हिन्दी काव्य कोश- समाज


जब मानव इस जग में जन्म लेता,
समाज के सामाजिक ताने -बाने मे बंध जाता।
आगे बढ़कर जो धर्म और लोककल्याण के लिए काम करे
उसी का नाम जग में अमर हो जाता।
रिश्ते नातों के बंधन में बंधकर ,
रीतियों कुरीतियों के चक्रव्यूह में फंसकर।
समाज के रंगमंच पर
मानव अपनी जीवनयात्रा पूर्ण करें।
हम समाज हैं , हमसे से ही रिश्ते नाते ,
हम समाज को क्या दे रहे,  तभी तो कुछ मांगे ।
स्वयं भले कार्य कुछ किये नहीं, 
फिर भले समाज की चाह दूसरों से क्यों रखें ।
गिराकर वैर द्वेष की दीवारों को ,
तोड़कर ऊँच नीच और जात- पात के बंधनों को ।
आओ मिलजुलकर हम सब
नवीन समाज का नव निर्माण करें ।
स्वयं से ही समाज कल्याण की शुरुआत करो
जब भी अवसर मिले निःस्वार्थ भाव से कार्य करो ।
तोड़ो केवल एक कुरीति के चक्र को,
धरा पर अपने जन्म लेने के अर्थ  को सार्थक करो ।।

~ भगतसिंह
नई दिल्ली

बरसों पूर्व प्रस्तर का था 
यह समाज, 
नहीं थी सभ्यता कोई ,
था पाषणों का राज, 
असभ्य मनु का नियति पर
था पूर्ण स्वराज
विकास में था पहला क्रम,
पत्थर से किया अनल जन्म, 
पहिए का था दूजा क्रम ,
घूमा चक्र तो मानव विकास हुआ,    
घर -आंगन  विस्तार हुआ ,
तब जाकर यह समाज  हुआ।    
भिन्न धर्म, प्रांत ,संस्कृति ने ,
रंग भरे जीवंत समाज में, 
जब संस्कार आधार  बने ,
तब जाकर यह समाज हुआ। 
कुरीति रुढ़िवादी तत्व का ,
जब  समाज ठेकेदार हुआ, 
स्त्री अशिक्षा, जातिवाद से, 
संघ वसन तार- तार हुआ 
स्त्री के अनुपम अस्तित्व का पूर्णतया ह्वास हुआ,
कुरीति को मिटा सुधारको ने ,
स्त्री को जीवनदान दिया 
हरित क्रांति ,श्वेत क्रान्ति,
साक्षरता से हुआ समाज उत्थान, 
उत्थान में हो सब भागीदार ,
गिरे न  कोई मानव मूल्य, 
प्रगति पथ प्रशस्त रहे,स्वर्ण चिड़िया है सबके लिए अमूल्य। 

~ सोनिक कुलश्रेष्ठ
    शाहजहांपुर , उत्तर प्रदेश

ऐसे समाज की करें परिकल्पना
जिसमें खुला उन्मुक्त हो आकाश
जाति भाषा वर्ण की दीवार न हो
अटूट विश्वास से हो  तिमिर नाश
रूढ़ि वादी विचारों से दूर रह कर
हो संस्कृति,सभ्यता धर्म की रक्षा
पाखंड,ढोंग को कहीं न मिले  स्थान 
सदा न्यायपूर्ण हो सबकी शिक्षा-दीक्षा 
बहे प्यार की स्वच्छ अविरल शुद्ध गंगा  
सिंचित हो ज्ञान विज्ञान,महके हर क्यारी
सुरक्षित,प्रसन्न रहें जहांँ सब,मन हो चंगा
सत्य,अहिंसा त्याग की खिले हर फुलवारी
सहयोग,भाईचारे के गुणों का हो विकास
युवा वर्ग के जोश से तय हो सुहानी नई दिशा
उजालों भरा विहान हो, चीर कर हर निशा
मेहनत और हौसलों की जिसमें हो उड़ान
बड़े बुजुर्गो को मिले हमेशा मान और  सम्मान
सुदृढ़ देश का आईना बने, सदा उत्तम समाज 

~ रजनी हरीश
कोयम्बटूर, तमिलनाडु

आवश्यकता,सुरक्षा  स्वभाव-वश,
जब साख्य -भाव से जुटते हैं परिवार,
तब समाज का होता उद्भव और विकास।
तोड़ अर्थहीन रूढ़ियों के बन्ध,
तरंगिणी-सा अबाध जब बहता,
प्रगति का अलख जगाता,
वह समाज सर्व-विग्रह से मुक्त है रहता।
समाज का ऐसा स्वरूप बनाएँ ,
जहां धार्मिक उन्माद की तोड़ बेडियाँ ,
हर सम्प्रदाय साथ खुशियां मनाएं,
डाल एक दूजे संग गलबहियाँ।
वृध्दजनों का वरद हस्त,
होता रहे सदा हमें प्राप्त,
आगत की चिन्ता त्याग,
बुज़ुर्ग रहें सुकून के साथ।
तज कर अपने अहम् का भ्रम,
समझें नर अर्धनारीश्वर का मर्म,
बिन नारी सम्भव नहीं संसार,
दोनों ही होते सृजन का आधार।
जहां रिश्तों की मर्यादा स्खलित न हो,
स्व विकास हेतु आकाश- सा विस्तार मिले
ऐसे समाज का हम करें निर्माण,
जिसमें सुरक्षित हो नारी का सम्मान।

~ सीमा सिन्हा
  पुणे, महाराष्ट्र

चलो विचारों का समन्वय ढूंढते हैं 
एक नए समाज का निर्माण ढूंढते हैं 
विचारों के अनंत सागर का कर मंथन 
एकता और अखंडता का अमृत ढूंढते हैं ।
चलो समाज की ताक़त व पहचान आंकते हैं 
संयुक्त प्रयास का परिणाम आंकते हैं 
विश्व पटल पर सोने की चिड़िया सा मान 
स्वर्ण अक्षरों में देश का इतिहास आंकते हैं ।
चलो सांप्रदायिक विचारों को तजते हैं 
हिंसा शोषण और ऊँच नीच को तजते हैं 
गौतम गांधी और पटेल का ज्ञान अपना 
जाति और धर्म के भेदभाव को तजते हैं ।
चलो अनेकता में एकता का पुनर्मिलन रचते हैं 
शांति सामर्थ्य व सद्भावना का समाज रचते हैं 
एकता है विकास का अतुलनीय आधारस्तंभ 
अविभाज्य देश का नवीन साम्राज्य रचते हैं ।

~ रेखा 
कोलकाता

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