सावन पर 5 उत्कृष्ट हिन्दी कवितायें | Top 5 Hindi Poem On Sawan - Hindi Kavy Kosh

Best Poem On Sawan Spring

 सावन- निशा कामवाल


तपती धरा को शीतल करने झूम आया सावन है,

भरतीय सुसंस्कृति में सावन माह अति पावन है,

सात्विकता, तरंगशील, अद्भुत छटा सु-दर्शनीय है,

क्षणभंगुर सा शाश्वत करता भाव बड़ा मनभावन है,


सुसुप्त लताएँ भी करती अठखेलियां हार श्रृंगार है,

कली से पल्लवित होते पुष्प, करते अली गुंजार है,

कहिं दादुर कहिं मोर पपीहा कहिं मतवाली कोयल,

देख नजारा प्रकृति का मन मेरा गा रहा मल्हार है,


चिलचिलाती धूप से तकते किसान जब व्योममेश है,

कण कण तृप्त हो जाये जब सावन का होता प्रवेश है,

प्राण तन को राग मिल जाता तन मन प्रसन्न हो जाता है,

झुलसी प्रकृति हरी हो गई बदल लिया हो मानो भेष हैं,


राग बैराग्य मन भी तीज सिंधरो से झूम झूम जाता है,

सावन के झूलों की याद में वो परदेशी घर लौट आता है,

भाग्यशाली हूँ जो इस भारतस्थली में मैं जन्म लिया हूं,

जब भारतीयता की गोद से अनन्य त्योहार मनाया जाता है। 

~ निशा कमवाल
दिल्ली

सावन- विनय मोहन शर्मा


झूम रहा सावन मतवाला,

  काले मेघ मल्हार सुनाते।

भीग गए पावस बूंदों में,

   उपवन-सुमन ड़ाल मदमाते।

रिमझिम सी पावस की बूंदें,

   सागर -गगन-सीप के मोती।

फूलों की कोमल पंखुड़ियां गिर,

  चरणधरा अभिषेक हैं करतीं।

कहीं गीत मनोहर श्यामा के

   छू कर मन हर्षित है करता।

बहकर पवन सुगंधित मन का,

   मनस्ताप को भी है हरता।

सावन की वर्षा में अब तो,

  झूम उठी है ड़ाली ड़ाली।

पीत हुए इन वृक्ष पात में,

  यौवन छाया बन हरियाली।

~ विनय मोहन शर्मा
अलवर, राजस्थान

सावन- राघवेन्द्र सिंह


आया सावन आया सावन

कहती है पुष्पों की डाली,

मैं झूम उठी मानो ऐसे

जैसे हूं मैं ही मतवाली,

आया सावन आया सावन...


खिल उठा सदन कानन मेरा

जो सूखा था रवि के कर से,

अब तो है खुश कुटुम्ब मेरा

जबसे काले बदला बरसे,

आया सावन आया सावन...


हो उठी कोकिला मत वाली

जो बैठी वृक्षों की डाली,

जो गीत सदैव मधुर गाती

भाती है जिसको हरियाली,

आया सावन आया सावन

कहता है पुष्पों की डाली... 

राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश

सावन- आशुतोष 'आनेंदु'


कोमल सी एक सुंदर बाला,

ओढ़े पड़ी है हरी दुशाला।

सारी नदियां और सरोवर,

बन बैठे हैं जल के प्याला।

ऋतु सुहावन छा रहा है, आज सावन आ रहा है।।1।।


भाव कभी न मेरे भरते,

झूले के जब पेंग है भरते।

गीत गाए सखियां मतवाली

दादुर पपीहा शोर हैं करते।

ऋतु मनभावन आ रहा है, आज सावन आ रहा है।।2।।


उमड़ घुमड़कर काले बादल,

भीगो रहे हैं सब जल थल।

भरा हुआ है उमंग मन में,

शिव पर चढ़ रहा है जल।

ऋतु ये पावन आ गया है, आज सावन आ गया है।।3।। 

आशुतोष 'आनेंदु'
महाराजगंज, उत्तर प्रदेश

सावन- लक्ष्मी कुमारी


मन के उमड़े भाव है सावन,

प्रिय मिलन का सार है सावन।

चंचल होते बालमन में ,

बूंदों की बौछार है सावन।


कागज की कश्ती है सावन,

बागों में झूले है सावन।

धरती के आंचल से पनपे,

हर द्रुम लता छटा है सावन।।


उमड़-घुमड़ कर गीत सुनाए,

काले मेघा आए जाए।

टेर पपीहा, नाचे मोर,

दादुर भी कुछ शान दिखाए।


टर्र -टर्र की आवाज सुनाकर,

हाय जिया को क्यों हर्षाए।

पी है सावन,प्रीत है सावन।

विरहिणी का इंतजार है सावन।


राधा और मोहन के मन का,

रास,प्यार संसार है सावन।

हरी भरी धानी सी चुनर,

प्रकृति का श्रृंगार है सावन।। 

~ लक्ष्मी कुमारी 
सहरसा, बिहार



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