हिन्दी काव्य कोश- समय

समय को जिसने पहचाना,
समय पर प्रण ठाना ।
निकल पड़ा मंजिल की ओर,
चाहे मिले अंधेरा घनघोर । 
कर्मो की डालता आहुति,
दृढ़संकल्पी,आश्वस्त प्रवृति 
ना रुकता, ना झुकता,
ना हार जीत में ऊलझता,
अपनी राह स्वंय बनाता,
ना भूतो,ना भविष्यति,
आज में है जीता,
जीवन का ध्येय पूरा करता 
वक्त भी उसको करता सलाम,
वो आदमी होता नहीं कोई आम 
इतिहास के पन्नें को पलटकर देखो,
महापुरुषों की जीवनी से सीखों 
समय होता है बलवान,
कद्र समय की, जिसनें की 
जग में बना वो महान,
समय की रेत पर छोड़ गया निशान ।

~ ज्योति सिंह
जमशेदपुर, झारखण्ड

मैं आया नहीं हूँ,हर पल रहता हूँ
मैं तो समय हूँ,पवन सा बहता हूँ।
मैं अनन्त हूँ, बलवान हूँ,शाश्वत हूँ
मेरे साथ चलो यही तो कहता हूँ।।
मैं गति हूँ, गतिमान हूँ रफ्तार हूँ
सूर्य चंद्र सितारों का अवतार हूँ।
साथ चलो  मैं हर जख्म भरता हूँ 
मैं समय हूँ,हर पल साथ रहता हूँ।।
मैं चल हूँ,अचल हूँ, मैं कल हूँ
मैं खुशी हूँ गम हूँ वर्तमान का बल हूँ।
सर्दी भी, गर्मी भी, हर मौसम सहता हूँ
मैं समय हूँ,हर पल साथ रहता हूँ।।
मैं काल,महाकाल ,मैं  देवकी का लाल हूँ 
दुःख भी मैं , सुख भी मैं , सृष्टि की चाल हूँ।
जल भी मैं , थल भी मैं , अग्नि में दहता हूँ
मैं समय हूँ , हर क्षण साथ रहता हूँ।।
मैं दिलों को जोड़ता हूँ , घमंड तोड़ता हूँ
मैं  स्वयं धर्म हूँ,अधर्म की राह मोड़ता हूँ।
मैं  कर्म के आधार पर कर्मफल पढ़ता हूँ
मैं समय हूँ, हर पल साथ रहता हूँ।।
मैं ज्ञान हूँ, विज्ञान हूँ, मैं ही निराकार हूँ
मैं  आंख हूँ, कान हूँ , नाद से साकार हूँ।
मैं रुकता नहीं , चलता हूँ, सतत बहता हूँ
मैं समय हूँ ,हर पल साथ रहता हूँ।।

~ पुरण दीक्षित
 सुरत, गुजरात

बीता समय पढ़ाये पाठ ,सुधरे कल की चाल, 
आंख मूंदकर जो चला, डगमगा जाए काल। 
दृढ़ निश्चय ,कर्मठता से बदले समय का रूप, 
बेसब्री, आलस्य से जीवन बने जाए कुरूप। 
वर्तमान में जो जिए, काल को भाए उसकी चाल, 
 स्वेदजल से जिसने सींचा, समय ने किया उसे बहाल। 
 समय का लेखा भी बदले, जब हो कोई बलवान, 
 सुदामा रंक से राजा हुए वक्त बड़ा मूल्यवान। 
टिक -टिक करके चलता जाए ,जीवन बढे़ अनवरत, 
 कभी हंसाए ,कभी रूलाए , रीत समय की शाश्वत। 
 द्रुपद सुता ने हंसकर किया, दुर्योधन का परिहास, 
 समय की करवट, से विवश हुए जाने को अज्ञातवास। 
 जकड़ लिया अंग्रेजों ने, देश पर छाया संकट काल, 
 शहीद लहू से तिलक हुआ ,लौटा देश का स्वर्ण काल। 
 जिस दर्द की दवा न कोई ,ना घाव का कोई मरहम, 
 समय लेप से घाव भरे ,दर्द भी हो जाए कम। 
समय को मानो सखा समान ,है बड़ा रूप कार, 
अच्छा बुरा जैसा भी हो, करो सहर्ष स्वीकार। 

 ~ सोनिका कुलश्रेष्ठ
     शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश

जागी आंखों का स्वप्न समय, कर्तव्य रथ का सारथी
भोर का प्रखर तारा समय, बलवान और महारथी,
सुप्त को जागृत कराता, जगते के भाग जगाता 
घड़ी समय की नित्य चलती, क्षण भर को भी ना रुकती,
समय सदा बलवान जगत में,महिमा कोई भांप ना पाया 
पीड़ा का झंझावात समय, काली अंधियारी रात समय,
अग्निपरीक्षा सीता की यह, मीरा का विषपान समय
राणा का विश्वासघात यही, अहिल्या का पश्चाताप समय,
रावण का अभिमान यही, विभीषण का संताप यही
रामचंद्र वनवासी हो गए, हरिश्चंद्र ने सब कुछ खोया,
ध्रुव तारे सा अटल समय, कालखंड में बंटा समय
सोते को सबक सिखाता, जागे को लक्ष्य दिखाता,
कभी सुई कभी तलवार समय,आर कभी तो पार समय
कर्ता, कर्म, कारक समय, सुख दुख की भाषा समय,
गया समय आता नहीं, कर लो लाख पुकार
समय रहे हर काज कर, मत कर सोच विचार।

~ अमृता पांडे हल्द्वानी 
   देवभूमि, उत्तराखंड

बनकर साथी समय का पहिया, 
जीवन पथ पर चलता जाये रे, 
कभी सुख कभी दुःख को लेकर,  
कभी हमें हंसाये कभी रुलाये रे।
जो ना करें समय का कद्र, 
वो पीछे छूटता जाये रे,
जो चले समय के साथ, 
समय भी उसी का हो जाये रे ।
चार दिन की ये जिंदगानी, 
धीरे धीरे बीतता चला जाये रे, 
समय का पहिया अपनी गति से, 
आज को कल में बदलता जाये रे 
समय ना रुका किसी के लिए, 
ना उसे कोई रोक पाये रे, 
वो तो अपने ही धुन में, 
बिन रुके चलता जाये रे ।
आदिकाल से वर्तमान तक,
इतिहास गढ़ता जाये रे, 
अपने अंतस में ना जाने कितनी, 
अच्छा बुरा समय समाया रे l 

~ अजय कुमार चौहान 

बालोद, छतीसगढ़ 

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