हिन्दी काव्य कोश- आज की रचना

आज की रचना

१.ग़जल

प्यार की पहली निशानी भूल जा
अपने माज़ी की कहानी भूल जा
ज़हन पर तेरे ही तो होगा असर
किसने की है बदज़ुबानी भूल जा
ख़ूँ में शामिल उसके धोखा है अगर
ये कमी है ख़ानदानी भूल जा
दो घड़ी का चैन पाने के लिए
प्यास अश्कों से बुझानी भूल जा
आ गया कमज़र्फ की महफ़िल में तो
ख़ुद ही होगा पानी पानी भूल जा

~ बलजीत सिंह बेनाम
    हिसार हरियाणा

२. नव वधू प्रभा

विस्तृत नभ ने प्रात पट खोले 
स्वर्णिम आभा चहूँ ओर छायी 
पूरब उदित रश्मिरथी प्रभाकर 
नववधू प्रभा ने उठ ली अंगड़ाई
खोल अलसित नयनों के द्वार  
कनक रश्मि लहरों में नहा कर 
ओढ़ा सिंदूरी आँचल का घूँघट 
धीरे धीरे अवतरित हुई धरा पर
तुषार कण निज छवि सँवारी
चंचल उर्म्मि करे नदियों पर नर्तन 
लालिमामय यौवन मुख प्रभाविद्
उल्लसित उर पा धरणी आलिंगन
प्रभापल्लवित कोंपल कानन उपवन 
खग विहग कलरव संगीत मृदु गात 
सघन तमस विलुप्त कर उषा उजास
नवल किरण संग सस्मित नव प्रभात 
गोधूलि बेला किरण क्षितिज टकरायी 
टूटी बिखरी छितरी अरुणामयी अंबर 
कण कण चुन लायी निशा विभावरी 
अन्तर्धान प्रभा कर सर्वस्व न्योछावर

~ रेखा 
कोलकाता, पश्चिम बंगाल

३.  वहीं श्रीकृष्ण आते हैं

धरा पर हो अंधेरा इस तरह ,कुछ सूझता न हो,
निज मोह-मद में कोई ,किसी को बूझता न हो ।
जंजीरें पांव में हों,कई ताले कारागृह के अंदर,
देवकी- वासुदेव सा, हर क्षण भक्तिमय अंतर।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ............।
 उफनती हो यमुन जलधार,यशोदा-नंद लालायित, 
कंस की क्रूरता से अधिक, सद् वसुदेव व्याख्यायित।
जहां पर गायें रंभाएं , बुलाएं ग्वाले घर पर आ, 
छींकों पर टंगे माखन, बुलाते कान्हा अब तो आ।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ................।
कुपित हो इन्द्र तो गोवर्धन अंगुली पर जिसके,
कई के पाप सिर बोले ,कई डर से वहां खिसके।
गरीबी ग्वाल बालों की, न बहुत काम न धंधा ,
गोकुल गांव का हर बच्चा बच्चा भक्ति में अंधा।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं..................।
वह गांव का ग्वाला, मेरा कुछ कर नहीं सकता,
वह नंद का लाला, मेरा कुछ कर नहीं सकता।
बुलाओ उसको जरा, देखलें उसकी जवानी को,
बहुत सुनली कथा, परखें जरा उसकी कहानी को।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ..................।
मरे जब कंस हो निर्वंश ,जनता झूम जाती हो,
मथुरा से गोकुल तक ,खुशी की लहर आती हो ।
तरु की ओट से राधा, निहारें राह कान्हा की ,
गोपियां कसम खा ,आह भरती उसी कान्हा की।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ................।
राम की दिवाली ,जहां पर चमक पा जाए ,
होली अवध की जिस जगह,खनकती आए।
बहुरंग की जब गोपियां ,इक रंग में डूबें,
बांसुरी के स्वरों में सभी, निर्द्वन्द हो झूमें।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ................।
पुकारे द्रोपदी जब चीर ,दुशासन वहां खींचे,
पांचो पांडव हारे हुए ,बस आंखें ही मींचें‌।
भीष्म, द्रोण,कृप,भीम, कुछ कर नहीं पाएं,
दुर्योधन-दुशासन के लहू,की कसम ही खाएं।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं...............।
न होगी महाभारत, गांव बस पांच ही दे देना ,
न माना दुष्ट तो अर्जुन, को गीता ज्ञान दे देना ।
विचारों की जलधि में,डूबते अर्जुन को बाहर ला,
करो अब समर, धर्मध्वज ,हनुमान का बल पा।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ...............।
मिले जब शांति तो,घर-बार भी छोड़ा जहां जाए,
 मथुरा छोड़कर कोई ,द्वारिका रहने चला आए ।
सुदामा की गरीबी ,भूख से हों बिलखते बच्चे,
हड़पे हक किसी का,नेतृत्वकर्ता कान के कच्चे ।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ..................।
 मनमोहिनी मीरा बुलाएं, कान्हा अब तो आ,
सूर के सागर में आकर, यूं समा अब तो जा।
रसखान की रस गागरी में प्रेम रस छलके,
आ जा कन्हैया,मेरे दिए तेरे लिए जलते।।
वहीं श्रीकृष्ण आते हैं..................।
हमें पाक-चीन भी आंखें, दिखला नहीं सकता ,
हमारे वीर सीमा पर, कोई झुठला नहीं सकता।
हमारे खून में है राम,कृष्ण का वही पौरूष,
लड़ेंगे हम कोई हमको,कभी हरा नहीं सकता।।
जहां पर सोच हो ऐसी,वहीं श्रीकृष्ण आते हैं ......।

- डॉ० विजयानन्द
प्रयागराज, उ.प्र.

४. आतंकवाद

आतंकवाद का राज जहाँ में, 
दुनिया को अभिशाप हैं। 
कितने ही रिश्तों को देखों, 
इसने किया हताश हैं। 
मासूमों की निर्मम हत्या, 
आँखों में अंगार हैं। 
बारूदों से बोझिल धरती, 
गगन में छायी आग हैं। 
अपनों के सपनों को, 
आतंक ने किया दाह है। 
आँखों में हैं आँसू देखो, 
होठों पर भी आह है। 
आतंक के खतरे से, 
दुनिया में हाहाकार हैं। 
आतंकवाद का राज जहाँ में, 
दुनिया को अभिशाप हैं। 

~ श्रीमती मनीषा शर्मा 
    इंदौर, मध्य प्रदेश

५. धरो प्रचंड रूप

महिषासुरमर्दिनी,
धरो प्रचंड विकराल रूप
अब महिषासुर एक नहीं
कदम कदम पर
फैला कुकुरमुत्ते की तरह,
कब कहाँ जाने धर कौन-सा सा वेश
कुत्सित विकृत मानसिकता
का करे घात।
आ जाय किस परिवेश में
 करने किसी स्त्री के
आत्मसम्मान पर आघात।
माता पार्वती,
सृष्टि ने नारी को दिया  
सृजन,पालन
अपरिमित करूणा स्नेह,
मातृत्व का वरदान।
अब मांँ काली   
दे हर स्त्री को अपना रूप विकराल
भर हुंकार
 सहस्र भुजाएं कर अपनी
नाखूनों को और तीक्ष्ण,
जिह्वा को और धारदार
हर नारी को बनना होगा खुद अपना हथियार।
विध्वंस कर उन नर पिशाचों को
करते जो मासुमियत को तार तार।
नोच डाले उन काम लोलुप नज़रों को
क्षत विक्षत करते जो निरीह
 के शरीर आत्मा का मर्दन।
महिषासुरमर्दिनी
शक्ति पूंज बन हर स्त्री
हवस पिपासु निर्वीय,
ऐसे दानवों के छाती पर
करें अपने रौद्र रूप में नर्तन।

~ डॉ रागिनी दांगी
 हजारीबाग, झारखंड    


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