हिन्दी काव्य कोश~ होली

 

फागुन में खुलने लगे,उलझे मन के तार।
गोरी घूँघट से करे,मीठे- मीठे वार।।
कलियां भौरों पर पढ़े,सम्मोहन के मंत्र।
भोजपत्र पर गंध से,लिखे मोहनी यंत्र।।
हुई विदाई शिशिर की,आया हँसता फाग।
लगी सुलगने देह में, छिपी नेह की आग।।
मीलों तक फैला हुआ, सरसों का सैलाब।
मन अपना वश में नहीं, अमराई बेताब।।
आसमान पर भाव है,और हाथ है तंग।
चेहरे की रंगत उड़ी ,कैसे खेलें रंग।।
लाल गुलाबी बैंगनी, रंगो भरी फुहार।
होली के रंग में रंगा,इन्द्रधनुष सा संसार।।

~ आभा सिंह 
लखनऊ उत्तर प्रदेश

अवनी करे सोलह श्रृंगार,
बहे  पुरवइया पंख पसार,
कोयल गीत मधुर झंकार
होली का आया त्यौहार।
तन पर छींट सा फैला रंग
अंग-अंग हुआ मतंग,
रुखसत करके बहना आई
खेलें फाग नंद भौजाई।
भंवरा बहका तितली झलकी
कोयल बोली,चिड़िया चहकी,
महुआ फूले,खिले पलाश
मधुर सुगंध ले चले बतास।
अवनी पर जो बिखरा गुलाल
धूल मिट्टी भी हो गया लाल,
क्यारी-क्यारी इतराते
फूलों का श्रृंगार सजाए।
मस्ती में सब लगे झूमने
रंग लगा बदन चूमने,
मतवाली आई ये होली
घर-घर घूमे झुंड ले टोली।
खुशियां बनी आज मुंह बोली
झूमे गाए संग सहेली,
बसंत चमन महत्त्व फूल कली
रंग से नहाई आई होली।

 ~ त्रिपुरा कौशल 
    रांची, झारखंड

 आया हैं मधुमास सुहावन,
 धूम मचावत बरज़ोरी में।
 आग लगत तन बदन हमारे
आ हम मिल जाये होली में।।
ऋतु बसंत का हुआ आगमन,
लो महक उठी हैं अमराई ।
मादकता घुल गयी पवन में,
बहकी बहकी हैं पुरवाई।।
वन- उपवन में कलियां खिलती,
मौसम ने ली हैं अंगड़ाई।
 पीली चूनर ओढ धरा भी,
 हो गर्वित मन में मुस्काई।।    
 बौरों से लद गये आम तरु,
 टेसू भर लाये झोली में।
 आग लगत तन बदन हमारे--------------
 फागुन आया लगा सताने,
 बस तड़पू नार अकेली में।
 प्रियतम तुम कब से नहि आये,
 आ जाओ अबकी होली में।।
 सब सखियां खेले सजना से,
 हुड़दंग मची हमजोली में।
  द्वारे खड़ी मैं राह निहारुँ,
 आ मुझे उठा ले गोदी में।।
 चूनर धानी हुइ सतरंगी,
 सात रंग की रंगोली में।
 आग लगत तन बदन हमारे-------------
  गोप ग्वाल के संग पधारे,
  लो कान्हा आये टोली में।
  सखियों संग राधा जी आइ,
  सज धज फूलों की डोली में।।
  छैल छबीली सखियां सारी,
 चैन हरत सूरत भोली में।
 रंग ,गुलाल , अबीर उड़त हैं,
 मौज करत हँसी ठिठोली में।।
कान्हा ने मारी पिचकारी,
भींग गइ चूनर चोली में।
आग लगत तन बदन हमारे------------

  ~ करुणा दुबे
     जबलपुर

हाल हुआ बेहाल बड़ा , अब चढ़े न कोई भंग,
होली के हर रंग पे भारी, ये कोविड की जंग,
ये कोविड की जंग, फीकी हुई हैं सब तैयारी,
कोई अबीर कपोल लगा दे, कहे राधा प्यारी,
कहे राधा प्यारी,  पर रिस्क ये  कौन उठाये भैया,
दो ग़ज़ दूरी बनाए घूमता, हर एक कन्हइया।। 
मास्क लगाए मिल गए, वो चौराहे पर आज,
पूछा कैसे उजले हो, जब दिन होली का आज,
दिन होली का आज, न कोई रंग न तमाशा,
बोले वो इस साल भी फीकी, होली की आशा,
होली की आशा फीकी, कौन किसे अब रंग लगाए,
ना जाने किस वेश में कोविड, वायरस मिल जाये।। 
दहन होलिका में हुआ, इस बार बड़ा कोहराम,
प्रह्लाद ने थामी जिद थी, दूना हो गया काम,
दूना हो गया काम, हुई दो अग्नि की तैयारी,
कोविड काल में भक्त ने रखी थी ,शर्त ये भारी,
शर्त ये भारी, प्रह्लाद ने कहा दो चिता जलाओ,
होलिका बुआ से मेरी ,शोशल डिस्टेनसिंग करवाओ।। 
एक थाली में रखे हुए थे, अबीर और गुलाल,
तरस रहे थे कब से दोनों, छूने को कोई गाल,
छूने को कोई गाल, ये कैसी होली है आयी,
मास्क बांध बच बच घूमें, बस लोग लुगाई,
हाथ से रंग लगाने की न इस ,बार है बारी,
तभी तो मुस्काती इठलाती बस घूमे पिचकारी।।

~ दिनेश पालीवाल

आया होली का त्योंहार,मोरे मन बसिया।
होली रंगो का त्योंहार है प्यारे,रंग रसिया।।
रंग रसिया ओ मोरे मन बसियां....।।
होली रंगो का त्योंहार है,प्यारे रंग रसिया।।
रंग पुते है गोपी-ग्वाला,हुड़दंग खूब मचावे।
भर पिचकारी मारे कन्हैया,राधे संग नचावै।।
बाजे पायल की झनकार,रे नचावै रसिया।
आया होली का त्योंहार मोरे मन बसियां।।  
होली रंगो का त्योहार है प्यारे रंग रसिया।।
रंग रसिया रे मौरे मन बसिया........।
देवर के संग होली खेलत,भौजिन रंग लगावे।
मस्ती के आलम में खेले,अबीर-गुलाल लगावे।।
देवर-भौजिन की मनुहार होली,रंग रसिया।
आया होली का त्योंहार मौरे मन बसिया।
होली रंगो का त्योंहार है प्यारे रंग रसिया।।
रंग रसिया रे मोरे मन बसिया......।
भर पिचकारी गोरी पे डारै,नाचै और नचावे।
भीगे लहंगा और चुनरिया,गोरी रंग बरसावें।।
गोरिन ते हारे हुरियार,छबी बरसे रसिया।
आया होली का त्योंहार,मोरे मन बसिया।
होली रंगो का त्योंहार है,प्यारे रंग रसिया।।
रंग रसिया रे मोरे मन बसिया.......।

"विजय पुरोहित"
सीकर राजस्थान