हिन्दी काव्य कोश~ नवल किरण

दिनकर संग अम्बर से चलकर ,
पूरब क्षितिज पर  लाली छायी 
दुल्हन बनकर स्वर्णिम चुनर में ,
नवल किरण धरती पर आयी ।
प्रभात के जीवन से तम हरकर ,
नवल किरण  नव  रोशनी  लायी 
नव ऊर्जा  - उमंग भर जीवन में ,
जीने की   नयी उम्मीद  जगायी।
रंग बिरंगी कलियाँ चुन चुनकर ,
वसुधा दुल्हन की सेज सजायी 
हरित मुलायम घास के गलिचे पर
मोती सम ओस की बूँद बिछायी।
नवल किरण को  आँगन  लाकर, 
वसुधा विभावरी विदा कर आयी 
घट डूबोती गांव की गोरी पनघट में, 
घट घट में  दुल्हन की रूप समायी।  
कोयल बोले मिश्री  घोलकर,
गगन लाल देख मुर्गे ने बांग लगायी।
भोर की आरती भक्त करें मंदिर में,
मस्जिद से अजान कानों में आयी ।
नीड़ छोड़ पक्षी उड़े पंख फैलाकर,
भागे तारे नवल किरण नभ आयी।
तम के दुश्मन जा छुपे धरती में,
 प्रभात फेरी बच्चों ने खूब लगायी ।
नवल किरण वसुधा पर आयी ,
मोती सम ओस की बूँद छिपायी 
घट भरे गांव की गोरी पनघट पर  ,
हर घट में गोरी की रूप समायी।

~ बिरेन्द्र सिंह 'राज'
गौतम बुद्ध नगर,उ.प्र.

नव वधु सी इठलाती आती
चंचल उच्छृंखल नवल किरण,
सूरज की लालिमा लिए 
वरराज सा शरमाया गगन
यौवन  उल्लास दिवस भर 
सांझ को वृद्धा सी ढली
नव विहान के आगम पर 
पुनः नव वधु सी निकली,
जिसकी पायल के नूपुर 
नदियों की लहरें,
और खगों का कलरव 
जैसे कंगन खनकें,
पुष्पों की पल्लवी है 
स्मित अधरों की,
भाल के टीके में 
दिनकर, इन्दु झलकें, 
चुनरी जिसके शीश की है विस्तृत नभ,
रच बस जाती जिसके 
अंग मलय सौरभ,
वारिद बनते रहते जिसका अवगुण्ठन,
पलते जिसके दामन तितली, भ्रमर, शलभ,
केश हैं जिसके मद्धिम-मद्धिम उड़ते रज कण,
सकल चराचर हैं जिसके 
सब आभूषण,
वो यौवन उभार दिन, 
साँझ वृद्धा सी ढली,
जो नव वधु सी इठलाती आती चंचल,
उच्छृंखल, नवल किरण।

~ अनामिका सत्यांशु
  लखनऊ, उत्तर प्रदेश

नवल किरण की ज्योति से,
पृथ्वी ने है आस लगायी,
तिनका तिनका डाली डाली,
बिखराकर है आंधी आयी,
सूरज है सवार क्षितिज पर 
किरणें उससे मिलने आयीं 
देखो क्या ख़ूब घड़ी है आयी, 
नभाकाश में लालिमा छायी;
एक नया सवेरा द्वार खड़ा है, 
खोलो पट अब लो पैगाम,
करो विलम्ब ना अब क्षण भर
देखो झांक रहा है खुद उद्यान,
नवल किरण से सींच,
ज्ञान के चक्षु खुलने दो,
विजय पताका लहराकर 
दूर करो अपना अज्ञान ।
छोड़ो अब तुम हेरा फेरी, 
मानवता की दो पहचान,
इतने पर भी ना सुधरे तो,
खुद ही लोगे अपने प्राण,
नवल किरण है श्वांस तुम्हारी,
ना इसकी लौ को बुझने दो;
रीत पुरानी, रात पुरानी, 
नया युग है नयी कहानी,
बदलो ख़ुद को, व्यर्थ करो मत,
एक पल भी,ऐसा करो कुछ काम, 
अपने मन की दहलीज पर 
नवल किरण की नींव डाल 
कर लो तुम भी नवनिर्माण;
नवल किरण की ज्योति से.....

~ शची मिश्रा 
    सिंगापुर 

निशा बीतते ही धरती पर, 
नवल किरण एक आती है
भर देती नवज्योति धरा पर, 
तन मन को हर्षाती है।।
खिल जाती मुरझाई कलियाँ 
पुष्प मधुप मन भाती है। 
कलरव करते विहग  तरु पर, 
नवल किरण जब आती है।। 
 भानु अंक से उतर भूमि पर, 
 स्वर्ग परी सी सज धज कर 
 सर्द निशा के क्लेश हरण को, 
नवल किरण स्फूर्ति जगाकर।। 
नव उमंग से हल लेकर के, 
धरणीधर  चल   देता है। 
संध्या  वंदन सुभवेला में, 
सूर्य  अर्घ्य  दे  देता  है।। 
तरु पल्लव पर ओस की बूंदे, 
स्पर्श  रश्मि का जब पाती 
हृदय खुशी से पुलकित हो, 
हीरो  का भास करा जाती।।  
तुम ऊर्जा दाता हो धरती के , 
तुमसे ही सस्य श्यामला धरती। 
तुम से बनता भोजन तरु का, 
सब जीवो की क्षुधा तुम हरती।।  
बसन हीन निर्धन जन की, 
नवजीवन दात्री हो करके। 
सुषुप्त ह्रदय में उमंग जगाते, 
लक्ष्य भेद निज़ मंजिल पाते।। 
नील गगन की पूर्व दिशा से, 
नवल किरण जो आती है। 
जीव जंतु पुष्प तरू जग में, 
सब को खुश कर जाती है।।  

~ उर्मिला चमोली
उत्तरकाशी, उत्तराखंड

नवल किरण की आभा से, 
धरा दीप्तिमान हो जाती है।
जीवन का आनन्द पसरता, 
दुःख की रजनी खो जाती है।।
सुख का गान गाते जग में,
सब जीव जंतु विचरते है।
छोड़ अपनी निराशा को, 
आशा की किरण से चमकते हैं।।
तम की बदली से सूरज, 
नभ में कहीं  छुप जाता है।
छा जाती है अंधियारी, 
सूझ नहीं कुछ पाता है।।
तब दूर कहीं से पड़ती फूट
सूरज की वह प्रथम किरण।
मिटा देती है अंधियारा,
उम्मीद की वह नवल किरण।।
व्याकुल होते संतप्त हैं रहते,
दुःख सुख के चरणों से।
ऊर्जा का संचार है करती,
दम भरती नवल किरणों से।।
चढ़ गगन पर  शीश उठाता,
ललकारता दुख को भगाता।
हृदय स्पंदित कर देता सबका,
गर्व से हमें जगाता।।
सतत संघर्ष और निर्माण क्रिया,
जीवन में ज़रूरी है।
न आए भाव निराशा का , 
आशा की किरण ज़रूरी है।।
लड़ता रहता हर कण है, 
जीवन अपना बचाने को।
नवल किरण सीख है देती,
गहन रजनी से निकल आने को।।
~ आशुतोष मिश्र
महाराजगंज, उ0प्र0

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