ प्रतियोगिता
#विषयः कविता
#विधाःपद्म(छंदमुक्त)
#दि०-01/09/2023
******************
नवरस भावों का शुचि गुलदस्ता,
कविता में अतिशय रसमयता,
सत्यं,शिवम सुन्दरं की अनुभूति,
कविता कें अंतस चारु निहित।
प्रभावोत्पादक कविता यदि,
कथ्य-शिल्प प्रिय द्युतिमान शुचि,
काव्य-सौष्ठव, लालित्य पदों का,
करते कविता को अति सार्थक।
माधुर्य-मधुरता कविता में यदि,
उदगार प्रभावी संग छविमान,
करे सटीक चित्त को आनन्दित,
मनभावन अनुरंजन परिलक्षित।
विधा कलात्मक साहित्यिक ,
सर्वभूत कल्याण लक्ष्य शुचि,
मानव के अंतर्तम मे पोषित,
भाव विविध की रक्षक कविता।
उर -भावों के प्रारम्भ-पलों में,
कविता का अकस्मात प्रस्फुटन,
अलंकार के अलंकरण सहित,
भावों का अभिव्यक्तिकरण।
--मौलिक एवं स्वरचित--
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ(उ.प्र.)
हिन्दी काव्य कोश
जवाब देंहटाएं#साप्ताहिक प्रतियोगिता
#चयनित विषय : कविता
शीर्षक: पता ही न चला
************************
अक्षर से अक्षर जुड़े ,शब्दों से बनी कविता
भावनाएँ उमड़ पड़ी बही शब्दों की सरिता
कब मन की मौन वेदना प्रस्फुटित हो उमड़ पड़ी पता ही न चला।
उम्र की दहलीज़ों को पार करती हुई
भावनाओं की ड्योढ़ी को लाँघती हुई
कब मेरी कविता मुझसे क़द में बड़ी हो गई पता ही न चला।
शून्य से निकलकर शून्य ही में खोजती मुझे
एक सपना बन मेरी आँखों में टटोलती मुझे
कब मेरे सामने झिझकती आकर खड़ी हो गई पता ही न चला।
रुप बदला, परिवेश बदला, आकार बदला
अंतर्मन की सीमाओं का विस्तार बदला
कब कल को आज से जोड़ने की ये कड़ी हो गई पता ही न चला।
चंचल, चपल, कल कल बहती नदी बन
अथक, अविरल सींचती ये तृण सम जीवन
कब मेरी कविता मोती पिरोते माला की लड़ी हो गई पता ही न चला ।
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित@भार्गवी रविन्द्र….. बेंगलुरु, कर्नाटक; १/९/२३
हिंदी_काव्य_कोश#tmkosh
जवाब देंहटाएंविषय-"कविता"
***************
जब मन के अंतर्निहित भाव,अनायास बहने लगते।
उन उद्गारों को श्रोता गण, कविता है, कहने लगते।।१
कविता समय नहीं देखे, इसे अकेलापन भाता।
इसका कोई अर्थ नहीं,कवि को कितना आता-जाता।।२
उठते मन के भावों को,अपनी भाषा में कहती।
जो कविता-रस मन भाता, कहते समय उसे गहती।।३
लय,छंद,राग,जो आ जाए, उसमें कविता लिख जाती।
मीठी लगती,कड़वी लगती,कभी हंसाती, कभी रुलाती।।४
छंद-युक्त या छंद-मुक्त, जो कविता भाव विभोर करे।
वह मन-मंदिर में बस जाए, तो कैसे कोई चोर हरे।। ५
अपने मन का घटित न हो,मनमंदिर भी व्यथित रहे।
कविता हिय को हर्षाती, कभी-कभी जब थकित रहें।।६
कविता जोश बढ़ाती है,कविता होश में लाती है।
कविता हमें जगाती है, कविता हमें सुलाती है।।७
कविता युग परिवर्तन करती, कविता कभी बखान करे। विद्वानों का समय बिताए, ईश्वर का गुणगान करे।।८
शिवाकान्त शुक्ल
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
मौलिक,स्वरचित,अप्रकाशित
०१-०९-२३
" कविता "
जवाब देंहटाएं----------------
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,शब्दों मे संसार है देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,अपनो के संस्कार है |
पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
" कविता "
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कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
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कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
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श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,अपनो के संस्कार है |
पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
" कविता "
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कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
माँ का दूलार है ,पिता का प्यार है |
अश्रुओ की धार है ,खुशियोँ की बहार है |
तीज और त्यौहार है , जीवन का उपहार है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ---
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ----
संस्कृति का आधार है ,शब्दों का आगार है ||
शब्दों मे संसार है,पायल की झनकार है |
प्यार का इजहार है ,दिलों का अरमान हैं |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है --
अपनों के संस्कार है ,देश की शान है ||
अन्तर्मन की पहचान है ,पृकृति का दृश्यमान है --
सत्संग का ज्ञान है ,वेद और पुराणं है |
कविता तो शब्दों का श्रृंगार है ------
श्री मति मनु नेगी
भोपाल (मध्य -प्रदेश )
# नमन मंच हिन्दी काव्य कोश
जवाब देंहटाएं# विधा----कविता
#विषय----"कविता"
#दिनांक----02/09/2023
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नर्म पंखुड़ी सदृश्य, निश्छल चाहतें,
जमाने की बंदिशें और अपनी बेबशी,
केे मध्य मे पीस जाते हैं,
तो एक तडप-सी होती है,
जो शब्द-कंद्रन से फूट पडती है...
अपने ही मूल्य-आदर्श,
हकीकत से टकराकर चकनाचूर हो जाते है,
साथ ..अकेला छोड जाते है
गर्व के चंद लम्हें,
ग्लानि की अनेक स्मृतियाँ,
तो एक हूक-सी जगती है
जो शब्दों मे उमड पड़ती है।
जब अपना पक्ष लोगों के समक्ष,
बिल्कुल उलटा पड जाय,
तो एक कोफ्त-सी होती,
जो शब्दों में उबल पड़ती है!!
जब खुद के संकल्प-इरादेंं के समक्ष,
हम बहाने गढ़,मुंह फेरने लगे,
बेबश-सा असहाय पड़ने लगे,
अनायास ही अंत:विक्षोभ उमड़ता,
शब्दों मे बूंद-बूंद पडता है...
कल्पना-यथार्थ के बीच की,
एक कडी जुडती है ,वो पुल बन जाती है,
वहीं काव्य धारा की ,आवृत्ति में ढल जाती है,
देवातुल्य आशीष का वरदान सरीखा,
काव्य-रस , संजीवनी प्रवाहित होती है.....!!!!
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#मौलिक वं स्वरचित
@अर्चना श्रीवास्तव 'आहना'✍️🌹
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