हिन्दी काव्य कोश- लोकतंत्र

मैं एक सपने में हूँ
मेरे सामने एक काला कुआँ है, जिसके अंदर
लाल बालू है, कुछ जूते हैं, बाल्टी के स्थान पर
एक कटोरा है, किसी भिखारी का कटोरा
रस्सी के स्थान पर तीन-चार लंबी अंतड़ीयाँ हैं
कहीं से सड़न की बदबू आ रही है
आँखें पैनी करके देखने पर दिखता है कि
लोकतंत्र नाले में बह रहा है
कुएँ पर चढ़कर एक मोहल्ला दिखता है
जहाँ घरों के रोशनदान का छेद बहुत बड़ा है
शायद बमबारी का छेद है
हवाई हमले के शिकार हुए लोगों पर
हवाई जहाज़ों से रोटी, ब्रेड और मिनरल वाटर
गिराए जा रहे हैं
सहमे हुए लोग डर रहे हैं उठाने से
उन्हें लग रहा है कि अभी ब्रेड फटेगा
और उनके चिथड़े उड़ जाएँगे
लोगों को संदेह है कि मिनरल वाटर की बोतलें
जहरीली गैसों से भरी होंगी
मैंने देखा एक बच्चा 
जिसका कि पेट अंदर तक धँसा हुआ है
आँखें गालों तक लटक आई हैं
बाहर आता है योद्धा की तरह, अपने हिस्से की
उठाता है एक रोटी और आधा मुँह में रखकर 
आधा पैंट बनाकर पहन लेता है
मैं उससे पूछता हूँ - रोटी का महत्त्व
वो भूख और इज़्ज़त को एक समान बताता है
थोड़ा मुस्कराता है और अंदर चला जाता है
फिर अचानक ही कमरे में लाईट आ जाती है
सालों से बंद पड़ा टीवी बजने लगता है
मैं हाँफता हुआ जग जाता हूँ फिर सुस्ताता हूँ
मैं देखता हूँ कि टीवी में छात्र रोज़गार माँग रहे हैं
लालटेन में ख़ून जलाकर पढ़ते हुए, नारेबाज़ी करते हुए
दुबकी हुई लड़कियाँ सुरक्षा माँग रही है
अपनी होने वाली बेटियों की सुरक्षा
बच्चे खेलने के लिए सपाट मैदान माँग रहे हैं
जहाँ कि अभी दस तल्ला मॉल खड़ा होने वाला है
मैंने अभी-अभी महसूस किया है
लोकतंत्र सपने और हक़ीक़त दोनों ही जगह 
खतरे में है

- शुभम शौर्य
 पूर्णियाँ, बिहार

लोकतंत्र का अर्थ होता है जनता का राज,
जिससे बन सकता है सुदृढ़ अपना कल और आज।
सामाजिक और राजनैतिक समानता है इसका आधार,
धर्म, जाति, रंग, भेद के सब कारण बेकार।
विविधता से भरे देश को एक जुट रखना जरूरी,
सार्थक और कारगर शासन व्यवस्था लोकतंत्र से हो पूरी।
उच्च आदर्शों और मूल्यों के लोकतंत्र से देश बने महान,
अपनी भी यह जिम्मेदारी व्यर्थ न हो कोई बलिदान।
संभाल पायेंगे जब हम अपने जमीर, रिश्ते, नाते,
सहयोग करके देश के लिए तभी अच्छा लोकतंत्र बना पाते।
सिर्फ उंगली पर स्याही से जिम्मा पूरा नहीं होगा,
गलत की निंदा और सच्चाई का साथ भी देना होगा।
लोकतंत्र के लिए हम भी तो जिम्मेदार हैं,
लोकतंत्र के लिए ही चलता बहुत बड़ा कारोबार है।
लोकतंत्र के हाथों में ही देश का सम्मान है,
गलतियां तो बहुत फिर अपना लोकतंत्र महान है।

~ डॉ स्मृति कुलश्रेष्ठ
     दिल्ली

सारे जग  में  है  सफल,  भारत  का  गणतंत्र।
निर्वाचित  सरकार  ही, है  शासन  का  मंत्र।।1।।
भारत  में   गणतंत्र  का,   निर्वाचन   आधार।
सत्ता  जनता  की  रहे,   नहीं  कभी  तकरार।।2।।
सरकारें  जनता   चुनें,  हो  जनता   सरकार। 
भारत  के  गणतंत्र  का,  हम  सब  भागीदार।।3।।
लोकतंत्र  में  लोग  ही,   चुने  सदा  सरकार। 
संविधान ने दे दिया,  सबको  यह अधिकार।।4।।
लोकतंत्र  जबसे  बना,  भारत   देश  महान।
मिला सुशासन देश को, सब  हैं खुश इंसान।।5।।
शासन अब  गणतंत्र का,  भारत  की पहचान।
है हमको निज देश पर, आज सखे अभिमान।।6।।
राज-काज  में  हो  अगर,  जनता  भागीदार।
इसी  व्यवस्था  से बने, गणतांत्रिक  सरकार।।7।।
अंतस में  है विष  घुला,  रचते  जो  षडयंत्र।
उन  गद्दारों  से   सदा,   खतरे   में   गणतंत्र।।8।।

~ भाष्कर बुड़ाकोटी "निर्झर"
 पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड

जन की जन के द्वारा 
जन के लिए बने सरकार
इसी धारणा से पनपा है
लोकतन्त्र उदगार।
लोकतन्त्र में लोक की
ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है
लोक अगर हो सुस्त,
व्यवस्था सिर पर चढ़ आती है
है कर्तव्य प्रमुख जन का
न केवल अधिकार।
है आदर्श व्यवस्था इसमें
होती जन भागीदारी
पर सच्चाई है कि जनता
फिरती है मारी मारी
जब कि हो निश्चित सबको
मिले समान अधिकार
मत की कीमत ना समझे
तो लोकतन्त्र है व्यर्थ
जाति धर्म धन के दम पर
दल करते हैं अनर्थ
स्वप्न ही है कि लोकतन्त्र की
भावना हो साकार।
बड़ी विडम्बना लोक
अभावों में जीता मरता है
ले कर जन का नाम तन्त्र
निर्भय हो कर चलता है
भ्रष्ट आचरण आज बन गया
उन्नति का आधार।
दल सत्ता की खातिर लड़ते
अवसर वादी नेता हैं
जनता चाहे कटे मरे 
ये सबसे बड़े विजेता हैं
जनता तो है हिंसक जंतु
और मचान सरकार।
सत्ता सुख की ललक लिए
सिद्धान्त हीन दल लड़ते हैं
कीचड़ उछालते औरों पर
ख़ुद स्वार्थ धर्म पर मरते हैं
सिद्धान्त भाड़ में जाए 
बस बन जाए निज सरकार।
सर्वोत्तम स्वरूप शासन का
लोकतन्त्र कहलाता है
देश प्रमुख हो तो प्रगति का
दिव्य मंत्र बन जाता है
लोक और तन्त्र मिल कर ही
लेता राष्ट्र आकार।
देश गौण हो क्षेत्र प्रमुख
तब क्षेत्रीय दल बनते हैं
राष्ट्र अस्मिता भूल क्षेत्र की
स्वार्थ नीति ये करते हैं
इनका बस उद्देश्य 
क्षेत्र की तनी रहे तलवार।

~ रमेश बोहरा
जोधपुर, राज.

आज  समय  की  माँग ज्वलंत,
लोकतंत्र      अभिज्ञान      करें,
अधिकारों की  सोच  त्याग कर,
कर्तव्यों  का   शुचि   भान  करें।
चिंतन-मंथन     करें     सार्थक,
  लोकतंत्र    सुदृढ़     कैसे    हो,
 कैसे  बने   पारदर्शी  हितकारी,
 सर्वभूत  हित   शुचि  सहकारी।
समभाव और सौहार्द सृजित कर,
लोकतंत्र     का      मान    बढ़ायें,
जीवन कलिका के अधरों पर नित,
 देशप्रेम     की     खुशी     सजायें।
हो  जनमानस    निश्चिंंत  सशक्त,
मानवता   भी    न   हो   विभक्त,
 संविधान     सर्वोत्तम    निर्देशक,
 उसके प्रति उर     सम्मान बढ़ाएँ।
धर्म-जाति  से     ऊपर  उठ  कर,
 चरितार्थ करें "बसुधैव कुटुम्बकम",
 सत्य-अर्थ    में      लोकतंत्र    को,
 मन    से    अंगीकार    करें    सब।

~ अरुण कुमार
   लखनऊ, उ.प्र.