हिन्दी काव्य कोश- कविता

महज कुछ शब्दों के संयोग से बनी ,
भावनाओं की अभव्यक्ति है कविता ।
कुछ अलंकारों से सजी,कुछ रसों से सजी ,
भावनाओं की वृत्ति है कविता ।
समाज की बुराइयों से आहत ,समाज की कुरीतियों से घायल ,
कवि के अंतर्मन की द्वंद है कविता  ।
कभी नारी की वेदना ,कभी सिसकियों की संवेदना ,
तो कभी उनके मन की व्यंजना को कागज पर उकेरती है कविता ।
कभी प्रकृति के सौन्दर्य,कभी विज्ञान के उत्कर्ष ,
तो कभी संस्कृति की परिभाषा रचती है कविता  ।
कभी वीरों की गाथाओं ,कभी किसानों की व्यथाओं ,
तो कभी धर्म की दुविधाओं को मूर्त रूप देती है कविता ।
कभी प्रेम के अनकहे एहसास,
कभी विरह के असहय पीड़ा ,
तो कभी जनमानस के हर जज्बात को शब्दों में ढालती है कविता ,
जोड़ दे जो रूह से रूह को वो तार है कविता ।
महज कुछ शब्दों के संयोग से बनी
अनुपम उपहार है कविता ।

~ सौम्या कुमारी 
  बेगूसराय ,बिहार 

बासंती  हो  बयार  फिजाँ में,
मनभावन रुत चहुँ दिशि  हो जब,
प्रेमगीत  हों  दिल  में  बजते,
हृदय   हिलोरें   लेता  हो   जब,
नैनन  में  बस  जाती  है अरु, 
रमणी  पिय हिय  जब रमती है,
तब जाकर कविता बनती है।
विरह  वेदना  जब  उर  में हो,
ललना मिलन की हो उत्कंठा,
नहीं  मिलन  हो पाता हो अरु,
रहे   अधूरी   मन   की   मंशा,
ऐसे    में   प्रेमी   प्रीतम   की,
 क्रोध  में  भौंहें  जब  तनती हैं,
 तब जाकर कविता बनती है।
करुण हृदय मानव को जब भी,
करुण  दृश्य  दिखलाई   देता,
अश्रुधार    उसकी   बहती  है,
हृदय रुदन  है  उसका  करता,
दिल  उसका छलनी हो जाता,
रक्त  बिंदु   हर  सूं   छनती  है,
तब जाकर कविता बनती  है।
जब समसामायिक जीवन में,
विशिष्ट  कोई घटना घटती है,
हृदयविदारक   दृश्य  दीखता,
आत्मा  जब  चिल्ला  उठती है,
कहीं पै जब इतिहास है रचता,
और    नई    कथा    बनती   है,
तब जाकर कविता बनती  है।
प्रीत  सफल  हो  जाती है जब,
प्रीतम  को  मिल  जाती  प्यारी,
मृदुल  मधुर  सपनों  में ही जब,
जिन्दगी  गुजर   रही  हो  सारी,
पायल  जब  बजती है छन-छन
कँगन  खन-खन  जब  करती है, 
तब  जाकर कविता बनती  है। 

~ नरेश चन्द्र उनियाल,
 देहरादून, उत्तराखण्ड

जन्म लिया कुछ भावों ने, विचारों ने भाषा पढ़ डाली।
कुछ शब्द उकेरे लेखनी ने , 
हृदय ने कविता गढ़ डाली।।
कितने सुख दुख लिख डाले, सरिता प्रेम की बहा डाली।
प्रेमगान लिख डाले प्रेमी के, 
वो चांदनी रात सजा डाली।।
विरह वियोग में व्याकुल चकोर की,मधुर प्रभात लिख डाली।
अंतर्मन के कड़वे द्वंद्व छुपाकर, सब मीठी बात लिख डाली।।
बहती रही नदी भावों की, नौं रसों की कविता लिख डाली।
हर छंद लिख डाले हमने, हर भाव पर कविता लिख डाली।।
वीरों की गाथाएं लिखीं हमने, देश पर जान वार दिया।
अनगढ़ शब्दों की पोटली से, कुछ ना कुछ हर बार दिया।।
हो उठी लेखनी मतवाली, जब उसे प्रकृति का प्यार दिया।
सुगंध फैलाती कविता जब, शब्द भ्रमर का गुंजार दिया।।
मान लिखा सम्मान लिखा, 
हृदय का हर अरमान लिखा।
ब्रह्म मुहूर्त की बेला का, प्राची का रक्तिम आसमान लिखा।।
सृजन करके कविता का, 
कविता का अभिमान लिखा।
सुन्दर कविता बनी मनोहर, हृदय का कोमल गान लिखा।।

~ आशुतोष मिश्र
     महाराजगंज

कविता
किसी खाँचे में बँधी मात्र शब्दों की व्याख्या नहीं है
कविता !
अपने अगल-बगल बिखरी चीजों से
चैतन्य संवाद है
अनुभूति से अनुभव की ओर प्रस्थान करती
स्वानुभूति के साथ परानुभूति भी है ।
कविता !
भाषा में शब्दों की तूलिका से बनी
जीवन जीने और समझने की
एक गुम्फित तस्वीर है,
आत्मीय अहसास है
चोट की
चीख की
दर्द की
टीस की
भूख की
प्यास की
आनंद की
खुमार की
मस्ती की।
तरंगित संवेदनाओं का
जीवंत अनुवाद है।
यानी कविता क्या नहीं है!
कविता-
एक खास तरह की दृष्टि भी है
जो जीवन के
क्षितिज और ऊर्ध्वाधर भाषा में ढलकर
जीवन के पर्यावरण को
रेखांकित और रूपांकित करती है।
कविता -
जीवन के इर्द-गिर्द फैले
अपरमित ब्रह्मांड को
या उसके अनहदध्वनि को
देखने-सुनने की क्षमता है
सर्जना है!
कविता -
निहत्थे का हथियार है
फटे मन को जोड़ने वाली
सुई-धागा है।
कविता -
भाषा में संवेदनाओं की
जरखेज मिट्टी की
स्वादिष्ट और कड़वी उपज है।
कविता-
यथार्थ की
नये तेवर और कलेवर के साथ
नवीन कल्पनाओं के शिल्प में
ढली आत्माभिव्यक्ति है!
कविता-
करूणा की नींव से स्रावित
वेदना की पिघलती मोम है!
कविता-
सुख का सागर है तो
दुख का पहाड़ भी है!
क्या नहीं है कविता!!

~ डॉ मनोज कुमार सिंह
      गोरखपुर, उ.प्र.

कविता!
मस्तिष्क के पर्वत से निकली,
एक उच्श्रृंखलित नदी सी,
जो मन के उद्गारों को समेट कर,
झरनों के समान झरझर बहती हुई,
कभी खुशियों के कारवाँ से मिलकर,
मुस्कुराती,गाती,गुनगुनाती हुई।
कभी दुःखो के पाषाणों से टकराकर,
रोती,बिलखती,शोर करती हुई,
जीवन के आँगन में बहती रहती है।।
कविता! 
कभी तप्त रेगिस्तान  में,
स्वाति बूंद बन रस बरसाती हुई,
विरही हृदय को सरसाती हुई,
बिन प्रयास स्वतः निकलती हुई,
नयनों से अश्रुबन छलकती हुई,
हृदयाग्नि को बुझाती हुई।
कविता!
कभी खुशियों से हृदय को स्पंदित करती हुई,
कभी पी मिलन की धुन में,
मुस्कुराती,खिलखिलाती हुई,
कभी बिजली की पायल पहन थिरकती हुई,मटकती हुई।
कविता!  
जीवन  के, प्रत्येक भाव को दर्शाती हुई,
कभी खुशी कभी ग़म,
कभी बिरह कभी मिलन के,
गीत गाती हुई,
फूलों सी सुगंध बिखराती हुई,
कवि के हृदय से निकली हुई,
शीतल, निश्छल सरिता सी बहती हुई।
कविता! हाँ कविता! कविता भावों की सरिता।।

~ स्वर्णलता
   दिल्ली

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