हिन्दी काव्य कोश~ नेता

यहाँ न मिलता रोजगार है,
पढ़ा लिखा युवा बेकार है,
नेताजी करते हैं झूठे वादे,
नेक नहीं लगते उनके इरादे,
जनता हो रही है गुमराह,
नहीं सूझती उन्हें कोई राह,
लाखों समस्याएँ हैं देश में,
नेताजी घूम रहे हैं विदेश में,
चुनाव में छली जाती जनता,
नेताजी पर फर्क नहीं पड़ता,
कैसे समझें नेताओं के वेश को,
दोहरे चरित्र दिखे इस देश को,
नेताजी परोसते शाही पुलाव,
कहते होगा जरूर बदलाव,
जनता विश्वास पर देती वोट,
बाद में मिलतीं हैं उन्हें चोट,
भ्रष्ट नेताओं से बचना होगा,
सच्चे नेताओं को चुनना होगा,
सच्चे नेता हैं तो सफल प्रजातंत्र,
नहीं तो असफल हैं लोकतंत्र।

~ मनोरमा शर्मा
हैदराबाद, तेलंगाना

सबसे तेज सबसे आगे हों, वह नेता कहलाते पहले थे । 
ज्यों-ज्यों राजनीति बदली, नेताओं के भी रूप बदले थे । 
देश की आजादी के लिए लड़े मरे वे नेताजी कहलाये थे।
गोरों से लड़ने को सुभाष आजाद हिन्द फ़ौज बनवाये थे।
जब आज़ादी मिली नेताजी न थे राजनीति पसरी थी यहाँ।
सबको आगे सबसे रहना इसलिये भारतमाता बँटी थी यहाँ।
फिर भी नेताओं को देश और अपनी कुर्सी प्यारी थी यहाँ।
अब सिर्फ कुर्सी ही प्यारी लागे देश की उन्हें पड़ी थी कहाँ? 
अब तो नेताओं के दर्शन हमें बस चुनावों में ही हो पाते हैं। 
वोटों की खातिर अब तो नेता कंप्युटर व नोट बँटवाते हैं। 
जनता के सेवक स्वयं को कहकर वे हाथ जोड़कर आते हैं। 
जीतने के बाद वही नेता फिर चेहरा हमें कहाँ दिखलाते हैं? 
भोली जनता को अपनी चुपड़ी बातों से कैसे बहलाते हैं। 
कहीं कहीं तो ये नेता जाति-धर्म पर हमें खूब लड़वाते हैं। 
नेताओं की पोल खुली फिर कुछ लोग जागृत हो जाते हैं। 
जन जन में बढ़ता गया आक्रोश, कब तक वे सह पाते हैं? 
है दोष यहाँ कुछ अपना भी, हम ही उनको चुनवाते हैं। 
क्यों नहीं समय पर जागरूक हो,सही चुनाव कर पाते हैं? 
अपने मत का उपयोग करेंगे,यदि यह प्रण हम कर पाते हैं। 
तब निश्चय ही अच्छा, सक्षम व जिम्मेदार नेता हम पाते हैं। 

~ सुषमा सुनील कुलश्रेष्ठ 
     नाशिक, महाराष्ट्र

 तैरकर नदी पार कर विद्यालय जाने वाले नेता होते थे।
"जय हिंद" का नारा दे गुमनामी में खो जाने वाले नेता होते थे।
देश को गुलामी से मुक्त कराने खुद को जेलों में भरने वाले नेता होते थे। 
खुली छाती पर गोली खा 'हे राम' कहकर सब सौंप चल देने वाले नेता होते थे।
अब अनेकों भूमिका में तख्त पर विराज खेल खेलते खिलाड़ी होते हैं।
 मात्र सदिच्छा सत्कर्म के बल पर नेता बनने की चाह वाले अनाड़ी होते हैं।
 तिकड़मों में जिनको महारत हो सरपट चलती उनकी गाड़ी है ।
जनहित की बातें करने वालों ने तो भई नेतागिरी की परिभाषा ही बिगाड़ी है।
जो मात्र अनाज नहीं पूरे खेत गटक जाए, वह बड़ा नेता।
वादों और दिलासाओं की चासनी में लपेट विषाक्तता फैलाए,वह बड़ानेता।
 जिसकी सभाओं में वृहद हुजूम और जमघट नारों के,वह बड़ा नेता।
 जो मार खाए घायल नौनिहालों की छाती पर कामयाबी के घोड़े दौड़ाए वह बड़ा नेता।
यहाँ राम रावण में फर्क नहीं जनतंत्र है,सब को खुली छूट है।
'नेतापन'के पुख्ता खाँचे में बंद, हर दल के इरादों में लूट ही लूट है।
गठरी दबाए बैठी रही जनता, सेंध लगा सब कुछ लूट लिया।
किसान हुए मजदूर,मजदूर भिखारी, बिन मेहनत के धनवान तो नेता दिखा 
शताब्दियाँ बदलीं,चलन बदले
आधिपत्य की लालसा में कमी नहीं आई है।
आज के युग में शकुनियों ने ही नहीं पांडव कौरवों ने मिलकर बिसात बिछाई है।
सत्ता हथियाने अब धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में समवेत नहीं होते ।
साम दाम दंड भेद से  येनकेन प्रकारेन  नेताजी वोट बैंक समेटते।
कौरव पांडव अब लड़ते नहीं ,मिलजुल कर बैठे रहते हैं।
घात लगाए उमड़ती भीड़ का शिकार करने।

 ~ वाणी श्री बाजोरिया 
कोलकाता,पश्चिम बंगाल

साफ सुथरी राजनीति करने वाले
युग प्रणेता थे वे नेता हमारे
स्वहित  से ऊपर उठ गए 
देशवासियों  के पथ प्रदर्शक बन गए। 
जन हित की खातिर 
निज हित त्याग  दिया
देश हित  को हो समर्पित 
नैतिक कर्त्तव्य से पद त्याग  दिया
सुभाष, भगत,लाल, बाल पाल जैसे
अटल नायक अब मिलते नही
मिल जाए  तो राजनीति में टिकते नही।
न लफ्ज़ो की सीमा
न नियमो का बंधन
लंबी गाडी पांच  पियादे संग
भोग विलास  में व्यस्त रहता
वर्तमान नेताओं का जीवन।।
राजनीति की नीति बदली 
बदल गए नेता  के काज 
धरने के समानांतर  धरना
रैली,दंगे और विवादित  बयान 
ये चरित्र  इनका ये ही पहचान 
टेलीविजन  चैनलो पर जो
भाषा की मर्यादा त्याग 
पुरजोर जोर  चिल्लाते हैं
पुरस्कार स्वरूप ,ऊंचा कद
पार्टी में और पा जाते हैं।
अब नाम बडे दर्शन  छोटे
नायक गैरजिम्मेदार  हो गए ।
पैसे पावर का बेज़ा भोग भोग 
ये बडे रसूखदार  हो गए। ।
मुख्य मुद्दे सब गौण हो गए 
बोलने वाले अब मौन हो गए 
जनता की परेशानियों से
 कहाँ इन्हे सरोकार रह गये
गायब हैं नेताओं के घोषणापत्र से
शिक्षा, स्वास्थ्य, भुखमरी ,
गरीबी ,मंहगाई और रोज़गार 
करते नही बहन बेटी  का सम्मान 
कपड़ो  पर देते आपत्तिजनक बयान ।।
इनकी योग्यता के नही होते
व्यवस्था में कोई  मानक
काबलियत  तय करते सत्ता हेतु
विरोधी  पर तंज कसते  भाषण 
नही नेता की योग्यता को
कोई डिप्लोमा डिग्री  जरूरी
पढ़े लिखे अफसर तो करते
फिरते इनकी जी हजूरी
मसीहा बन भीड़ जुटाते हैं
इसकी टोपी उसके सर पहनाते हैं।।
सोशल मीडिया पर मुहीम  चलाते हैं
धर्म  सम्प्रदाय पर  दंगे भड़काते हैं
जनता को छलकर सत्ता पा जाते हैं।
ईमानदारी कर्तव्य निष्ठा का 
मुखौटा लगा प्रचार  को आते हैं
चुनकर इनको धोखा बस धोखा 
जनता बार -बार खाती है।
भोली क्या शिक्षित जनता भी
असली चेहरे पहचान  न पाती है।।
नाम  बडे दर्शन  छोटे
नेता  गैरजिम्मेदार  हो गए ।
कर्णधारो की ख्याति  का जरिया
दीवारो  ,चौराहो पर चिपके
पोस्टर और इश्तिहार  हो गए। ।

~ सुदेश सैनी 
   नई दिल्ली

सामने नेताओं के  यूँ,  अभिनेता अब टिकते नहीं।
असलियत के  रोल में, नेता  कभी  दिखते   नहीं।
काम  नेता का  रहा,  वो  मार्गदर्शन  करता  रहे।
दीन दुखियों  के सदा,  वो दुख  सभी  हरता रहे।
गांधी सुभाष की तरह,  नेता  अभी  मिलते नहीं।
असलियत के  रोल में, नेता  कभी  दिखते  नहीं।।
नेता हुए भगत सिंह, अब भी  लोगों  में  जिंदा  हैं।
आजकल के नेताओं से,  तो नेता खुद  शर्मिंदा है।
भाषा की लाज मिटाई,   पर  देश पर  मिटते नहीं।।
यूँ देश बदलता है मेरा,  अभिनेता  नेता  बन  गये।
नेता जी रूप बदलकर, नेता से अभिनेता बन गये।
स्वार्थ में बदले पार्टियाँ, ज्यादा  दिन  टिकते  नहीं।
असलियत  के रोल  में, नेता  कभी   दिखते  नहीं।।
नेता को नायक कहते हैं, नायक सबका मान रखें।
निज विकास जो न सोचें, देश का पूरा ध्यान रखें।
शास्त्री, पटेल से नेता,  क्यों  संसद में मिलते नहीं।।
बस रैलियाँ करना मानो, अब नेता का काम बचा।
पोस्टर के अलावा, अब  कहाँ नेता का नाम बचा।
अपने ही यूँ देश में, सच्चे नेता कभी बिकते नहीं।
असलियत  के रोल में,  नेता  कभी  दिखते नहीं।।

~ आई जे सिंह 
     दिल्ली