पल -पल बढ़ती जनसंख्या को,
अनियंत्रित हर आकांक्षा को,
लाचार बनी मानवता को,
विधानों और संविधानों को,
किस-किस पर दोष मढ़ोगे,
किसको जिम्मेदार कहोगे।
बिना असर समरसता में,
नेता की गरज दहाड़ों में,
सरकारी तानों बानों में,
दम भरती शौकत शानों में,
सामर्थ्य कहाँ, समझोगे।
किसको जिम्मेदार कहोगे।
आरक्षण गणनाएं करता,
योग्य यहाँ तिल-तिल कर मरता,
पढ़ेलिखे अनपढ़ है बराबर,
जेबों में डिग्रियां सजाकर,
कैसे धैर्य धरोगे।
किसको जिम्मेदार कहोगे।
बनी मुसीबत बेरोजगारी,
सभी तरफ है मारामारी।
नेताजी विश्वास दिलाते,
मिली कुर्सियां हाथ न आते,
किस पर विश्वास करोगे,
किसको जिम्मेदार कहोगे।
मृगमरीचिका नौकरियाँ हैं,
युवा दिलों की बेबसियाँ हैं
पात्र कुपात्र का मानक रीता,
जिसकी लाठी वही है जीता,
अब किससे आस करोगे।
किसको जिम्मेदार कहोगे।
खुल पर विश्वास करो पहले,
अपनी ही ढाल बनो पहले,
हर कठिन डगों पर चलते हुए,
लाचारी बेरोजगारी को,
स्वयं आइना दिखलाके
अपनी पहचान बनोगे।
किसको जिम्मेदार कहोगे।
~ आनन्दी नौटियाल
उत्तरकाशी, उत्तराखंड
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कल भी दूसरो को देते दोष थे,
आज भी दोष मढ़ोगे।
जब यथार्थ को जो बूझोगे,
किसको जिम्मेदार कहोगे?
क्या वक्त को जिम्मेदार कहोगे?
प्रतिदिन प्रयास करना है,
नित आगे ही बढ़ना है,
भूमि से हैं जुड़े, मेहनत करना है।
माना वक्त कठिन है सबके लिए
इससे नहीं डरना है।
अंतर्मन के द्वंद्व से स्वयं ही,
हमें उभरना है।
जो कभी आत्मचिंतन करोगे,
फिर किसे, कैसे और
किसको जिम्मेदार कहोगे?
मानवता की परीक्षा की है घड़ी
बेरोजगारी,गरीबी और
प्राकृतिक आपदा संग,
मानव की जंग है छिड़ी।
विजय- पराजय से हो भयभीत
किस पक्ष में खड़े रहोगे?
किसको जिम्मेदार कहोगे?
आज समय आया है देखो
खुद के हुनर को संवारने का
गुजरते इस दौर को,
इक अवसर में बदलने का।
मिल कर हाथ बढ़ा तू साथी
दोष-प्रदोष का खेल समाप्त कर,
एक जुट हो अग्रसर होना है,
गंभीरता से इस पर विचार कर।
'कोरोना' ने रचा चक्रव्यूह है ऐसा
शायद यह मानव कुछ समझेगा।
स्वयं से विचार जो करोगे,
फिर किसको जिम्मेदार कहोगे?
क्या वक्त को जिम्मेदार कहोगे?
----- अर्चना सिंह 'जया'
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सैकड़ों साल गुलामी थी ,देश को बहुत निचोड़ा ।
देश हुआ आजाद किंतु ,बन गईं मशीनें रोड़ा ।
मैकाले की शिक्षा नीति ने ,तरुण हृदय को तोड़ा ।
डिग्री धारक बन करके वह ,ठॉव ठॉव पर दौड़ा ।।
मध्यम वर्ग में पैदा होकर शिक्षा को अपनाया ।
मेहनत की जब पड़ी जरूरत ,तब वह लाज लजाया ।
श्रम के प्रति मन भरी अवज्ञा ,पेशे पर ललचाया ।
नौकरशाही भावना लेकर ,दर-दर ठोकर खाया ।।
लघु उद्योग ठप्प पड़ गए, फैली अति बेकारी ।
शिक्षा दीक्षा पूरी करके, नौकरी चाहती नारी ।
जनसंख्या विस्फोट का तांडव, देश की लाचारी ।
जात-पात के भेदभाव ने भी ,सब बात बिगारी । ।
सरकारों की नीति यही ,आवेदन पत्र भरोगे ।
रेखांकित पोस्टल आर्डर संलग्न साथ करोगे ।
घर बैठे इनकी जेबों में, लाख करोड़ धर दोगे ।
फिर भी नहीं सुनिश्चित ,इम्तेहान में तुम बैठोगे। ।
हुई परीक्षा भूल से यदि, परिणाम को फिर सोचोगे ।
निर्णय आया तो नियुक्ति को तरसोगे।
भाई भतीजावाद से बोलो कैसे निपटोगे ।
कुएँ में ही भांग पड़ी हो , तो किसको जिम्मेदार कहोगे ।।
ओम प्रकाश उपाध्याय सलिल
अंबेडकर नगर, उ.प्र.
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श्रम की मांग, आपूर्ति में असन्तुलन ही बेरोजगारी है ,
बढती जनसंख्या, घटते रोजगारों पर ही जिम्मेदारी है ,
दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था की भी बराबर हिस्सेदारी है ।
विकसित या विकासशील हर देश की यही कहानी ,
कोई झेल रहा ऐच्छिक तो कोई अनैच्छिक बेकारी ,
कोई झेल रहा मौसमी तो कोई संरचनात्मक बेकारी ,
पुश्तैनी काम से मुँह मोड़ना बढा रहा है बेरोजगारी ,
खेती किसानी से मोहभंग फैल रही यहाँ बेकारी ,
यही सब वो कारण हैं ,इन सब को जिम्मेदार कहेंगें ।
हाँ, बेरोजगारी के लिए इन सब को जिम्मेदार कहेंगें ।।
कोई पढ़ लिख कर भी , हो रहा बेकार यहाँ ,
लेकर पी-एच0डी0 की डिग्री बन रहा पाटीदार यहाँ ,
कोई हैं निट्ठल्ले ऐसे ,चाहे साधु ,भिखारी बनकर यहाँ ,
कोई अमीर बाप का बेटा ,सिर्फ बनना चाहे अफसर यहाँ ,
इन सब बेरोजगारों के लिए बोलो किसको जिम्मेदार कहोगे ?
निदान जो इसका करना चाहे,कुछ कदम उठाने होंगे ,
कृषि, कुटिर और लघु उद्योग सब आगे लाने होंगे ,
जनसंख्या के हो रहे विस्फोट पर काबू पाने होंगे ,
मैकाले की शिक्षा प्रणाली में कुछ परिवर्तन लाने होंगे ,
रोजगारपरक शिक्षा के लिए कुछ कदम उठाने होंगे ।।
एक दूसरे के सिर पर कब तक ठीकरे फोड़ोगे ,
सिर्फ सरकारों को ही कब तक ऐसे कोसोगे ,
इतने लोगों के लिए बोलो किसको दोषी कहोगे ,
स्वयं पर जो नहीं भरोसा तो किसको जिम्मेदार कहोगे ?
छोड़ अपने पर भरोसा बोलो किसको जिम्मेदार कहोगे??
~ कुसुम यादव
गुडगाँव, हरियाणा
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उधर माँस की बोटियाँ खदकती हैं
इधर दो जून की रोटियों के लाले हैं।
उनके श्वानों को मिले चौप्रहर माँस,
इधर निज गात के माँस गला डाले हैं।।
ऐसी आर्थिक खाई के, किसको खोदनहार कहोगे ?
जाठराग्नि में जल जाऊँगा,किसको ज़िम्मेदार कहोगे ?
धूर-धूर धरा पूर्वजों की,बिक गयी है पढ़ाने में,
चूर-चूर चिरस्वप्न हुआ,निजी विद्यालय पाने में ।
काट-काट आँत का अन्न,सूद -सूद भरता रहा,
बाट-बाट बौराता रहा,साक्षात्कार ही पाने में।।
ऐसी विषम व्यवस्था का,किसको थोपनहार कहोगे ?
बटमारी में दम घुट न जाए,किसको ज़िम्मेदार कहोगे ?
अस्थि-मज्जा ख़ूब गलाया,ख़ून जलाया पढ़ने में,
अवसादग्रस्त दृष्टि गँवाया,बाधाओं को गुनने में।
क़िस्मत कुछ पग साथ निभाया,उत्तम अंक पाने में,
पर परिणाम फल में नाम ना आया,कभी सुनने में।।
अल्पांक वाले ओहदा पाए,किसको चोटीदार कहोगे ?
आरक्षण में कहीं छूट ना जाएँ,किसको ज़िम्मेदार कहोगे?
शहर-शहर,गली-गली,हूँ घूम रहा पत्री लेकर,
कभी चादर-अँगोछा ले,कभी काली छतरी लेकर।
घोर लताड़,दुत्कार घिनौनी,हर रोज़ ही सुनता हूँ,
हे मालिक!कहाँ जाऊँ भूखे पेट की अर्ज़ी लेकर।।
क्षुधातृप्ति को चोरी करूँ तो,किसको बे-असरदार कहोगे ?
या झूल जाऊँ तरु-शिखा से,किसको ज़िम्मेदार कहोगे ?
~ कुमार शशि
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