Top 5 Hindi poem on village Hindi kavita on village गाँव मेरा - नवीन जोशी "नवल" समझ सके इसको वो, जिसका बीता बचपन गाँव में, |
गाँव देश की हैं आत्मा, मानवता के द्योतक हैं,
वाहक हैं ये संस्कारों के, सभ्य- समाज के पोषक हैं !
भारत की सांस्कृतिक धरोहर, गांवों में जीवित रहती,
हर दुख-सुख में साथ रहेंगे, यही एकता कुछ कहती !
हिल-मिल कर चौपाल लगे जब, वट-पीपल की छाँव में,
सुखद, शांतिमय जीवन होता, अपने प्यारे गाँव में !!
मिलजुल कर सब खेलें कूदें, सभी बहिन और भाई हैं,
दादा - दादी, चाचा – चाची, कोई ताऊ ताई हैं !
बच्चे भी तो माने दिल से, हम ही भतीजे पोते हैं,
सबका कहना माने बच्चे, सभी तो अपने होते हैं !
दौड़ लगा लेते हैं चाहे, चप्पल नहीं हों पाँव में,
सुखद, शांतिमय जीवन होता, अपने प्यारे गाँव में !!
बेशक सुविधाएँ कम हों पर, संस्कारों की कमी कहां?
जिसके घर कुछ भी कारज हो, जुट जाते हैं सभी वहां !
एक दूसरे के पूरक सब, उस निजता को करूं नमन,
रहन-सहन में व्याप्त सरलता,शुद्ध सोच है, शुद्ध पवन!
सुख गौरैया के स्वर में, कौवों की काँव - काँव में,
सुखद, शांतिमय जीवन होता, अपने प्यारे गाँव में !!
बुराड़ी, दिल्ली
गाँव मेरा - डॉ. आरती दुबे
गाँव मेरा- करुणा दुबे 'कीर्ति श्री'
माटी की सौंधी खुशबू मन महकाती हैं ।
दिनकर की किरणें अंधियारा दूर भगाती हैं ।।
कलरव से तन का आलसपन छू हो जाता हैं ।
चौपायों की घंटी धुन से गलियां
गुंजाती हैं ।।
तन पुलकित, मन आनंदित, हैं खुशियों का डेरा ।
सुख देता, दुख हर लेता ऐसा हैं " गाँव मेरा "।।
खेतों की हरियाली चारों ओर नजर आती हैं ।
पनघट पर पनिहारन मंगल गीत सुनाती हैं ।।
हिल मिलकर सब धर्मों के त्यौहार मनाते हैं ।
सावन में कजरी गीत, मल्हार भी गाते हैं ।।
चेहरों पर मुस्कानों का रहता हरदम फेरा।
भारत की आत्मा में बसता हैं "गाँव मेरा "
गाँवों की माटी में बचपन बीता" मनमोहन "का।
पुरुषार्थ झलक जाता हैं देश प्रेमी वीरों का ।।
सीता, सावित्री , लक्ष्मी, पद्मावती जैसी पैदा होती ।
आदर्श निभाने, इज्ज़त को" जौहर " करती ।।
सारी फसलें पैदा करता हैं " कृषक " मेरा ।
योगी, मुनियों की तपोभूमि हैं "गाँव मेरा "।।
भारत की आत्मा में बसता हैं " गाँव मेरा"।।
जबलपुर, मध्य प्रदेश
गाँव मेरा- अजय कुमार चौहान
गली तालाब कुआँ रहट से,
मेरे गाँव की पहचान है,
चौपालों में सुलझा करती,
सारे बिगड़े काम है,
सच्चे और मेहनत कस लोग,
मेरे गाँव की पहचान है,
खलिहानों में फसलें सजती,
गौशाला में हमारी जान है,
खेतों में लहलहाती फसलें,
हरे सोने के समान है,
पेड़ पौधों की पूजा करना ,
हमारे गाँव का विधान है,
आंगन में फूलों की कलियाँ,
गाँव के कच्चे सारे मकान है,
मिलजूल कर हम खेती करते,
बैलगाड़ी हमारा विमान है,
गाँव मेरा है जग से न्यारा,
जहाँ गूंजता कोयल की तान है,
बाग बगीचे खेत मेढ़ में ,
मिलते मीठे मीठे आम है,
कोलाहल से दूर बसा है,
गाँव मेरा खुशहाल है
माँ बाप का देवी देवता सा,
हर कोई रखता ख्याल है,
मेरे गाँव का साँझा चूल्हा,
किसी को भूखे सोने नहीं देता है,
होली और दीवाली यहाँ,
खुशहाली लेकर आता है,
बालोद (छ.ग.)
गाँव मेरा- अरुण कुमार
हरित -वनस्पतियों का स्वर्ग,
विहगों का कलरव मधु-स्वर,
छटा चटख, उन्मुक्त प्रकृति,
दिन-रैन पल्लवित गाँव मेरा।
बलखाती, इठलाती पगडण्डी,
खिलें नित्य पा भोर-उजास,
त्रिवेणी विटपों की छाँव तले,
मानवता-पोषक भी गाँव मेरा।
नित समरसता,सौहार्द हृदय में,
शुचि बहे प्रेम रसधार चहुँदिशि,
खेतों में लहलहाती फसलें नव,
राग-द्वेष से मुक्त प्रिय गाँव मेरा।
सौंधी मिट्टी की मोहक सुगंध,
सहज सार्थक जीवन की शैली,
परपीड़ाअनुभूति,करुणामयता,
भावों से जीवंत सदैव गाँव मेरा।
लखनऊ, उ.प्र.
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