मन लुभाता सावन आया
आषाढ़ माह ने खूब तपाया ,
बिना जल धरती को सताया !
मेघ रंगीन दिखे जब नभ में ,
जगा उत्साह तब सब में ।
जगह-जगह से आकर घिर ,
वे गरजे - चमके तब फिर !
गीत सुनाता सावन आया ,
रिमझिम वर्षा संग में लाया ।
शीतल पवन ठंडी फुहार ,
भाती मन को आई बहार !
बरसते बादल कभी जोर से ,
झम-झम-झम सभी ओरसे ।
तालाब बनती सड़कें सारी ,
लगता है तब संकट भारी !
डूबे घर खेत खलिहान ,
लगता है कैसे बचायें जान !
भूस्खलन टूट-फूट औ बाढ़ ,
बहती है मिट्टी पत्थर झाड़ !
जब बादल हैं दया में आते ,
तब हल्की बूॅंदें हैं बरसाते ।
झूले डालों पर पड़ जाते ,
गाते - झूलते और झुलाते ।
बच्चे लेकर के हाथ पतंग ,
जाते खेलने सब संग - संग ।
इन्द्र धनुष रंगों का सात ,
दिखलाता सावन बरसात !
मच्छर - मेंढ़क लाता साथ ,
जो सोनें न देते सारी रात !
पौध रोपण करते हैं सब ,
पर्यावरण सुधरता है तब ।
जल के भंडार भर जाते ,
खेतोंको देख खुशियाॅं पाते !
मन लुभाता सावन आया ,
खजाना खुशियों का लाया !
देहरादून , उत्तराखण्ड
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