विद्रूप अट्टहास कर रहा काल,ये विभीषिका भारी है,
भयाक्रांत मानव से मानव,ये कैसी महामारी है।
दर्प से उन्मत्त मानव,शक्ति प्रदर्शन कर रहा था,
कभी धरती,कभी अम्बर,कभी जल में विचर रहा था।
धृष्ट चुनौती दे बैठा उस परमपिता परमेश्वर को,
किन्तु ईश ने क्षण भर में तोड़ा मूढ़मति के गौरव को।
खड़ी की थी अट्टालिकाएं भू की छाती रौंद,
आज बन्दी स्वयं उसी भवन में,हुआ विवश और मौन।
वाहनों का हो रहा था राहों पर प्रचंड तांडव,
हो चली हैं राहें अब,शांत, नि:शब्द और नीरव।
अंतरिक्ष को भेद गिनता था तारों और नक्षत्रों को,
आज पड़ा हुआ है पंगु,बैठा गिन रहा है शवों को।
आज मनुष्य विवश है,और कितना लाचार है
अश्रुपूरित आँखों से,झेल रहा कोरोना की मार है।
मुख अब हुआ आवृत,अपनाया आयुर्वेद,स्वच्छता,योग,
छूटा साथ अपनो का ,सामाजिक दूरी का हुआ प्रयोग।
हे परमपिता अब करो दया,क्षमा करो हर भूल,
भेद रहा जो मानव मात्र को,दूर करो यह शूल।
तुम दयालु क्षमाशील हो,अब तो इस संकट से तारो,
उलझा मानव अपने जाल में , तुम ही कोई राह निकालो।
निभा राजीव,
धनबाद, झारखण्ड
_________________________
बुहान की ये प्यारी
कर विमान की सवारी,
आई है देश अपने
सब लगे हैं इससे कँपने,
कितनों को इसने मारा
कितनों की अब है बारी,
बुहान की ये प्यारी।
न जाति-धर्म माने
न ऊँच-नीच जाने,
समभाव लेकर मन में
सबको चली सताने,
इसका न कोई अपना
न ही कोई पराया,
सब पर पड़ी है भारी
क्या राजा,क्या भिखारी,
बुहान की ये प्यारी।
हाथों में चिपकती है,
बालों में लटकती है,
कपड़ों पर बैठती है,
चेहरे पे चहकती है,
मानव से मानव में
दिन-रात भटकती है,
साँसों में घुस गयी तो
बढ़ जाती बेकरारी,
बुहान की ये प्यारी।
खाँसना,खरासना,
हाँफना पड़ेगा,
खतरा है बड़ा इसका
भाँपना पड़ेगा,
डरना नहीं है लड़ना
कर लो अब तैयारी,
बुहान की ये प्यारी।
- सुभाष कुमार यादव
गोड्डा, झारखंड।
_________________________
चीन देश से आया दानव, हा हा कार मचा डाला।
जा करके सारे देशों में,दुनिया को दहला डाला।
अर्थ व्यवस्था की चौखट की,सब की नींव हिला डाली।
फैल गई दुनिया में दहशत,आफत ऐसी मचा डाली।
दिखा कर अपना रौद्र रूप,न जाने कितने मार दिये।
घुस कर के ये लोगों के घर,बहुत से घर उजाड़ दिये।
करवा करके तालाबंदी,लोगों को घरों में कैद करा डाला।
चीन देश से आया दानव, हा हा कार मचा डाला।
जा करके सारे देशों में,दुनिया को दहला डाला।
मजदूरों की हालत देखो,हुई बहुत ही दुर्गति है।
भूखे प्यासे पैदल चलते,सिर पर रखे गठरी है।
भूख से बिलख रहे हैं बच्चे,देखो कैसी लाचारी है।
पैरों से रिस रहा खून है,फिर भी चलने की मजबूरी है।
नौनिहाल बच्चों को भी,दूध के लिए तड़पा डाला।
चीन देश से आया दानव, हा हा कार मचा डाला।
जा करके सारे देशों में,दुनिया को दहला डाला।
बच्चों की शिक्षा को भी,इसने चौपट कर डाला।
जड़े हैं तले विद्यालय में,सड़कें सूनी कर डाला।
चिंतित अभिभावक सोच रहा है,शिक्षा कैसे हो पूरी।
जीवन में आगे बढ़ने को,शिक्षा भी है बहुत जरूरी।
बच्चों के भविष्य को इसने सत्यानाश करा डाला।
चीन देश से आया दानव, हा हा कार मचा डाला।
जा करके सारे देशों में,दुनिया को दहला डाला।
~ सुरेश सचान पटेल
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश।
_______________________________
बीस-बीस विष हो गया,बड़़ा बुरा है हाल।
सुरसा-मुख सा बढ़ रहा,कोरोना विकराल।।1
अति संक्रामक रोग का,बड़ा भयावह रुप।
अलक्षित इस शत्रु ने,यम का धरा स्वरुप।।2
है प्राकृतिक कोप या,मानव प्रायोजित कृत्य।
प्रलयकाल में लग रहा,शिव सा ताण्डव नृत्य।।3
लाइलाज अरि, भिन्न वपु धरि,ग्रस रहा संसार।
कब टीका बन पायेगा! संभव हो उपचार।।4
मुँह ढँककर घर में पड़े,मानव का क्या जोर?
अब भी प्रकृति के सामने,मानव हैं कमजोर।।5
अस्त-व्यस्त जीवन हुआ,रंग हुए बदरंग।
मिल-जुलकर रहिये नहीं,बदल गया सब ढंग।।6
छूट गये उत्सव-व्यसन,तजा धार्मिक संग।
फीके पड़े रिश्ते सभी,मोह हो गया भंग।।7
प्रभु क्वारंटाइन हुए,बंद हुआ दरबार।
भँवर में डगमग नाव है,सो गया खेवनहार।।8
वक्र दृष्टि हुई राहु की,शनि की टेढ़ी चाल।
अब सबका कल्याण हो,शुभ-शुभ बीते साल।।9
साफ-सफाई संग सभी,सजग रहें धर ध्यान।
दो गज की दूरी रहे,तभी होय कल्याण।।10
आलोक कुमार
मुंगेर, बिहार
_______________________________
कोरोना के कहर ने हर जिंदगी बदल दी,
जीने का ढंग और जिंदगी के मायने बदल दी।
मिलना मिलाना दोस्तों से पुरानी बात हो गयी,
रिश्तों के मायने और नजरिया बदल दी।
दूरियों में ही प्यार बढ़ाकर रिश्तों का मायने समझा,
इस तरह प्यार की परिभाषाएं बदल दी।
जिंदगी थम सी गयी है लगता यारों,
रहने का तरीका और अंदाज बदल दी।
विद्यालय का परिवेश सूना सूना हो गया,
पढ़ाई के तरीके और पढ़ाने का अंदाज बदल दी
जीवन का सही अर्थ जो न समझा इस वक़्त
फिर वक़्त ने चोट देकर जिंदगी बदल दी।
जिंदगी में हमारी जरूरत क्या है सबसे बड़ी,
इसे बताकर जिंदगी में महत्ता ही बदल दी।
मौत को करीब से देखने का मौका दिया,
फिर जीने का अंदाज ही बदल दी।
गाँव गाँव में रौनकें आई इस बार,
शहर की शोर को वीरानियों में बदल दी।
धैर्य और संयम के मायने सिखाकर,
कोरोना ने इस बार बहुत कुछ बदल दी।
~ रूचिका राय,
सिवान, बिहार
0 टिप्पणियाँ
इस विषय पर रचनायें लिखें