हिन्दी काव्य कोश- इतिहास


प्रबल समय की धार में, 
 सुख- दुख हो या त्रास ।
बीते  पल  पन्नों  चढ़े, 
प्रकट करइ इतिहास । 
सतयुग त्रेता द्वापर सारे। 
कलयुग कृत  इतिहास हमारे ।। 
सतयुग मह हरिचन्द्र नरेशा।
सत्य हेतु नृप सहेउ कलेशा ।। 
शिवि दधीचि मति डिगइ न   भोरें।।
 सत पारिख आये कर जोरे ।। 
हिरण्यकशिपु प्रहलाद कहानी।
नरसिंह रूप न जाइ बखानी ।। 
त्रेता मह सिय राम सुहाये।
भरत लखन अरिहन जग भाये। 
अंगद जामवन्त सुग्रीवा।
हनुमतादि अतुलित बल सीवा ।। 
द्वापर श्री कृष्ण बलरामा।
भक्त शिरोमणि विमल सुदामा ।। 
कालयवन आदिक बड़ वीरा।
संगत कंस बढ़ावन पीरा ।। 
पाण्डव रिपु कौरव रन रोपे।
खेत रहे सुत पांडु प्रकोपे । 
कलियुग लागि आजु तक जोई।
भीर पीर इतिहास भिगोई ।। 
गाजि मसूद इहहिं चढ़ि आवा।
नर-रिपु  दुष्ट  लुटेर  अतावा ।। 
सुहल देव नृप सेना साजी।
निज कर ते  काटेन्हि सिर गाजी। 
धरनिराज पुरु चंद्र प्रतापा।
वीर शिवाजी ते अरि कापा ।। 
भइ रन चण्डी लक्ष्मी बाई।
काटि फिरंगिं वीर गति पाई ।। 
अबु भय राजु भये जन खोरा।
रखि परमाणु न हृदय अजोरा ।।
अति आतंक किये बरजोरी।
लेखि न जाय इहइ दुख कोरी ।। 
आवहु आजु मनुज सर सारें।
तारिख बनि इतिहास सँवारें ।। 

~ डॉ. वी पी राय 
जौनपुर,उत्तर प्रदेश

एक इतिहास छिपाये रहता है , 
मनुज अपने अंतस में। 
एक इतिहास जिसे जीता है , 
 जीवन के दर्पण में। 
जिसका एक मात्र गवाह होता है वही। 
इतिहास ने हमे क्या कुछ नहीं दिखाया, 
प्रेम की पराकाष्ठा, नफरत की हदें। 
बलिदान और त्याग की अमर कणियां, 
सत्ता की लोलुपता, शासन की कमियां
मित्रों में छिपे शत्रुओं का विश्वास घात। 
शत्रुओं में नेकी और सद्गुणों की बिसात। 
माता पिता के प्रति कर्तव्य निष्ठा, 
धर्म के लिए मिट जाना,
 अधर्म की पराकाष्ठा। 
अत्याचार ,अनाचार, षड्यंत्र,कूटनीति, 
मनुष्यता की ऊँचाई, पाप और अनीति। 
सभी के परिणाम,अमनुष्यता का अंजाम, 
 सब कुछ दिखाया इतिहास ने। 
युगों की धुंधली निशानियाँ, 
जो आज भी देती वर्तमान को विस्तार। 
भविष्य की नींव रखने की क्रिया, 
वर्तमान ही तो करता है। 
प्राचीन धरोहर एवं जीवन दर्शन को दिखलाता है
भूतकाल से परिपोषित वर्तमान ही, 
भविष्य का इतिहास बनता है। 
चुने इतिहास की उन कणियों को, 
जो वर्तमान को एक नया आधार दे। 
एक नया इतिहास बनने को तैयार, 
हो सके हमारा वर्तमान। 

~ कंचन वर्मा
शाहजहाँपुर उ•प्र•

मानव   तुम हो खास बहुत , 
दुनिया  में   कुछ  खास  लिखो, 
नूतन  सोच  को  विकसित कर, 
तुम नूतन कुछ इतिहास लिखो।
महकें    जिससे   चहुँ   दिशाएँ,
प्रीत    का     यूँ    प्रसार   करो, 
पुष्प खिले हर  एक बगिया का, 
 यूँ   मधुरिम  तुम   हास  लिखो। 
नफ़रत    से    संसार    भरा  है, 
 मनुज    अरि    मानव    का  है, 
दूर      बहुत    इंसा     इंसा  से,
तुम  इनको  कुछ  पास  लिखो। 
जहर   उगलती    सबकी  बोली, 
 वाणी     कड़वी      बहुत    हुई, 
वाणी  में   तुम   घोल   मधुरता, 
 प्रीत     प्रेमयुत    भाष   लिखो।
नफ़रत  फैलाने  वाले  कारक को
तुम     फलने    मत    दो, 
काम  क्रोध  और लोभ मोह का,
अंतर्मन      से  नाश    लिखो।।

~ नरेश चन्द्र उनियाल, 
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड

भारतवासी अब तो जागो
इतिहास तुम्हें जगा रहा
फंसे पाश आधुनिकता के
किरीट तुम्हें बुला रहा ।  
तुम हो पुष्प गुलाब के
पंखुड़ी पंखुड़ी हो चुके,
सदियों से निष्क्रिय हो तुम
सुगंधि अपनी खो चुके।
न बनो टहनियाँ अलग-अलग
कतरा कतरा न गिरो,
मजबूत गट्ठर बन जाओ
झंझावात बन कर गिरो।
तुम हो नहीं छोटे झरने
सागर एक विशाल हो तुम,
व्यक्ति, व्यक्ति न रहो
वृहद् हिमालय आकार हो तुम।
पौधे नहीं तुम खतपतवार
वटवृक्ष विशाल हो तुम,
निःसार काल नहीं
जीवंत एक इतिहास हो तुम।
डटने का समय आ गया
डरने का अब काम नहीं,
सत्य ढाल ले करो सामना
असत्य का आधार नहीं।
बूंद-बूंद सहयोग हो तो
दरिया भी बह निकलेगा,
राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत
सोता इक बह निकलेगा।
राष्ट्र पुत्र, पुत्री हो तुम
राष्ट्र धर्म को याद करो,
सदियों से सुसुप्त रहा
राष्ट्रवाद अब याद करो।
ज्ञानवान हो, शीलवान हो,
धैर्यवान भी तुम ही हो,
गौरवशाली इतिहास तुम्हारा 
सत्य सनातन तुम ही हो।
इतिहास हमारी इक धरोहर
विविध संस्कृति इक मनोहर.
प्रेम त्याग बलिदान सुसज्जित
अप्रतिम एक पवित्र सरोवर।   
अपने इतिहास पर गर्व करो
राष्ट्र भविष्य आप ही हैं,
मातृ भूमि का मान रखा तो
 उसका आशीष आप ही हैं।
युगों के स्वर्णिम पन्नों पर
समृद्ध इक इतिहास है,
हमारे, तुम्हारे, हम सबके
पुरखों का इसमें वास है।।                   

 ~ उमेश
रोहिणी, दिल्ली

सुने कवित यह जन मन लागी।
कहे बात जो मन अनुरागी।।
भारत का इतिहास विलासी।
भरी प्रीत हिय पीर अगादी।।
भारत,विक्रम,पुरु,असोका।
वीर विक्रमी राज अनोखा।।
स्वर्ण युगों के युगी पुरोधा।
जिन जिये देश हित सुरोधा।।
दुर्गा,पद्मा,लक्ष्मी,रत्ना।
नारी सबला अति बल रूपा।।
गार्गी, पाला, घोषा, लोपा।
धर्मी,विदुषी, विवेक अनुपा।।
श्रवण,एकलव्य,ध्रुव,अभिमन्यु।
भक्त,वीर सब ज्ञानी विमन्यु ।। 
बुद्ध,कोटिल्य, नानक, कृष्णा।
दिया ज्ञान मन जीती  तृष्णा।। 
गुरु,सुखदेव,भगत सुजानी ।
सावरकर,सुभाष अतिमानी।।
प्राण तजे निज हो बलिदानी।
देनी स्वराज तजी गुलामी।।
बहुविधि विलछन अति गंभीरा।
हीय उठे सागर सम पीरा।।
मेरु रूप विराट अतीता।
लाएं युग वह स्वर्ण पुनीता।।

~ दिनेश कपूर