
मधुर स्मृति के उपवन में
कैसे मैं सबको ले जाऊं
कैसी कैसी उलझन मन में
क्या रखूं और क्या बिसराऊँ
जो दोस्त बने थे बचपन में
कुछ साथ रहे कुछ छूट गए
कुछ गए अनजानी राहों पर
मैं उनको पुष्प चढ़ा आऊँ
तरुणाई की कुछ यादें हैं
सुरभित शांत पवन के जैसी
दिल से कहीं निकल ना जाएं
ठहरो द्वार बंद कर आऊँ
नयनों में रहते हैं हरदम
मेरे सब अपनों के सपने
इनको पूरा करने को अपना
सब कुछ मैं अर्पण कर जाऊँ
कोई मुझको भुला ना पाए
सबकी स्मृति में बस जाऊँ
सबकी राहें रोशन कर दूं
ऐसा 'दीप' जलाकर जाऊँ
~ प्रदीप भारद्वाज 'दीप'
अलवर, राजस्थान
स्मृतियों के जंजाल ने, जब से जकड़ा यह अंतर्मन है।
इंद्रधनुष सा रंगीन , कभी रंगहीन ये जीवन-गगन है।
कुछ पीड़ायुक्त अभावों का, बोध स्मृति-पवन है।
बैठ अतीत की छाँव में , यह व्यथित मन मगन है।
स्मृतियों के उन्माद में, पथिक बैठा मौन क्लांत है।
सर्वत्र प्रचलित हुआ, पथभ्रष्ट! पथिक यह भ्रांत है।
वेदना के इस दोराहे पर, वह जीवन्त ही प्राणांत है।
अनिभिज्ञ नहीं घटनाक्रम से, एक शोर लिए शांत है।
प्रत्युत्तर को है लालायित, निर्दोष की दृढ़ लगन है।
स्मृतियों के जंजाल ने, जब से जकड़ा यह अंतर्मन है।
प्रगति को आतुर हृदय , आज हुआ विकल है।
स्मृतियाँ ही सहगामी हैं, अब धूमिल होता कल है।
स्वयं से एक संग्राम है, पक्ष दोनों ही निश्छल हैं।
कल तक जो निर्बलता थी, आज स्मृतियाँ बल है।
स्मृतियों की पृष्ठभूमि के,कुछ स्वप्नों को समर्पित मन है।
जय-पराजय भय नहीं,अमूल्य अनुभवों का आगमन है।
स्मृतियों के जंजाल ने, जब से जकड़ा यह अंतर्मन है।
इंद्रधनुष सा रंगीन,कभी रंगहीन ये जीवन-गगन है।
~ हरिप्रिया दुबे
नोएडा, उत्तर प्रदेश
अंधकार से प्रकाश की ओर
किरण सी फैलती हैं स्मृतियाँ ।
जिंदगी को यूँ ही
चौंका देती हैं स्मृतियाँ ।
समय को लौटा नहीं सकते
अहसास लौटा लाती हैं स्मृतियाँ।
जीवन की मिठास ,कभी खटास
यूँ ही स्वादों का जायका लाती
हैं स्मृतियाँ ।
छोटे बडे अनुभवों की माला बन
जीवन जीना सिखाती हैं स्मृतियाँ
जवान को बचपन,बूढों को जवानी की
कहानियाँ सुनाती हैं स्मृतियाँ ।
हंसना,रोना,खिलखिलाना ,
चुप्पी ,मान -अपमान ,
न जाने कितने क्षण
याद दिलाती है स्मृतियाँ ।
पल ठहरता नहीं पल भर को ,
आदमी को अहसास करवाती हैं स्मृतियाँ ।
तेरा मेरा रटना रटे चाहे जितना
बस शेष रह जाती हैं स्मृतियाँ!
कुछ छूट जाता जीवन में ,
कुछ रह जाता उलझा -सा,
सबका वजूद ,यादों में जताती हैं स्मृतियाँ ।
समय लौटकर आता नहीं कभी ,
लौट कर आती हैं अच्छी बुरी स्मृतियाँ ।
जीवन जिसने जिया जग हितकारी,
मरणोपरांत अमर बनाती हैं स्मृतियाँ
देश पर बलिदान हो गए जो बलिदानी,
उनकी अमर कहानी सुनाती स्मृतियाँ
हम भूल ना जाए गौरव गान धरा का,
वीरों की गाथा सुनाती स्मृतियाँ ।
जीवन है ढलता समय के साथ,
स्मृति बनी रह जाती है स्मृतियाँ!!
~ डॉ.बबीता गर्ग
जीन्द, हरियाणा
दिल दिमाग पर असंख्य,
रेखाएँ खींच जाती हैं,
चित्त पटल पर जब कभी,
स्मृतियाँ बिछ जाती हैं ।
खोल देती हैं बंद पट
बदले भावों की करवट,
रीत गए जो लम्हें सब,
दृश्य आ जाते झटपट ।
कुछ खट्टे व कुछ मीठे,
कुछ कड़वे से होते छींटे ।
भांति चलचित्र कतार से,
जबरन आदि में घसीटे ।
कुछ से उर होता आनंदित,
अश्रु से कुछ सींच जाती हैं ।
चित्त पटल पर जब कभी,
स्मृतियाँ बिछ जाती है ।
समेट आती हैं बचपन ,
उमर भई चाहे पचपन ।
शरारतों से जवानी की,
महका देती हैं हिय वन ।
थकती नहीं रुकती नहीं,
नीर अनल से बुझती नहीं ।
बाँधे बंधन रोक ना पाए,
समक्ष वक्त के झुकती नहीं ।
कर चित्त जागृत हमारा,
आँखे यह भींच लेती हैं ।
चित्त पटल पर जब कभी,
स्मृतियाँ बिछ जाती है ।
कुछ यादों में डूब कर,
नयन सजल हो जाते हैं ।
जीवन जख्म अतीत के,
फिर से हरे हो जाते हैं ।
दिल दिमाग पर असंख्य,
रेखाएँ खींच जाती है ।
चित्त पटल पर जब कभी,
स्मृतियाँ बिछ जाती है!!
~ रेखा कापसे
होशंगाबाद, म.प्र.
विशाल घर के कोने में
सूना सा बंद दरवाजा
वो अनगिनत बिखरी यादों के साये
वह बचपन का कौतूहल
चाँद को पाने को मचलना
वह तुम्हारे हास परिहास से रंजित
घर का कोना कोना
चरणों को छूकर दिल से लगाना
वह मस्तक झुकाना
ऊपर से नीचे अन्दर से बाहर
अबाध गति से सरपट आगे बढते जाना
हर संघर्ष को हँसतेे हँसते सहते जाना
पर हे अनंत पथ के गामी
अब न वह तुम्हारी चहक है
न चहल कदमी
यादों की पोटली में सिमटी
कुछ स्मृतियाँ हैं
जो अशांत असीमित तुम्हारी मधुर स्मृति के साथ
जीवन पथ पर आगे बढ़ने को बाध्य
अंतिम श्वास तक तुम्हारे यादों के सहारे
उमुक्त बुद्ध से कर्तव्य बोध में बँधे हुए
जीवन के अंतिम पड़ाव तक
स्वाशों का आवागमन है तुमको समर्पित ।
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