हिन्दी काव्य कोश- पिता


विस्तार गगन सा विस्तृत उसका,
जिसके चरणों में ये धरा जहान है।
छांव में उसके जीते हम,
उस पिता से मेरी पहचान है।।
बिन उसके व्यर्थ है ये जीवन,
सब फीके वेद पुरान हैं।
पकड़ कर उंगली चलना सीखा,
वह पिता मेरा अभिमान है।।
वह शब्द तो मैं अर्थ उनका,
हम एक दूसरे की जान हैं।
नहीं जगत में कोई उनसा,
वह पिता मेरी शान हैं।।
कंधे पर बैठ कर उनके,
इस संसार को निहारा है।
उनकी मीठी बातों से,
बनता भविष्य हमारा है।।
प्रेम का सागर भरा है मन में,
जब चाहे डुबकी लगाऊं मैं।
बिन व्रत के इस धरती पर,
ईश्वर को ही पा जाऊं मैं।।
घर की रहती जिम्मेदारी,
हम सबका बोझ उठाता है।
खुशी के मोती ढूंढने को,
जग में डूबता है उतराता है।।
गर्व मुझे है हे जीवन दाता,
हम उसकी संतान हैं।
है कुलश्रेष्ठ हम वंशज जिसके,
उस पिता से मेरी पहचान है।।

~ आशुतोष मिश्र
महाराजगंज, उ0प्र0

बच्चों का मधुमास पिता है,
बचपन का विश्वास  पिता है।
हंस कर भूखा रहने वाला,
अति पावन उपवास पिता है।
जीवन के वो स्वप्न सुनहरे,
बच्चों की आंखो मे जीता।
अंतस की अभिलाषाओं को,
रोज दबाता,पल पल रीता।
अपनों के जीवन से करता,
जो कष्टों का नाश, पिता है।
बच्चों का मधुमास, पिता है।
अपनों की उम्मीदें लेकर,
रोज निकलता है,वो घर से,
बाहर से कठोर है जितना,
उतना कोमल है,भीतर से।
अनुशासन की सीमा है तो,
सपनों का आकाश,पिता है।
बच्चों का मधुमास पिता है।
जीवन भर बच्चों के खातिर,
अपने सुख का  भाग दिया।
किन्तु बुढ़ापे में बच्चों ने,
उसी पिता को,त्याग दिया।
शिथिल अंग जर्जर काया का,
सहता जो उपहास,पिता है।
बच्चों का मधुमास पिता है।

~ नीरज शर्मा
सीतापुर उत्तर प्रदेश

पिता तुम्हारे प्यार पर,क्या लिख दूँ मैं गीत।
आप नहीं जो पास में,वक़्त बना ज्यों तीत।
वक़्त बना ज्यों तीत,प्रीत का दिखता टोटा।
अपने में सब लीन,दिखे हर रिश्ता खोटा।।
कह सतीश कविराय,दिखें अब दिने में तारे।
क्या लिख दूँ मैं गीत,प्यार पर पिता तुम्हारे।।
सेवा कर पाया नहीं,सरस आपकी तात।
माँ भी अब दिखती दुखी,चिंतित दिन अरु रात।।
चिंतित दिन अरु रात,भजन तक कर नहिं पाती।
रटे एक ही बात,बहू घर इक ठौ आती।।
कह सतीश कविराय,कहाँ से पायें मेवा।
सरस आपकी तात,नहीं कर पाया सेवा।।
साया सिर पर बाप का,बहुत ज़रूरी यार।
पिता ज़िन्दगी में रहे,बनकर ख़ुद करतार।।
बनकर ख़ुद करतार,हरे ग़म हर इक सुत का।
बिना पिता के मीत,लगे जीवन ज्यों बुत-सा।।
कह सतीश कविराय,सताये निशिदिन माया।
बहुत ज़रूरी यार,बाप का सिर पर साया।।

~ सतीश तिवारी 'सरस',
    नरसिंहपुर (म.प्र.)

पिता जीवन कहानी का ,प्रथम किरदार होते है
खड़ा जिस पर है एक परिवार ,वो आधार होते है
पिता बच्चों की खुशियों का, सफल अंबार होते है
धरा पर वो प्रभु का ही ,तो एक अवतार होते है
पिता जीवन कहानी, खता गर हो गई हमसे
उतरती आंख में लाली किया जो काम एक अच्छा,  
बजाते वो प्रथम ताली, सीख से जिसने है सींचा,
पिता ही तो है वो माली, भुलाकर भूख भी अपनी
कमाई जिसने है थाली, पिता जीवन कहानी
धरा है घर की मेरी माँ, पिता छत अंबर जैसे हैं
देह घर की बनी है माँ, पिता ने प्राण फूंके हैं
चढ़े जब पीठ पर उनकी, खिलौने सारे झूठे हैं
पिता को सामने पाकर, बिगुल बच्चों ने फूंके हैं
पिता जीवन कहानी
पिता की गोद में हमने ,सदा सुख चैन पाया है
सुरक्षित जो हमें रखे, पिता ही तो वो छाया है
पिता से ही हमें ,दुनियाँ का ये दस्तूर आया है
निभाके चलना है सबसे, पिता ने ही सिखाया है
पिता जीवन कहानी के 

~ डॉ मंजू स्वाति
आगरा ,उत्तर प्रदेश

केन्द्र बन परिवार का परिधि से बाहर जाता नहीं 
पिता है वो जो किसी भी स्थिति  में घबराता नहीं 
अहसानों का नहीं  अहसासों  का ही है ये रिश्ता  
हमेशा परिवार का सम्बल बनता  है वो फरिश्ता 
बेटे हों या बेटियाँ सबकी प्रेरणा का स्राेत बन हमेशा 
बच्चों की सफलता के लिए जीवन भर ख़ुशियों की 
सौग़ात लुटाकर बिना किसी स्वार्थ के फर्ज निभाता है 
पिता  मार्गदर्शक बन सफलता की राह दिखाकर 
चुपचाप अपनों की सफलता पर गर्वित हो शान्त भाव से
निरेपेक्ष हो कर बॉंसुरी सा मधुर स्वर मन में गुनगुनाता है 
पिता ही है जो सन्तान के लिए अपने से आगे बढ़ने की 
प्रार्थना , दुआ , अरदास,करता है मन्दिर , मस्जिद ,गुरुद्वारा 
गिरजे में जाकर अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नई पीढ़ी को 
सर्वधर्म समभाव ज्ञान देकर मानवता का पाठ सिखाता है 
पिता  है वो  जो   किसी   भी   स्थिति में घबराता नहीं ।।

     ~ निहाल चन्द्र शिवहरे
             झॉंसी, उ.प्र.