परिवार…..
एक सुखद एहसास है,
यहां रिश्तों का बसेरा है ,
साथ सभी के ...खुशियों का डेरा है ।
परिवार….
वृद्धजनों का आशीर्वाद है ,
शिष्टाचार है संस्कार हैं ,
छोटों को प्यार है
बड़ों को मान सम्मान है ,
परिवार….
ममता की छांव है ,
निश्छल प्यार है ,
त्याग है समर्पण है,
साथ खुशियों का…. बहता समंदर है।
परिवार…
मुश्किल हालात में,
हाथों में हाथ है ,
सपनों की उड़ान है ,
हर समस्या का….. यहां समाधान है ।
परिवार…..
जीवन की अंधेरी राहों में ,
उजियारा है ,
राह भटके को,
संभालने … बांहों का सहारा है ।
परिवार…..
जीत में ,
आन बान शान है ,
हार में ,
संबल है हौसला अफजाई है।
परिवार…..
अस्तित्व है,
पहचान है ,
जीवन की ढलती सांझ में ,
एक मीठा सा पड़ाव -ठहराव है ।
परिवार…
नाज़ुक डोर है रिश्तों की,
मांगे थोड़ा सा प्यार ,
तभी स्वर्ग से सुंदर ,
बनता है परिवार ।
पर आज परिवार…..
टूटकर बिखर रहे हैं ,
रिश्तों के बंधन चुभने लगे हैं ,
नहीं किसी को है इनकी दरकार ,
समय की ना जाने ये कैसी बयार ,
सूना है घर का हर एक कोना ,
वृद्धों का है वृद्धाश्रमों में बसेरा ,
सूख गया है आज आंखों का पानी ,
अब हर घर की यही है कहानी ….।
- भावना नगरिया
झांसी, उ.प्र.
विश्वास और समर्पण के धागों से बुनकर
जो सुदृढ आधार बनाए, वो है परिवार
स्वच्छ मन और स्नेह से सींच सींच कर
जो प्यारा उपवन सजाए, वो है परिवार
बड़े छोटे का अपनों से भान कराकर
जो निर्मल संस्कार सिखाए,वो है परिवार
एहसासों के पुष्पों की गूँथी माला से
जो कंठहार बन जाए, वो है परिवार
रिश्तों की डोरी संग बाँध के सबको
जो हरपल साथ निभाए, वो है परिवार
बुजुर्गों की छाँव में रहकर नवपल्लव को
जो सदव्यवहार सिखाएंँ, वो है परिवार
नैराश्य निशा में किसी भटके राही को
जो आशा का दीप दिखाए,वो है परिवार
प्रतिकूल समय में जब फँसी हो नैया
बन माँझी जो पार लगाए,वो है परिवार
दिशाहीन हो जब कोई जीवनपथ पर
दे हौसला जो संबल दिलाए, वो है परिवार
कर्मवीर बना अपने कर्तव्य पथ पर
जो नित साक्षात्कार कराए,वो है परिवार
व्यक्ति, समाज, राष्ट्र का कर्णधार बनकर
जो सदाचार का पाठ पढ़ाए,वो है परिवार ।
- अर्चना गुप्ता
अररिया, बिहार
संबंध में हो मिठास, सहज जुड़ें हो तार।
संस्कार आधार बने ,प्यारा हो परिवार।।
अकेले रहने वाला ,दुख से जाये हार।
सँभले न जीवन जैसे,नाव बिना पतवार।।
कट जायें दिन दुख भरे ,घटे काम का भार।
सुख का घट भर के बहे ,संग जहां परिवार।।
पिता दृढ़ संबल बनते ,मां से मिले दुलार।
दादी के आशीष से,खुशियां मिले अपार।।
बड़ों को सम्मान मिले, दें वह खूब दुलार।
खुशियों की धारा बहे, फले-फूले परिवार।।
घर-द्वार-आंगन चहके ,भाये सब त्यौहार।
परंपरा जीवंत रहे ,संग जहां परिवार।।
- शिप्रा सैनी'मौर्या'
जमशेदपुर
जीवन की आधारशिला यह
संस्कृति का आभार है ।
प्रेम, त्याग ममता का मन्दिर
कहलाता परिवार है ।
सुख दुख में सब एक साथ ही
मिल बैठे एक ठाँव में
सारे रिश्ते पलते देखे
बूढ़े बरगद की छाँव में
गांव गली में बसे अभी भी,
यह प्यारा संसार है।
प्रेम त्याग ममता का मंदिर
कहलाता परिवार है ।।
आंगन एक रसोई थाली
सबका एक निवाला
एक तार में गुंथी हो जैसे
सुरभित सुमनों की माला
जहां सुरक्षित रहते सब के,
कर्तव्य और अधिकार है।
प्रेम त्याग ममता का मंदिर,
कहलाता परिवार है ।।
"वसुधैवकुटुम्बकम" का जग को,
हमने ही दिया उपहार है ।
प्रेम त्याग ममता का मंदिर,
ही होता परिवार है।।
- भानुप्रताप तिवारी
बाँदा, उत्तर प्रदेश
आज के इस दौर में
परिवार के मायने बदल गये।
ना रहा वो प्यार
रिश्तों के आइनें बदल गये।।
पहले सभी सदस्यों का, संयुक्त
परिवार हुआ करता था।
एक खुशनुमा माहौल,सुखी
परिवार हुआ करता था।।
अब स॔युक्त परिवार
एकल परिवारों में ढल गये।
ना रहा वो त्याग और समर्पण...
अहसासों के दायरे बदल गये।।
आज के इस दौर में परिवार के
मायने बदल गये......
पहले हर दिन,हर पल
एक त्यौहार हुआ करता था।।
जब रहते थे सब साथ भरा
पूरा परिवार हुआ करता था।
अब तो त्यौहार भी निरसता की
चादर ओढे आते हैं।।
देकर पल दो पल की खुशी
दिल में तूफान उठा जाते हैं।
रिश्तों के बन्धन ,
जिन्दगी के आइने बदल गये।।
आज के इस दौर में
परिवार के मायने बदल गये।
पहले बैठकर सब साथ-साथ
सुख-दुख का किस्सा सुनाते थे।।
कुछ औरों की सुनते थे
कुछ अपनी सुनाते थे।
अब तो नफरत की दीवारें हैं...
और जायदाद में हिस्सा बताते हैं।।
कोई किसी को नही भाता...
सब एक दूजे से नजर चुराते हैं।
जिन्दगी के सफर में सब
अपने बेगाने हो गये।।
आज के इस दौर मे परिवार के
मायने बदल गये।
पहले घर का मुखिया घर की
शान हुआ करता था।।
उनके स्नेह की छाँया में जीवन
आसान हुआ करता था।
अब वो माता पिता अपने ही
घर में मेहमान बन गये।।
वृध्दाश्रम ही अब उनकी
पहचान बन गये।
संस्कारों की धज्जियां उड गयी
समाज के ताने बाने बदल गये।।
आज के इस दौर में परिवार के
मायने बदल गये।
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