
मैं शब्द हूँ!
नौ रसों की अभिव्यक्ति का कोष हूँ।
वर्ण-वर्ण के मेल से,
सार्थक शब्दों में ढलकर,
मैं अपनी महत्ता का अहसास कराता।
मैं शब्द हूँ!
ज्ञान का धारक,उदगारों का संवाहक,
कुछ मघुर कुछ तिक्त हूँ ,
कुछ प्रेमरस से सिक्त हूँ।
मैं शब्द हूँ!
कवि की कोमल कल्पना से नि:सृत,
मधुर संगीत हूँ।
तो रोष में भरकर क्रांति का बिगुल भी मैं,
जब से मानव ने शब्द गढ़ा,
तब से उसके इतिहास का प्रमाण भी मैं हूँ।
मैं शब्द हूँ!
कोमल वाणी में ढलकर,
आनन्द का सार बनता।
तो कभी वाणी से गरल उगलकर,
विच्छेदन का कारक बनता।
क्रोध,घृणा,प्रेम,करुणा
अनेक भावों का सूत्रधार हूँ मैं।
मैं शब्द हूँ!
'दिनकर' का ओज ले,
वीरता का मर्म बताता।
कभी 'बिहारी' के श्रृंगार रस से लिपटकर,
प्रेमी युगल के चित्त को भाता।
मैं ही व्यंग्योक्ति बन ,
महाभारत का युद्ध रचाता,
जहाँ अपनों का ही शोणित बहता।
मैं ही ग्रंथों में सजकर,
समाज का दर्पण कहलाता।
मैं शब्द हूँ!
नौ रसों की अभिव्यक्ति का कोष हूँ।
~ सीमा सिन्हा
पुणे,महाराष्ट्र।
अक्षर-अक्षर, चुन कर लाऊँ।
इन्हें पिरो कर, शब्द बनाऊँ।
शब्द-पुष्प और नेह की डोरी,
श्री चरणों में, प्रथम चढ़ाऊँ।
सृष्टि सा, सम्मोहन जिसमें,
राधावल्लभ, मोहन जिसमें,
देवलोक की , इसमें आभा,
छंद, सोरठा, गीत बनाऊँ।
श्री चरणों में, प्रथम चढ़ाऊँ।
दयादृष्टि और करुणा भाव,
पावनता औ सरल स्वभाव,
स्वरलहरी सी गूँजे ध्वनियाँ,
सहज, सरसता इसमें लाऊँ।
श्री चरणों में, प्रथम चढ़ाऊँ।
शब्द, भाव का गहरा सागर,
भर ली मैनें, मन की गागर,
शब्द-शब्द, माणिक मोती से,
इन्हें गूँथ मैं, हार बनाऊँ।
श्री चरणों मे, प्रथम चढ़ाऊँ।
~ उमा विश्वकर्मा
कानपुर, उत्तर प्रदेश
शब्द में वह शक्ति है जो, दुश्मनी को तोड़ दे ,
शब्द में वह भक्ति है जो, प्रेम पथ पर मोड़ दे।
शब्द ख़ंजर से बड़ा, उर में लगाता घाव है ,
शब्द ही वह औषधि, टूटे दिलों को जोड़ दे ।।
शब्द से ही मेल, अंतर शब्द से बढ़ जायेगा ,
शब्द एक वरदान,जब वो धर्म पर मुड़ जायेगा।
शब्द ही अभिशाप बनता,पाप से जब मेल हो,
शब्द अभिव्यक्ति अगर वह,तर्क से जुड़ जायेगा।।
शब्द निर्गुण ब्रम्ह है , और शब्द ही हर मंत्र है ,
शब्द में सिमटा हुआ , यूँ विश्व का हर तंत्र है
शब्द चिंगारी लगादे , आज सारी श्रष्टि को ,
शांति का रास्ता बताये , बुद्ध का वह मंत्र है ।।
शब्द ही है ब्योम ब्यपित, सत्य की आराधना,
सत्य ही है शून्य नादित,ऋषि जनों की साधना।
शब्द शाश्वत है सनातन , धर्म की उपासना ,
शब्द में ही ईश व्यापित, भक्ति की अवधारना।।
शब्द को अब प्रेम पथ पर, प्रेम से तुम मोड़ दो ,
शब्द से विद्ध्वंश करना, साथियो अब छोड़ दो।
शब्द संस्कृति की धरोहर , कर्म की पतवार है ,
कर्म की नौका को इसके,हाथ में अब छोड़ दो।।
~ आर. बी. सिंह परिहार
गुना (म.प्र.)
शब्द हृदय की हरे पीर जो,
मित्र भाव को पनपाता है |
शब्द विनय शुभ करे सदा ही,
सबको सुख उपजाता है ||
शब्द ज्ञान का द्योतक होता,
अज्ञान तिमिर को हरता है |
करे सफल वो जीवन उन्नत,
श्रेष्ठ पदों को वरता है ||
ज्योतित करता ज्योति प्रदाता,
अमृत निज मन में भरता है |
शब्द घाव जो भरें कभी ना,
तन मन दूषित करता है ||
शब्द सम्हाले हित जीवन का,
सम्यक् भाव प्रदाता है |
जग में सुख शांति का दाता,
साख्य भाव उपजाता है ||
शब्द क्रूरता वैर कराता,
जीवन में विष घोले जो |
शब्द महाभारत करवाता,
शत्रु हृदय उपजावे वो ||
निकल शब्द ना वापस आते,
तोल बोल फिर बोले बोल |
शब्द हमें आशीष दिलाते,
शब्द जहर क्यों घोलें बोल ||
मन वाणी का भाव एक हो,
जीवन शुभ नेह पनपता है |
अपनेपन का भाव प्रगट हो,
हृदय प्रेम सुख भरता है ||
सोचो समझों समझ समझ कर,
सम्यक् शब्द किलकारी रहे |
समझ समन्वय समता मूलक,
निर्मल हृदय फुलवारी भरे |
~ डॉ.निर्मल कुमार जैन
टीकमगढ़, मध्यप्रदेश
शब्द एक संकल्पना,
भाव अनेक लगाय।
जिसकी जैसी भावना,
भाव रहा बरसाय।
शब्द शब्दस: वर्तनी,
यदि भाव न निर्मल होय।
भाव-अभाव के मेल में,
मरम बचे नहिं कोय।।
मन-मानुष शब्द टटोलते,
जेहिं वाणी अमिय सुहाय।
ईर्ष्या-तृष्णा भूलते,
तृप्त करहिं हिय जाय।।
शब्द हृदय छलनी करें,
जेहिं सूई चुभ-चुभ जाय।
शब्द करें उपचार भी,
अंतर्मन घुल जाय।।
मधुर-शब्द सम कछु नहींं,
द्वेष-कलेश मिटाय।
बाती-दीया के मेल से,
सहज मोम पिघलाय।।
शब्द तोलकर बोलिए,
जिमी कुंदन जाय तुलाय।
सअर्थ शब्द-रस घोलिए,
हित-अनहित हिय धाय।।
शब्द चुनें कंटक सरिश,
शूल समान विषाय।
शब्द मंजरी से चुनें,
हृदय घाव मिट जाय।।
शब्द वार अदृश्य से,
पावन मन टूटि जाय।
हृदय विदारक शब्द से,
जेहिं टूटे जुड़ नहिं पाय।।
कर जोड़े विनती करें,
नित-नित शीश नवाय।
शब्द मधुर चयनित करें,
जेहिं मन संताप मिटाय।।
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