हिन्दी काव्य कोश- मित्र


मित्र अलोकित दर्पण,
प्रमोदित जीवन करे ।
सर्वस्व अर्पण कर,
ना तनिक विचार करें ।
शब्द शस्त्र ना जान, 
मौन ही पहचान रहे ।
नैन स्नेह भरता ,
मन में सम सद्भाव जगे ।
मैं निर्गत हम बनता,
अपनत्व समभाव लिये ।
त्याग तप के भाव, 
सर्वस्व समर्पण उर रहे ।
प्रतिकूल में संग हो, 
इक दुजे की ढाल बने ।
पतझड़ में बहार बन,
परममित्र यह कार्य करे ।
मित्र बिन जीव नीरस,
न चाव रहे जीवन मैं ।
सखा संग साथ हो, 
ना अभाव रहे मन में ।
मिले मन हृदय जब ,
दोस्ती अविराम चले ।
चले चरण चिरकाल,
 उसे सच्चा मित्र कहे ।
कर्ण मित्र जस बने , 
जाने राज़ हृदय के ।
जब सखा सुदामा सा,
प्रेम अंतस मन में ।
तृप्ति भी मित्र बन,
रखती सहज़ हृदय में ।
अमिट छाप रहती ,
दोस्ती की जीवन में।

~ तृप्ति विरेंद्र गोस्वामी "काव्यांशी"

चाहे जितना रुचिर सजा हो इस जीवन का चित्र
कांति अधूरी जब तक उसमें रंग भरे ना मित्र। 
बचपन, यौवन और बुढ़ापा, हो कोई अध्याय 
जीवन के हर रस का मानो, मित्र बना पर्याय ।
नदिया पोखर, खेत मुंडेर, खट्टी इमली, मीठे आम 
बचपन याद किया, दृग में घिर आए सब चेहरे और नाम ।
जीवन क्रम में आगे बढ़ते, सहते चलते छाया धूप 
यारों,यार के चेहरे बदले, यारी का ना बदला रूप ।
स्मृतियाँ जोड़ी, अश्रु घटाया, ऐसा स्नेह जताया 
खुशियाँ दुनी, गम को भगा, सारा गणित निभाया ।
स्वयं कुटुंबी भी जब इक दिन,खुद को व्यस्त कहेंगे 
जीवन सांझ में, संग हँसने को, केवल मित्र रहेंगे। 
कोविद कहें, दंपति में भी, रखो मित्रों सा एहसास 
बालक भी षोडश हो जाये, रखो उसे मित्र सा पास ।
मित्र निधि अनमोल निधि है, नहीं कोई इसमें संशय 
प्रेम भाव से द्वेष दूर रख,सदा करो इसका संचय। 

~ चित्रा चेलानी 
पारादीप, ओडिशा 

मित्र एक आईना है ,जिसने झूठ कभी न बोला ।
 मित्र एक परछाई हैं ,जिसने साथ कभी न छोड़ा ।।
मित्र का कभी न मोल ,मित्रता हो ऐसी अनमोल।
 गम में भी साथ हो ,मन में विश्वास हो  । ।
अधीर मन की आस हो ,धड़कनों का एहसास हो ।
हंसी का एक तराना हो ,न ही कोई बहाना हो । ।
खुशी में मुस्कुराता हो, थोड़ा सा सताता हो ।
जीत हो न हार हो, दोस्ती की बहार हो । ।
न ही कोई स्वार्थ हो, दोस्ती ही परमार्थ हो ।
मिलने को सदा अधीर हो ,यादों की जंजीर हो । ।
जीवन पर्यंत तक, मित्रता का न अंत हो ।
कृष्ण जैसा साथ हो, अर्जुन जैसा पार्थ हो। ।
जीवन की एक चाह हो, सदा एक ही राह हो  ।
चाहे कोई भी हाल हो, मित्रता सदा मिसाल हो ।।

~ कृष्ण कुमार पाण्डेय. 
        दमोह म.प्र.

जीवन की  जटिल विपदाओं  में,
जो पग-पग पर साथ निभाता है,
विचलित   मन    हो   जाने   पर,
उम्मीद   का    दीप   जलाता  है,
सच्चा  मीत  वही   कहलाता  है।
मित्र   की  खुशी  में  खुश  सदा,
मित्र के दुःख में दुखी हो जाता है,
संतप्त दिल  को सांत्वना  देकर,
मरहम  बन  दुःख   हर   लेता  है,
सच्चा  मीत  वही   कहलाता  है।
लाखों  की  भीड़  में  रहकर  भी,
जो मित्र का कष्ट जान जाता हैं,
कृष्ण सरीखा साथी बनकर जो,
मन   सखा  का   पहचानता  है,
सच्चा  मीत  वही  कहलाता  है।
स्नेह  की  निर्मल   धारा  में  जो,
आत्मविभोर  सदा  हो जाता  है,
जाति धर्म का भेद  भूलकर  वो,
मिसाल दोस्ती की बन जाता है,
सच्चा  मीत  वही  कहलाता  है।

~ सीमा शर्मा
अहमदाबाद गुजरात

बँधे सूत्र हैं नेह रंग के,,
मित्रता गीत मल्हार है।
गंगाजल सा पावन रिश्ता,,
यह दोस्ती उपहार है।
पढ़े देख मुख, भाव हृदय के,,
"मित्र" व्यथित हिय को समझे  ।
मधुर शब्द तब उसके हरते,,
जीवन,कष्ट जिसे समझे।
दुःख अश्रु नयन उसके झलके,,
वह संताप प्रतिहार है।
यह दोस्ती उपहार है।
आपसी एक विश्वास मध्य,, 
पनपती मित्रता चहके। 
खिले फूल जहाँ दोस्ती के,,
खुशी वहाँ ऐसी महके।
प्रमुदित मन से मोती झरते,,
प्यारा स्नेह व्यवहार है।
यह दोस्ती उपहार है।
पथ अँधियारे राह बताता,,
परछाईं बन कर रहता।
बन सच्चाई का आईना,,
सब सुख वह बोया करता।
सात सुरों का मधुर संगीत,,
झरती रिमझिम फुहार है।
यह दोस्ती उपहार है।।
घनिष्ठ मित्र कर्ण- दुर्योधन,,
वर्णन गीता में मिलता।
कृष्ण बाल सखा सुदामा की,,
रंग मित्रता जग खिलता।
हर विपत्ति में साथ निभाये ,,
यही "मित्र" की चिन्हार है।
यह दोस्ती  उपहार है।।

~ करुणा किरन अथैया
   देहरादून, उत्तराखंड

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