नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।
संकल्प लो नव वर्ष में,
नैराश्य के प्रतिकर्ष का।।
बीता हुआ वह साल था,
संकट विकट विकराल था।
चहुँ ओर से थी आपदा,
हर आदमी बेहाल था।।
उम्मीद का यह साल है,
यह साल है निष्कर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
जब मुश्किलें आ जाएँ तो,
दुर्दिन समय दिखलाए तो।
गम का कभी तम छाए तो,
दुर्गम सा पथ बन जाए तो।।
हँसते चलो बढ़ते चलो,
जीवन का पथ संघर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
कोशिश सतत करता रहा,
हर हाल में लड़ता रहा।
दीपक अडिग बनकर मनुज,
तूफाँ में भी जलता रहा।।
था 'आप्त' इंतजार में,
नव द्वार के ही स्पर्श का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
मिट जाए जग से जल्द ही,
घनघोर काली कालिमा ।
उम्मीद की किरणें लिए,
आए प्रभाती लालिमा।।
आए समय खुशियों भरा,
अब फल मिले चिर मर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
चलते रहे गर तुम अथक,
तो हार बन जाये मिथक।
खुशदिल रहो हर पल अगर,
किंचित लगे ना पथ व्यथक।।
सर्वद मुदित मन से करो,
तय फासला हर अर्श का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
- इं० आशीष गुप्त 'आप्त'
मंगलमय तुम्हें प्रियवर!
नवल उल्लास मंगलमय
यही है कामना हो
लक्ष्य में विश्वास मंगलमय
ना विचलित हो दिशा से,
ना कभी भी भ्रम का संशय हो
बढ़ते ही चलो पग-पग,
हो मन में आस मंगलमय
ना हो अवरुद्ध पथ तेरा,
तेरी धारा तरंगित हो
मिले सागर से तेरी आत्म,
तुझे परमात्म मंगलमय
बनो तुम सूर्य सा उज्ज्वल,
नवल नित गीत सा गुंजित
हजारों मेघ नतमस्तक,
नया संसार मंगलमय
मंगलमय तुम्हें हो, प्रिय!
नवल इतिहास मंगलमय
मंगलमय तुम्हें "नववर्ष",
दिवस-नित-रात्रि मंगलमय ।
~ संवेदिता
नव वर्ष की बिहसति बेला में
नव सृष्टि का नव गान करेंगे ,
जिनके जख़्म भरे नहीं हैं
उनके जख़्मों पर प्यार धरेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
नफ़रत के बीज बोने वालों से
फिर से वाद - विवाद करेंगे ,
लोकतंत्र के रखवालों से फिर
खुल करके संवाद करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
स्वर्ग से सुंदर इस धरती पर
कदम जो नापाक पड़ेंगे ,
हम अपनी मर्यादा खातिर
उनके सीने पर पांव धरेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
जो भी आएगा द्वार हमारे
हम उसका सत्कार करेंगे ,
जो दुश्मन की भाषा बोलेगा
हम उसका प्रतिकार करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
जो बेटियों की इज़्ज़त लूटेगा
अब उस पर हम तलवार धरेंगे ,
जो देशद्रोह की बात करेगा
उसका हम बहिष्कार करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
संविधान से परे बातों को
कभी नहीं सम्मान करेंगे ,
अधिकारों को पाने खातिर
हम अपना बलिदान करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति ।
~ एम. एस. अंसारी
आत्मा शरीर बदल ज्यों
ले लेती है नवरूप,
सदृश समय आया समक्ष,
ले कर नववर्ष स्वरुप
विश्वजनीन हो यह अवसर,
लाया तू अपने संग अपार,
बीते क्षण संग बहुत कुछ छूटा
कर रहे वेदना, सब हाहाकार!
दंश - कष्ट मय कल था बीता
शेष तो बस है भयमय आज
संग तुम अपने नव शक्ति लाना
जो रोके मानव का अश्रुपात!
लौटा देना स्वच्छंदता हमारी
उन्मुक्ति के खोल कर तुम द्वार
प्रकृति अनुबंधित जीवन हो
यही वचन, सर्वोच्च विचार
भर देना तुम अन्नकोष
संपन्न भविष्य संग में लाना
विपदा आपदा रहित रहे
निरोग सुखी काया रखना
ईश्वर धर्म संगत रहे जीवन
क्लेश द्वेष मुक्त हो व्यवहार
कर्तव्यनिष्ठ हो कर्मपथ पर
शुद्ध , सरल हों विचार
कुछ प्रण कुछ संकल्पों को ले
नव वर्ष का प्रारंभ करें
प्रकृतिस्थ संतानसम व्यवहार हो
सार्थक तभी होगा यह वर्ष
छोटी शुरूआत से हो युगपरिवर्तन !
होगा संभव नव उत्कर्ष
चलो अबकी ले कुछ संकल्प
मनाएं प्रण संकल्प वर्ष
चलो मनाएं अबकी संकल्प वर्ष!!
~ दीप्ति प्रिया
गत वर्ष जा रहा है
नव वर्ष आ रहा है
किसी को लुभा रहा है
किसी को रुला रहा है
एक ओर एक हवेली
खुशियों में लिपटी हुई है
एक झोपड़ी वहीं पे
दुखड़ों में सिमटी हुई है
यहां महफिलें है रंगीन
वहां हाल खस्ता संगीन
यहां बोतलें सजी हैं
वहां रोशनी बुझी है
यहां सोना लदी कलाई
प्लेटो में रसमलाई
वहां भूख बिलबिलाए
आंखो में है रुलाई
वो ठंड से लिपटी हुई है
या ठंड उससे लिपटी हुई है
बड़ी अजीब है पहेली
जैसे हों दो सहेली
अधभरे पेट में घुटने डाले
एक खुद को संकुचा रही है
दूजी करती हुई ठिठोली
कोहरे की चादर डाले
उसको जमा रही है
कहना बड़ा है मुश्किल
नव वर्ष है ये कैसा
जिसके साथ जैसा बीता
लगे मुझको उसके जैसा
कहीं नव जीवन मिल रहा है
कोई सांसे गिन रहा है
कोई महफ़िल सजा रहा है
कोई भूखा निभा रहा है
गत वर्ष जा रहा है
नव वर्ष आ रहा है
~माला चौधरी
उत्साह नव उत्कर्ष का।
संकल्प लो नव वर्ष में,
नैराश्य के प्रतिकर्ष का।।
बीता हुआ वह साल था,
संकट विकट विकराल था।
चहुँ ओर से थी आपदा,
हर आदमी बेहाल था।।
उम्मीद का यह साल है,
यह साल है निष्कर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
जब मुश्किलें आ जाएँ तो,
दुर्दिन समय दिखलाए तो।
गम का कभी तम छाए तो,
दुर्गम सा पथ बन जाए तो।।
हँसते चलो बढ़ते चलो,
जीवन का पथ संघर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
कोशिश सतत करता रहा,
हर हाल में लड़ता रहा।
दीपक अडिग बनकर मनुज,
तूफाँ में भी जलता रहा।।
था 'आप्त' इंतजार में,
नव द्वार के ही स्पर्श का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
मिट जाए जग से जल्द ही,
घनघोर काली कालिमा ।
उम्मीद की किरणें लिए,
आए प्रभाती लालिमा।।
आए समय खुशियों भरा,
अब फल मिले चिर मर्ष का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
चलते रहे गर तुम अथक,
तो हार बन जाये मिथक।
खुशदिल रहो हर पल अगर,
किंचित लगे ना पथ व्यथक।।
सर्वद मुदित मन से करो,
तय फासला हर अर्श का।
नव वर्ष है यह हर्ष का,
उत्साह नव उत्कर्ष का।।
- इं० आशीष गुप्त 'आप्त'
ओबरा, उ०प्र०
मंगलमय तुम्हें प्रियवर!नवल उल्लास मंगलमय
यही है कामना हो
लक्ष्य में विश्वास मंगलमय
ना विचलित हो दिशा से,
ना कभी भी भ्रम का संशय हो
बढ़ते ही चलो पग-पग,
हो मन में आस मंगलमय
ना हो अवरुद्ध पथ तेरा,
तेरी धारा तरंगित हो
मिले सागर से तेरी आत्म,
तुझे परमात्म मंगलमय
बनो तुम सूर्य सा उज्ज्वल,
नवल नित गीत सा गुंजित
हजारों मेघ नतमस्तक,
नया संसार मंगलमय
मंगलमय तुम्हें हो, प्रिय!
नवल इतिहास मंगलमय
मंगलमय तुम्हें "नववर्ष",
दिवस-नित-रात्रि मंगलमय ।
~ संवेदिता
सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश
नव वर्ष की बिहसति बेला मेंनव सृष्टि का नव गान करेंगे ,
जिनके जख़्म भरे नहीं हैं
उनके जख़्मों पर प्यार धरेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
नफ़रत के बीज बोने वालों से
फिर से वाद - विवाद करेंगे ,
लोकतंत्र के रखवालों से फिर
खुल करके संवाद करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
स्वर्ग से सुंदर इस धरती पर
कदम जो नापाक पड़ेंगे ,
हम अपनी मर्यादा खातिर
उनके सीने पर पांव धरेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
जो भी आएगा द्वार हमारे
हम उसका सत्कार करेंगे ,
जो दुश्मन की भाषा बोलेगा
हम उसका प्रतिकार करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
जो बेटियों की इज़्ज़त लूटेगा
अब उस पर हम तलवार धरेंगे ,
जो देशद्रोह की बात करेगा
उसका हम बहिष्कार करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति।
संविधान से परे बातों को
कभी नहीं सम्मान करेंगे ,
अधिकारों को पाने खातिर
हम अपना बलिदान करेंगे ।
नववर्ष की बिहसति ।
~ एम. एस. अंसारी
कोलकाता, पश्चिम बंगाल
आत्मा शरीर बदल ज्योंले लेती है नवरूप,
सदृश समय आया समक्ष,
ले कर नववर्ष स्वरुप
विश्वजनीन हो यह अवसर,
लाया तू अपने संग अपार,
बीते क्षण संग बहुत कुछ छूटा
कर रहे वेदना, सब हाहाकार!
दंश - कष्ट मय कल था बीता
शेष तो बस है भयमय आज
संग तुम अपने नव शक्ति लाना
जो रोके मानव का अश्रुपात!
लौटा देना स्वच्छंदता हमारी
उन्मुक्ति के खोल कर तुम द्वार
प्रकृति अनुबंधित जीवन हो
यही वचन, सर्वोच्च विचार
भर देना तुम अन्नकोष
संपन्न भविष्य संग में लाना
विपदा आपदा रहित रहे
निरोग सुखी काया रखना
ईश्वर धर्म संगत रहे जीवन
क्लेश द्वेष मुक्त हो व्यवहार
कर्तव्यनिष्ठ हो कर्मपथ पर
शुद्ध , सरल हों विचार
कुछ प्रण कुछ संकल्पों को ले
नव वर्ष का प्रारंभ करें
प्रकृतिस्थ संतानसम व्यवहार हो
सार्थक तभी होगा यह वर्ष
छोटी शुरूआत से हो युगपरिवर्तन !
होगा संभव नव उत्कर्ष
चलो अबकी ले कुछ संकल्प
मनाएं प्रण संकल्प वर्ष
चलो मनाएं अबकी संकल्प वर्ष!!
~ दीप्ति प्रिया
मुज़फ्फरपुर, बिहार
गत वर्ष जा रहा हैनव वर्ष आ रहा है
किसी को लुभा रहा है
किसी को रुला रहा है
एक ओर एक हवेली
खुशियों में लिपटी हुई है
एक झोपड़ी वहीं पे
दुखड़ों में सिमटी हुई है
यहां महफिलें है रंगीन
वहां हाल खस्ता संगीन
यहां बोतलें सजी हैं
वहां रोशनी बुझी है
यहां सोना लदी कलाई
प्लेटो में रसमलाई
वहां भूख बिलबिलाए
आंखो में है रुलाई
वो ठंड से लिपटी हुई है
या ठंड उससे लिपटी हुई है
बड़ी अजीब है पहेली
जैसे हों दो सहेली
अधभरे पेट में घुटने डाले
एक खुद को संकुचा रही है
दूजी करती हुई ठिठोली
कोहरे की चादर डाले
उसको जमा रही है
कहना बड़ा है मुश्किल
नव वर्ष है ये कैसा
जिसके साथ जैसा बीता
लगे मुझको उसके जैसा
कहीं नव जीवन मिल रहा है
कोई सांसे गिन रहा है
कोई महफ़िल सजा रहा है
कोई भूखा निभा रहा है
गत वर्ष जा रहा है
नव वर्ष आ रहा है
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