दिखने में एक लकीर है,पर महत्व बड़ा इसका देखा है।
टूटे विश्वास का सीमांकन तो परिवार बिखरते देखा है।।
ब्रह्मा की बनाई सीमा का जब दक्ष ने हनन किया,
तोड़े सृष्टि के नियम सभी शिवजी का अपमान किया।
अहंकार की सीमा रेखा में सती को जलते देखा है।
दिखने में एक लकीर है पर महत्व बड़ा इसका देखा है।।
टूटे विश्वास..........
खींची थी सीमा लक्ष्मण ने
माँ सीता की रक्षा के लिए,
जगजननी ने उसको तोड़ा एक अतिथि भिक्षुक के लिए।
मर्यादा की सीमा को जब रावण के कर छलते देखा है।
दिखने में एक लकीर है पर महत्व बड़ा इसका देखा।।
टूटे विश्वास...........
द्रोपदी के व्यंग वचनों ने दुर्योधन का अपमान किया,
लांघी सीमा मर्यादा की तो महाभारत का संग्राम हुआ।
कुरुवंश की सीमा लज्जा को फिर तार-तार होते देखा है।
दिखने में एक लकीर है पर महत्व बड़ा इसका देखा है।।
टूटे विश्वास...........
ईश्वर की बनाई दुनिया में हम सबका कुछ सीमांकन है।
सीमा में बंधे रिश्ते नाते सीमा में संस्कृति संरक्षण है।
टूटा जब धैर्य वो नारी का तो काली बनते देखा है।।
दिखने में एक लकीर है पर महत्व बड़ा इसका देखा है।।
टूटे विश्वास का सीमांकन तो परिवार बिखरते देखा है।।
~ शीला द्विवेदी
जालौन,उत्तर प्रदेश
आज प्रात: काल का भ्रमण में,
दिखा दृश्य विचित्र,
किया बहुत मनन,
दिखी हज़ारों चीटियां चलती संग,
मजाल नहीं,कोई करे पंक्ति भंग।
कितनी छोटी और कितनी सूक्ष्म,
सीमा में रहना इनका उसूल,
कर्तव्य का फर्ज निभाती हैं,
हद में रह कर सब करती हैं।
देखा इनको मन सहम गया,
आत्मा के आईने में साफ़ दिखा,
गर इंसान हर कार्य सीमा में करें,
जग सुंदर, शांत, खुशहाल बने।
अमीरों की मनमानी न हो,
गरीबों की लाचारी ना हो,
जरूरतों की एक सीमा बंधे,
जीवन का सुख सभी को मिले।
गर प्यार की हद सीमा में रहे,
नफ़रत की लौ सीमा में जले,
सीमा का प्रण गर जन जन करे,
मुस्कान खज़ाना हर मुख पर दिखे।
~ संध्या तिवारी
फरीदाबाद, हरियाणा
एक सीमा होती है देश की
जो दुश्मन से हमें बचाती हैं,
एक सीमा होती है संस्कारों की
जो मर्यादा हमें सिखाती है ।
एक सीमा होती है चिंतन की
जो गुण अवगुण की परख कराती है ।
एक सीमा होती है धैर्य की
जो विपरीत परिस्थितियों से
लड़ना हमें सिखाती है ।
एक सीमा होती है शब्दों की
जो भाषा की शालीनता दिखाती है ।
एक सीमा होती हर रिश्ते में
जो अपने पराए का भेद कराती है ।
ये सीमाएं ही हैं जो हमें
आदिमानव से मानव बनाती है
सभ्यता और संस्कृति से
परिलक्षित करवाती है ।
बहाव गंगा जल का भी तब तक ही
निर्मल रहा जब तक वो सीमाओं में बहा,
सीमा टूटते ही जाने कितनों की
बर्बादी का सबक बनता रहा ।
~ मंजू कुशवाहा
नोएडा उत्तरप्रदेश
निर्धारित हर कार्य की सीमा,
भक्ति में भजन की सीमा,
भोजन, नित्यकर्म की सीमा,
दोस्ती में हर मित्र की सीमा।
नौकर के दुत्कार की सीमा,
मात पिता के प्यार की सीमा,
प्रेयसी संग अभिसार की सीमा,
सज्जन की सहन शक्ति की सीमा।
दुष्टों के अत्याचार की सीमा,
वाणी और बोल की सीमा,
कहने और सुनने की सीमा,
दौलत और व्यापार की सीमा।
राजनीति में गठजोड़ की सीमा,
जल की सीमा, थल की सीमा,
बारिश और आकाश की सीमा,
प्रकृति से खिलवाड़ की सीमा,
सबकी है निर्धारित सीमा।
गर उल्लंघन करता कोई,
प्रकृति करती है प्रतिकार,
चहु ओर होता हाहाकार,
नहीं उसके प्रतिकार की सीमा।
जियो, जीने दो का भाव रखो,
पहचानो अपनी अपनी सीमा।।
~ महेश टंडन
अलीगढ़, यू पी
ये मानव, ये जीवन, ये प्रकृति
सब सीमाओं का खेल है
जब तक ये रहें सीमा में
मर्यादा में, हद में, सरहद में,
लहलहाता है जीवन, निखरती है प्रकृति
और मानव होता है उल्लसित ।
क्या हो ग़र तोड़ दे समंदर सीमाएँ अपनी
क्या हो ग़र तोड़ दे दरिया परिधि अपनी
क्या हो ग़र लाँघ दे कोई राधा या रजि़या देहरी अपनी l
इतिहास गवाह है, साक्षी है
जब- जब हुआ है अतिक्रमण सीमाओं का
कलंकित हुआ जीवन
अभिशप्त हुई है कुदरत
शर्मसार हुआ है मानव ।
इसीलिए,
ग़र देश, परिवेश, विदेश या परिवार रहें अपनी सीमा में
तो बढ़ेगा अमन, खिलेंगे रिश्ते
महकेगी हवा, फैलेगा प्यार l
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