हिन्दी काव्य कोश- पथिक

 
लक्ष्य पाना है सभी को, 
कर्म करके देखिए। 
मार्ग लंबा हो भले ही,
पथिक बनके देखिए।। 
थाम लें पतवार कर में, 
नाव सागर में पड़ी। 
ना डरें तूफान से भी, 
शांत रहके देखिए।। 
जो डरा वह मर गया-सा,
है मृतक किस काम का। 
खौफ़ के आगे विजयश्री, 
विजय चखके देखिए।। 
एक नन्हे कीट से भी,
ले सकें जो प्रेरणा।
कल्पना में आप चींटी,
 मान करके देखिए।। 
भाग्य बनता कर्म से है, 
कर्म से ना हों विमुख।
हो भला जब कर्म से यह, 
योग करके देखिए।। 
वृक्ष परहित प्राण धरता, 
नीर निज ना आपगा। 
आपदा में शांत मन से,
धीर धरके देखिए।। 
क्रोध की ज्वाला विकट है, 
राख सबको कर सके। 
शांत ज्वाला जो करे वह, 
नीर बनके देखिए।। 
स्वप्न ऊँचा देखना फिर, 
पूर्ण करना उचित है। 
वृक्ष ऊँचा बन सके वह, 
बीज बनके देखिए।। 

- नीलम कुलश्रेष्ठ, 
गुना, मध्य प्रदेश

ऐ पथिक, तू लगा दौड़
चल जा छू ले उत्तुंग शिखर
कोई मार्ग ऐसा कठिन नहीं
जिस पर तू नहीं चल सकता
ऐ पथिक, तू लगा दौड़
चल जा छू ले उत्तुंग शिखर।
अवरोधों का होगा पर्वत
उन्हें देख नहीं होना विह्वल
खड़ा काल तेरे सम्मुख होगा
पर,डिगना नही रहना अटल
ऐ पथिक, तू लगा दौड़
चल जा छू ले उत्तुंग शिखर
पैरो में चूभेंगे शूल असंख्य 
रक्त से पांव होगा लथपथ
पर,मुख से तेरे निकले न आह
रुकना नहीं तू कहीं हारकर
ऐ पथिक, तू लगा दौड़
चल जा छू ले उत्तुंग शिखर
सम्मुख आयेंगे कितने मोड़
बढ़ते रहना निर्भिक,निडर
जो कर ले तू मन में संकल्प
तो अवश्य छू सकता है नभ
ऐ पथिक, तू लगा दौड़
चल जा छू ले उत्तुंग शिखर !

~ सुभद्रा मिश्रा
मधुबनी(बिहार)

सोचना क्या चल पड़े जब 
बन पथिक हम राहों  पर 
मुड़कर फिर देखना क्या
जो खो गए इन राहों पर 
नित सफ़र करना जरुरी है
नवदृष्टि की तलाश कर ले
पथिक अपनी पहचान कर ले
जीवन के पथ पर चलता चल
मन चाहे भी राही मिलेंगे 
अन चाहे भी राही मिलेंगे 
चुनना ना होगा आसान
कितने पराए अपने होंगे 
कितने अपने पराए होंगे
मुश्किल होगी पहचान 
चयन न होगा आसान
पथ पर करना तुम सबका सम्मान 
गिरने न देना ख़ुद का स्वाभिमान  
कदम-कदम पर ठोकर होंगे 
देख के तुम को चलना  होगा 
गिर के फिर संभलना होगा
दुनिया की भीड़ में 
खुद को न खोने देना
कितने साथी साथ चलेंगे 
कितने राही राह बदलेंगे  
तुम्हें  क्षितिज तक जाना है
अलग पहचान बनाना है
अपनी मंजिल को पाना है।

~ तनुजा श्रीवास्तव
  नोएडा उत्तर प्रदेश

मैं पथिक हूँ चल रहा ज़िंदगी की रेल में
विषमताओं को झेल रहा खेल ही खेल में
पर्वतों सा कठिन जीवन मेरा
जी रहा हूँ सुख-दुख के मेल में
कभी सफलता कभी विफलता आड़े खड़ी
कर्मरत रहना तू हर घड़ी
हौसला अपना सदा बुलंद रख
चाहे कितनी बिखरीं हो बाधा की लड़ी
अपने पराए का भेद भी तू जान ले
खींचे भंवर से जो उसको तू पहचान ले
तभी उभरेगा गमों के ढेर से
निराशा में भी आशा को जान ले
ज़िंदगी एक युद्ध का मैदान है
अनवरत चल रहा संग्राम है
प्रेम और बुद्धि से इसको जीतना
वरना पिछड़ जाएगा सांसारिक जेल में
उलझनें भटकाएंगी हर कदम
सोच उत्तम रख है परीक्षा हरदम
ध्यान कर  उसका जिसने जीवन दिया
हर पल हर क्षण तेरा मार्गदर्शन किया
झुकना नहीं डरना नहीं बस चलते जाना है
दुर्भाग्य को नेकी का भाग्य बनाना है
पतझड़ आए चाहे हो बसंत
याद रख ईश ही आदि ईश ही अंत
मानव तो बस पथिक है उसके रचाए खेल में
मान शुभ है अपमान से ना सरोकार रख
केवल तू सतकर्मों का व्यापार रख
चल चलाचल बन पथिक हंसता हुआ
भ्रमणशील है कुछ क्षणों का याद रख
मत भूलना इसको रेलमपेल में!!!

~ प्रीति कपूर
शालीमार बाग ,दिल्ली

पथ प्रदर्शित करो प्रभु, पथिक हूँ कई राहों की
उलझनों में हूँ, किस पथ की गामिनी बनूँ
भौतिक सुखों की चाह में, पथिक बन चलती हूँ मैं
मृगमरीचिका सी है डगर, जिसपर भटकती हूँ मैं ।
मृगतृष्णा में फँस, इच्छाओं को पकड़े हुए
थक गयी हूँ मैं अब यूँ ही चलते हुऐ
पथ प्रदर्शक बन, मोह मेरा भंग करो
बाँह पकड़ ले चलो, इसमें अपना रंग भरो ।
पथिक बनूँ तेरी राह की, ऐसी अनुकम्पा करो
कर्तव्य संसारिक भी करूं, ऐसी तुम कृपा करो
दोंनो जहाँ की पथिक बन, प्रयास करती रहूँ
पथ प्रदर्शक तुम बनो, श्रद्धा से भरी रहूँ ।
न जाने कितने युगों से हूँ, बिछड़ी हुई
अब तुम इस रथ के सारथी बनो
अनुगामी बनूँ तेरी, पथिक बन चलती रहूँ ।
स्वांसों की लय टूटे, आध्यात्मिक यात्रा जारी रहे
जब तक  एकाकार न हो, पथ प्रदर्शित होता रहे ।            

~ परमजीत कौर
ग़ाज़ियाबाद उ प्र