हिन्दी काव्य कोश- अग्नि पथ

हरीशचंद्र ने सत्य से युद्ध  जीता
हार गई प्रजा से युद्ध माता सीता
सारे कहानी देती है हमें एक  शिक्षा 
यह जीवन क्या है !अग्नि परीक्षा 
रात में चांद दिन में सूरज दुखी है
कोई बता दो यहां  कौन सुखी है
बहुत किया हमने सत्य समीक्षा
यह जीवन क्या है !अग्नि परीक्षा 
पिता की आज्ञा को निभाना पड़ा
भगवान राम को भी वन जाना पड़ा
सब चले समय की जैसी हो इच्छा 
यह जीवन्त क्या है ! अग्नि परीक्षा 
भरी सभा दुशासन को रोक न पाये
कृष्ण भी महाभारत रोक न पाये
देवकी मांगती रही कंस से भिक्षा 
यह जीवन क्या है !अग्नि परीक्षा 

  ~ घूरण राय 'गौतम'
    बेलौंजा मधुबनी बिहार 

क्यों अग्नि परीक्षा हर युग में 
औरत की ही ली जाती है?
मर्यादाओं की कसौटी पर
क्यों वह ही परखी जाती है?
उस राम राज्य में भी सीता
मैया ने अग्नि परीक्षा दी
इक बार की पीड़ा कौन कहे
दो बार थी इसकी पीर सही
थी उनमें दिव्य शक्ति फिर भी
अपमान दुबारा सह न सकीं
आवाहन धरती मां का किया
और उनमें जा के समां गईं
पर आज की नारी में तो
कोई दैवीय शक्ति नहीं है
जो पीड़ा सीता मां की थी
पीड़ा उसकी भी वही है
पुरुषों से सम्मानित जीवन को
आज भी तरस रही है
पल पल अपमानित हो के भी
जीने को विवश रही है
आज की तुलना में उस युग की
नारी का जीवन सादा था
घर देखे वह बाहर हो पुरुष
बंटवारा आधा आधा था
और आज की नारी न केवल
घर गृहस्थी चला रही है
धरती ही नहीं नभ में भी शौर्य 
का परचम लहरा रही है
पर आज भी पुरुष से हस के मिले तो 
शक के घेरे में खड़ी की जाती है
देती है अग्नि परीक्षा तब
अपना अस्तित्व बचाती है
अपमान के तानों की अदृश्य
एक अग्नि जलाई जाती है
कभी शक तो कभी दहेज़ की
लपटों में झुलसाई जाती है
हर पल वह ही दे अग्नि परीक्षा
उससे ही उम्मीद लगाई जाती है
यदि मना किया तो निर्विरोध
दोषी ठहराई जाती है
सदियों पहले सीता मां ने 
जब अग्नि परीक्षा दी होगी
हर पल झुलसे की नारी इसमें
यह बात नहीं सोची होगी
अब कदम कदम पे लोग यहां
सीता का उदाहरण देते हैं
 हर तोहमत देकर नारी को 
दामन अपना पाक कर लेते हैं
आखिर कब तक एक नारी 
होने का हर्जाना भरना होगा
कब तक यूँ अग्नि परीक्षा से 
उसको ही गुजरना होगा?

~ मीनेश चौहान
फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश

खुद को निर्दोष साबित करने को क्या
अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा,
दुर्योधन से चरित्र वालों के सम्मुख क्या
मुझे आग में जलना होगा,
नारी ही क्यों दे परीक्षा,
पुरूष क्यों आजाद रहें
बंद करो इस  भेदभाव को
समान अधिकार  दोनों के रहें ।
सीता ने क्यों दी अग्नि परीक्षा
क्यों चुप रह कर सब जुल्म सहे,
किस अपराध में, राम ने छोड़ा
क्यों सीता कुछ न कहे l
इंसान हैं, कोई देव नहीं है
परखने का कोई मापदंड नहीं है,
भरोसे की भी हो समीक्षा
आवश्यक नहीं है अग्नि परीक्षा l

  ~ परमजीत कौर
   ग़ाज़ियाबाद, उ. प्र.

देना पड़ता है हरदम,
 सच्चे को ही अग्नि परीक्षा
 कभी नहीं होती है,
किसी छली कपटी,
की कोई अग्नि परीक्षा।
जितना दावे जो करता है,
उतना ही झूठ वो कहता है ।
सच तो सच होता है,
परखना नही महसूस,
करना पड़ता हैं।
जिंदगी कठिन है बहुत कठिन है,
तैर कर भवसागर,
पार कर जाना
सारे अच्छे कार्य कर,
बेदाग निकल जाना।
बच - बच कर जो चलता है,
देता वही है अग्नि परीक्षा।
कर के दुष्कर्म बच जाते हैं
सत्कर्मी ही फंस जाते हैं। 
होती उनकी ही अग्नि परीक्षा।
अक्सर नारी ही
देती  है अग्नि परीक्षा,
नर कभी इल्जाम,
न खुद को देता
दिनभर सबका जो करती है,
हजारों सवाल समाज,
उससे ही करता है।
कैसी है ये विडंबना,
नारी जहाँ पूजी जाती है,
गलती किसकी भी हो,
दोष उसको ही मिलता है
देती वही है अग्नि परीक्षा।
राम की बात अलग थी
आदर्श जनता को
प्रस्तुत किया था।
नहीं है अब वो परम्परा,
आज प्रजा को ही,
देनी पड़ती हैं अग्नि परीक्षा।

~ वन्दना झा
  रायपुर, छ. ग.

त्रेता युग से कलियुग तक,
प्रेम पथ से कर्तव्य पथ तक
युग-युग के हर मोड़ पर,
जीवन लेता है अग्निपरीक्षा।
यह परीक्षा अनिवार्य है ,सबको देनी पड़ती है,
पग-पग पर परेशानियाँ मिलती,
उसको सहना पड़ती है।
जवानों को अग्निपरीक्षा में,
देश की ख़ातिर तपना है,
तब कहीं जाकर सुरक्षा में,
हर सपना अपना है।
किसानो को भी खेतों में,
अन्न की ख़ातिर खपना है।
वसुधा को हरा वसन दे कर,
सबकी क्षुधा शांत करना है।
चाहे वो आम हो या ख़ास,
सबको अग्निपथ से गुजरना है।
बड़े बड़े सूरमाओं को भी,
खुद को सिद्ध करना है।
क्या साधु क्या संत, महात्मा,
कोई न इससे बच पाया है।
राजा हो या रंक सभी का,
जीवन ने कहीं न कहीं इम्तिहान लिया है।
क्या सीता, क्या भक्त प्रह्लाद,
सबने अपने को सिद्ध किया,
जीवन के अग्नि पथ पर,
हरीशचंद्र ने क्या कम इम्तिहान दिया।
इस कोरोना से लड़ना ,
क्या अग्नि परीक्षा से कम है ?
फिर भी विज्ञान अपने हौंसलों से,
वैक्सीन बनाने में सक्षम है।
अग्नि पथ सम जीवन में,
हौंसलों की उड़ान उड़ना है,
संघर्षों की इस परीक्षा से,
हमको क़तई न घबराना है।
ज्यूँ स्वर्ण तप तप कर और अधिक निखरता है,
हर कसोटी पार कर हमको भी 
खरा उतरना है।
अग्निपरीक्षा की इस घड़ी में,
देश बिलकुल नहीं डरा है।
अपने बुलंद हौसले से जो,
प्रधान सेवक ने जोश भरा है।
दृढ़ निश्चय की ताक़त से 
भारत का परचम फहराना है,
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के नारे को,
पूर्ण सम्मान दिलाना है।

~ दिलखुश धाकड़
 इंदौर, मध्य प्रदेश