हिन्दी काव्य कोश~ संघर्ष

हिन्दी कविता

संघर्षों का नाम ही जीवन, जीना है तो लड़ना होगा 
थाम हौंसलों की पतवारें, हमको आगे बढ़ना होगा ।
कहते जीवन बहता दरिया, कहाँ भँवर है किसने जाना
पर जीने की जिसे लगन हो, उसको नाव डुबोना होगा ।
एक समरभूमि है जीवन, सबका अपना अपना रण है
अपने कर्मों की गठरी खुद अपने सर ही ढोना होगा।
पथ में काँटे आज सही, पर आगे एक सुनहरा कल है 
पाने को कल फल और छाया, बीज आज ही बोना होगा।
बचपन के साथी का मिलना जीवन आनन्दित कर देता
पर वह सुख पाने से पहले बचपन को तो खोना होगा।
छाया में भी कभी किसी का परछाईं ने साथ दिया है ?
अपने दुःख में अपना साथी हमको खुद ही होना होगा।
हर पल सुख या दुख का अनुभव, हर पल को जीना जीवन है
औरों का दुख अपना लें, फिर हर पल सुखद सलोना होगा।
है संघर्ष रहित जो जीवन, उसको जीने में क्या सुख है
रक्त दौड़ता नहीं रगों में, वो बस एक खिलौना होगा।
संघर्षों को मान चुनौती, हर दिन एक नया अवसर है
छोड़ा गर उम्मीद का दामन, फिर जीवन भर रोना होगा।
जीवन आग उगलती धारा, जिसने भोगा वो ही जाने
जो इसमें तपकर निकलेगा, वो ही सच्चा सोना होगा।
~ स्वीटी सिंघल ‘सखी’
बैंगलोर कर्नाटक 
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अभी सुबह है सुबह रहेगी , क्यों कहते हो रात हो गई 
विचलित हुई कभी न पथ से, संघर्षों की मात हो गई।।
दवा सदा कड़वी होती है, मीठा मीठा ज़हर हो गया।
दु:ख तो सारा चला गया,  सुख तो पहरों पहर बो गया।।
पिया खुशी से घूंट था कड़वा, मस्ती भरी शराब हो गई 
विचलित हुई कभी न पथ से , संघर्षों की मात हो गई।।
भाव बिना फौलाद है मानव,प्रेम में सब कुछ हारे बैठा
कांटे कष्ट न दे पाएंगे, सुमन सुगंध पसारे बैठा।।
घृणा कभी न उपजी मन में, प्रेम मुदित बरसात हो गई
विचलित हुई कभी न पथ से , संघर्षों की मात हो गई।।
बाहर दिखता भले अंधेरा, अंतर्तम तो हारे बैठा 
भूमि पड़ा है हाथ पसारे, रावण सीता हारे बैठा।।
काकदृष्टि तो उड़ते उड़ते, चट्टानों के पार हो गई
विचलित हुई कभी न पथ से , संघर्षों की मात हो गई।।
सतत विहग से उड़ते रहना, चरैवेति चलते रहना है।
पिघल पिघल करुणा बन कर के सब कुछ तो सहते रहना है।।
उड़नखटोले आशाओं के, अहा निराशा ख़ाक हो गई
विचलित हुई कभी न पथ से  संघर्षों की मात हो गई।।
~ दीपा प्रकाश 
   कानपुर , उ.प्र.
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भोर की कोमल किरणें
ओस में लिपटें झरनें
इंद्रधनुष बनाते हैं
संसार को लुभाते हैं
उनका अंधकार से
संघर्ष नहीं तो क्या है ?

पहाड़ों से निकली
जल की धारा
जीवन अपना
मिशन पर वारा
जन जन की प्यास बुझाई
मरूस्थल में खुशियाँ लाई
उसका पत्थरों से
संघर्ष नहीं तो क्या है ?

दिहाड़ी हो या दैनिक
मेहनतकश मजदूर
दिनभर परिश्रम करके
होता थक के चूर
दो जून की रोटी पाता
परिवार में सबको खिलाता
उसका भूख से
संघर्ष नहीं तो क्या है ?

विचारधाराओं की यह टकराहट
छुपी हुई है इसमें कोई आहट
भयभीत आंखें मांगें न्याय
कब तक सहेंगे वो अन्याय
उनका समाज से
संघर्ष नहीं तो क्या है ?
~ श्याम खापर्डे  
  दुर्ग, छत्तीसगढ़
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सोना जब अग्नि में तप कर करता है संघर्ष
कुन्दन बन कर पाता ललना का तन स्पर्श 
देवों के सिर मुकुट में जड़ कर पाता उत्कर्ष ।
करता है संघर्ष चोट छेनी की जब सह जाता है
एक साधारण पत्थर भी तब देव मूर्ति बन जाता है
संघर्ष बनाता पूज्य हमें यह जीवन का निष्कर्ष।
बचपन से ले कर मृत्यु तक जीवन है संघर्ष कथा
कौन हृदय है जिसने कभी सहा नहीं संघर्ष व्यथा
बचपन में गिरना फिर उठना यौवन में जीविका संघर्ष।
अंधकार से लड़ कर दीपक उजियारा फैलाता है
सागर की लहरों से लड़ कर जहाज गन्तव्य पाता है
मिली सफलता उसको जिसने जीता है संघर्ष।
उद्गम से बहते ही नदी का संघर्ष श्री गणेश हो जाता
पर्वत से टकराता जल, चट्टानें     तोड़ बढ़ता जाता
चलते रहना ही जीवन है बाधाओं से कर संघर्ष।
जीवन है संघर्ष बिना , ज्यों बिना नमक के खाना
जिसने किया संघर्ष उसी ने जीवन मूल्य को जाना
जिसने संघर्ष नहीं जाना, वह कैसे जानेगा हर्ष।
है संघर्ष सनातन इसका नहीं कोई निस्तार
संघर्षों की गाथा जग में ईश्वर का हर अवतार
हर मन का रण आंगन सहता सुर-असुर संघर्ष।
~  रमेश बोहरा
  जोधपुर, राजस्थान
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मन संघर्ष करता शब्दों से कविता तब बनती है,
प्रतिक्षण प्रतिपल संघर्ष से ही ज़िन्दगी ये चलती है।
रुकना अभिप्राय है मृत्यु का पी गरल जो बढ़ते हैं
संघर्षरत सदा वे रहते सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं।
प्रत्येक मनुज है प्रयासरत यहाँ सबकी अपनी आशा है
कुछ रोटी के लिए घूम रहे कुछ को महलों की अभिलाषा है।
छूना चाहते जो आसमान को धरा पर पदचिन्ह उन्हें बनाना पड़ता
अथक श्रम और संघर्ष से नभ अपना सजाना पड़ता।
छोटी सी चिड़िया भी संघर्षरत रहती नीड़ बनाने को
कोमल पर से गगन नापतीतिनका तिनका जुटाने को।
प्रस्तरों को चीरकर आवेगी प्रपात निकलता है
अपनी जलधारा से अटल शिला को खंडित करता है।
दिनकर करता संघर्ष निशा से जग आलोकित हो जाता है
भेदकर गहन तिमिर को नवजीवन भर जाता है।
संघर्ष से ही मुक्त होता पिंजरे का पक्षी तोड़कर सारे बंधन
संघर्ष जीवन अवलंबन संघर्ष हृदय का है स्पंदन।

       ~ रीमा  सिन्हा, 
        लखनऊ, उ.प्र.

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