संवेदनायें
सांसों के मध्य
संवेदना का सेतु
ढहते हुए देखा
देखा जब मेरी सांसे है जीवित
क्या मृत होने पर
सवेंदनाओं की उम्र कम हो जाती
या कम होती चली जाती
भागदौड़ भरी जिंदगी में
वर्तमान हालातों को
देखते हुए लगता
शवयात्रा में ज्यादा नहीं होना
नियमों निर्देशों के पालन में
किसी को कांधा देने के लिए
दूरियों को रखने की
समस्याओं का होना
लोग बताने लगे
और पीड़ित के मध्य
अपनी भी राग अलापने लगे
पहले चार कांधे लगते
कही किसी को कही- कही
अब अकेले ही उठाते देखा ,
रुंधे कंठ को
बेजान होते देखा
खुली आँखों ने
संवेदनाओं को शून्य होते देखा
संवेदनाओ को गुम होते देखा
ह्रदय को छलनी होते देखा
सवाल उठने लगे
मानवता क्या मानवता नहीं रही
या फिर संवेदनाओं को
संक्रमण खा गया
लोगों की बची जीवित सांसे
अंतिम पड़ाव से
अब घबराने लगी
बिना चार कांधों के
न मिलने से अभी से
जबकि लंबी उम्र के लिए
कई सांसे शेष है
ईश्वर से क्या
वरदान मांगना चाहिए ?
बिना चार कांधों के
हालातों से कलयुग में
इंसानों को
अमरता का वरदान
मिलना ही चाहिए।
धार, मध्य प्रदेश
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