हिन्दी काव्य कोश- संकल्प

यदि सफलता चाहता है 
मन में दृढ़संकल्प कर,
हारकर नहीं बैठना है, 
अंत तक संघर्ष कर,
मर गए कुछ सपने तो क्या ,कुछ तो अपने पास हैं,
फिर खड़े हो जाएंगे जो दिल में जिंदा आस है।
भोर की पहली किरन लाती उजाला छीनकर,
पौधा भी उगता तभी, सीना धरा का चीरकर
प्रचंड रवि को मात देता इतना शीतल सुधाकर,
हारकर नहीं बैठना है अंत तक संघर्ष कर।
धूल बन आज राह की,कल माथे चंदन होगा,
जो आज संयम से गुजर गया, कल निश्चित अभिनंदन होगा
पतझड़ के डर से क्या कभी उपवन खिलना भूल गए,
फिर तुम तो जिंदा मानव हो,
क्यों कुछ झोंकों से झूल गए।
नाकामियों से सीख तू
चुनौतियाँ स्वीकार कर
हार कर नहीं बैठना है 
अंत तक संघर्ष कर
पथ कठिन हो सकता है
पर काँटे चुन चुन आगे बढ़
ग्रंथ पढ़ सकता तभी जब एक एक अल्फ़ाज़  पढ़।
सो के सपनें देखे हैं जो,
पूरे करने तो नींद तज,
स्वस्थ रहना है तो कटु औषधि भी हंँस के चख
अपनी कोशिश कम न कर,
 बस वक्त का इंतजार कर,
हार कर नहीं बैठना है अंत तक संघर्ष कर।
गर सफलता चाहता है मन में दृढ़ संकल्प कर,
हार कर नहीं बैठना है अंत तक संघर्ष कर।

~ दीप्तिमा
अलीगढ़, उ.प्र.

संकल्प हो ऐसा
कि कल्पना यथार्थ हो जाए
मुश्किल से मुश्किल ध्येय भी
चरितार्थ हो जाए
एकलव्य की भांति
बिन गुरु भी ज्ञान प्राप्त हो जाए
संकल्प हो ऐसा
कि कल्पना यथार्थ हो जाए।
संकल्प हो ऐसा
कि प्रारब्ध बदल दे,
उठते प्रश्नचिन्हों को
निशब्द कर दे,
भगीरथ की भांति
गंगा को धरती पर ला दे,
संकल्प हो ऐसा
कि कल्पना यथार्थ हो  जाए
मुश्किल से मुश्किल ध्येय भी
चरितार्थ हो जाए।
संकल्प हो ऐसा
कि अंधकार को चीरकर दामिनी पैदा कर दे
आंधियों में दीप जलाकर
मार्ग को आलोकित कर दे
सावित्री की भांति
सत्यवान के लिए यम को विवश कर दे
संकल्प हो ऐसा
कि कल्पना यथार्थ हो जाए,
मुश्किल से मुश्किल ध्येय भी
चरितार्थ हो जाए।

 ~ नीलम कार्की
पिथौरागढ, उत्तराखंड

आओ मिलकर पावन 
मन मन्दिर में
कृत संकल्पों के नव दीप जलाएं
दीन हीन जन की प्रस्फुटित
मन्द मन्द स्मित बन जाएं
असहाय बेबस लाचार न हो कुंठित
कृत संकल्पों के मुदित दीप जलाएं।                
 भव सागर है संघर्षों से भरा
 न हो भ्रमित पथ, सरल सुगम बन जाये 
 जीवन जय पराजय  से भरा
 कृत संकल्पों के विजित दीप जलाएं।                 
 शरीर स्वस्थ हो और मन सहर्ष
 मद, क्रोध, द्वेष रहित हो जाएं
 असत तम हृत हो सत उत्कर्ष
 कृत संकल्पों के  विदित  दीप जलाएं।               
  मर्यादा  की राह चुने
  न्याय के पथ से डिग न जाये
  वृद्धों की सेवा नारी का सम्मान करें
  कृत संकल्पों के पुनीत दीप जलाएं।                  
  मेहनत से कपड़े चाहे हो मैले कुचले
  श्रम का हक मिले जीवन जगमगाए
  सब हो अपने रिश्तों में मिठास घुले
  कृत संकल्पों के सुहासित दीप जलाएं।
  आओ मिलकर पावन मन मन्दिर में
  कृत संकल्पों के नवीन दीप जलाएं।

               ~ मनीषा सिंह जादौन
                   जालोर, राजस्थान

एक संकल्प !
सीमा पर डटे हुए 
उन वीर जवानों का
सीना गोलियों से छलनी हो जाए 
खून का कतरा कतरा बह जाए
 दुश्मनों को धूल चटाने का
 देश को नहीं झुकने देने का ।
 एक संकल्प !
 उस नारी का
 कुल की मर्यादा पर 
कलंक ना लग पाए
 किसी स्त्री का सर 
शर्म से ना झुकने पाए 
कोई नारी अबला ना रहे 
सबला बन विश्व पटल पर
 देश का गौरव बढ़ाएं ।
 एक संकल्प ! 
उस तरुणाई पीढ़ी का
राह से ना भटक पाए 
युवा जोश से भर कर
 देश का नाम रोशन कर जाए ।
 एक संकल्प !
उस किसान का 
मिट्टी में जो मेहनत कर लहलहाती फसल उगाए
 खुद मिट्टी के घरों में रहकर
 देश को धन्य धाम से परिपूर्ण कर मिट्टी का कर्ज 
सदा निभाता जाए ।।
 एक संकल्प ! 
उस कवि का
 जो अपनी लेखनी से 
समाज में अलख जगाए
 समाज को और देश को
 अंधकार से उजाले की तरफ ले जाए ।।
 एक संकल्प !
एक संकल्प खुद से खुद का 
जिस थाली में खाएं उसमें
 छेद ना हो जाए 
देश का गौरव मान बढ़ाएं 
देश की  प्रगति में 
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे
अपना फर्ज निभाया ।।

~ कमल राठौर साहिल
   शिवपुर, मध्य प्रदेश 

नूतन काल तुम्हारा है।
सतत अटल,विजयी रहा
 विश्राम लिया वह हारा है।।
त्याग करो सकल-सुख ,
यह पथ  सुगम सरल नहीं।
 वह दीप लक्ष्य कैसे छूए,
ईप्सा,संकल्प प्रबल नहीं।।
रहे अजस्र  लग्न अंतस में,
पथिक-कदम  रुके नहीं।
प्रारब्ध लिखें ,बींध बाधा दुर्ग,
अक्षय वीर झुके नहींं।।
अकाल ध्वांत-दामिनी भरो,
समग्र व्योम तुम्हारा है।
संकल्प-संजीवनी पीने वालो,
नूतन काल तुम्हारा है।।
उर के प्रश्न नीरव कर दो, 
दिन-क्षपा ‌ श्रमदान करो।
उत्सवों का  लंघन कर दो, 
श्रम-यज्ञ अनुष्ठान करो।।
बदलो  मार्ग नदियों का ,
बहा दो निर्झर  चट्टानों से।
मधुर राग वादियों का,
रहे शस्य-शयामल मैदानों में।।
उतुंग-श्रृंग चढ़ जीने वालों
दे मेहनत भेंट किनारा है।
संकल्प-संजीवनी पीने वालों
नूतन काल तुम्हारा है।।

~ निलेश सिहाग
 हिसार, हरियाणा

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