Top 5 Poems on culture |
संस्कृति- निभा राजीव "निर्वी"
हिंद आदिकालीन संस्कृति, व्यापक अरु अनमोल।
सतत पीढ़ियों में संप्रेषित, नाप रही भूगोल।।
परिष्कार यह करे मनस का, भरे शुद्ध आचार।
तपश्चर्य यह जनमानस का, साधे नित व्यवहार।।
सत्य धरोहर राष्ट्र रीति की, संकल्पित कल्याण।
दीप्त दीप सी गहन तिमिर में, मिले कलुषता त्राण।।
नव विकास है मूल भावना , गुण रखकर प्राचीन।
सद्य सनातन पंथ अग्रसर, द्युतिमय विविध नवीन।।
ज्ञान पुंज यह सद्पथदर्शक, सजग शक्त गुरु तुल्य।
करे अलंकृत जीवन शैली, उन्नति गुण बाहुल्य।।
वही संस्कृति आज व्यथित है, पाश्चात्य का वास।
वेद पुराणों का बनता है, यथा करुण उपहास।।
मातृ संस्कृति रक्षा का हम, वहन करें दायित्व।
बने विश्व गुरु जगत पटल पर, मिले मान स्वामित्व।।
सिंदरी धनबाद झारखंड
संस्कृति- योगेन्द्र 'योगी'
जन्म लिये पले बढ़े, जिस संस्कृति के आंचल में।
सजग रहें और इसे सहेजें, भूल न जायें हलचल में।।
संस्कृति है अपनी ऐसी, जिसमें वेद समाहित हैं,
अवहेलना होती रहती, यही सर्वदा अनुचित है,
भूल न पाएं संस्कार हम, आधुनिक कोलाहल में।
ग्रंथ हमारा रामायण भी, मानवता का शिक्षक है,
दुष्टों का संघार उदाहरण, सत्य धर्म का रक्षक है,
कर्म बचन आज्ञा पालन, सार न भूलें कल कल में।
गीता ज्ञान विश्व पटल पर, आया और सराहा है,
उपदेशों और संदेशों का, इसमें सार समाया है,
कर्मयोगी ने कर्मयोग का, मर्म बताया मरुस्थल में।
करें पुराणों का अध्ययन, हृदय से अनुसरण करें,
शब्द सशक्त हैं उपयोगी, धारण मन अनुकरण करें,
'योगी' विश्व निहारो तो, परिवर्तन होते पल पल में।
संस्कृति- नीलम कुलश्रेष्ठ
भारतीयता की धारा में, संस्कृति भी उपधारा है।
एक नहीं अगणित संस्कृतियों, से परिवार हमारा है।।
भिन्न भिन्न भाषा अरु बोली, सभी प्रांत-परिवेशों की।
अलग-अलग परिधान यहाँ पर, फसलें भिन्न प्रदेशों की।
उत्तर से दक्षिण तक फैली, भिन्न प्रकृति की धारा है।
एक नहीं अगणित संस्कृतियों, से परिवार हमारा है।।
पूरब से पश्चिम तक दिखते, रंग पर्व-त्योहारों के।
सावन दृश्य दिखाने आता, झूलों संग मल्हारों के।
सूरदास रसखान सभी ने, पथ भक्ति का निहारा है।
एक नहीं अगणित संस्कृतियों, से परिवार हमारा है।।
भले शक्तियाँ रहें उठाती, अपने अलगावी सिर को।
डोर एकता सुदृढ़ रही है, पाट सकी है हर झिर को।
"सदा एक हैं, एक रहेंगे।" - यही हमारा नारा है।
एक नहीं अगणित संस्कृतियों, से परिवार हमारा है।।
गुना, मध्य प्रदेश
संस्कृति- शैलेष पाण्डेय 'उपवन'
आन से परिपूर्ण धरा की मान है संस्कृति,
मनुजता के हृदय की शान व अभिमान है संस्कृति,
गोद में पलती है जिसके पूर्ण सभ्यता,
सृष्टि की हर श्वास की पहचान है संस्कृति।
पनपती हैं तले जिसकी हमारी पूर्ण परम्परा,
संवरती है आंचल में जिसके राष्ट्र-अस्मिता,
सदा सिंचित ही होती है परिष्कृत आचरण की छाँव,
हमारी रीतियों की उच्चता का नाम है संस्कृति।
जीव के जीवन का अनुपम हार है संस्कृति,
इन पंचभूतों का सबल आकार है संस्कृति,
विविधा से भरा प्रतिबिम्ब जिसका मान पाता है,
मेरे अस्तित्व का 'उपवन' वही आधार है संस्कृति।
प्रयागराज, उ. प्र.
संस्कृति- सीमा अग्रवाल
पीढ़ी दर पीढ़ी,
संस्कारों की थाती,
गढ़ती जाती है,
एक अनुपम संस्कृति!
जीवन की धार,
मानवता का संस्कार,
आत्मा का विस्तार,
होती है संस्कृति!
निरंतर प्रवाहमान,
सिखलाती जीने का तरीका,
पारस्परिक विनिमय को उद्यत,
हमारी पहचान है संस्कृति!
फूल के भीतर है सुगंध जैसे,
जीवन-अंतस में संस्कृति
वैसे,
श्रेष्ठ साधना मनुष्यता की
सामाजिक विरासत है
संस्कृति !
संस्कृति से ही है मानव,
मानव से ही है संस्कृति,
'वसुधैव कुटुम्बकम'के भाव
से पोषित
सर्वश्रेष्ठ हमारी भारतीय
संस्कृति!
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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