हिन्दी काव्य कोश - हिन्दी

हिन्दी काव्य कोश


उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम जन-जन को करें विभोर।

चलो देश में अलख जगाए हिन्दी की चहुँ ओर ।।

हिन्दी है पहचान हमारी, हिन्दी से  है राग 

हिन्दी के भावों में बसता, मृदुल प्रेम अनुराग ।

विविध रंग को सूत्र बनाने, का मौका है हर ओर

चलो देश में अलख जगाए हिन्दी की चहुँ ओर ।।

खान-पान और गांव में दिखती हिन्दी की पहचान 

मिट्टी के कण -कण में बसता, हिन्दी का सम्मान ।

कविता, गीत, संगीत, कहानी की बढ़ानी है डोर 

चलो विश्व में अलख जगाए, हिन्दी की चहुँ ओर ।।

वैश्विक देशों में बढ़ रहा है, हिन्दी का अब मान 

दूर देश में बसे लोग भी, हिन्दी पर करे गुमान ।

अंग्रेजी देशों में भी अब, फैल रहा हिन्दी का शोर 

चलो देश में अलख जगाए,हिन्दी की चहुँ ओर ।।

राष्ट्रभाषा ही राष्ट्रधर्म है, युवा यह समझे भान 

मंचों से उद्बोधन करते, समय यह रखे ध्यान ।

कवियों की अभिव्यक्ति का, यशगान करें हर ओर

चलो देश में अलख जगाए, हिन्दी  की चहुं ओर ।।


~ डॉ दया एस श्रीवास्तव

       सीतापुर, उ.प्र.

____________________________

निज भाषा ही सर्वदा, करे राष्ट्र निर्माण।

क्षीण गात अभि-व्यञ्जना, हिन्दी फूँके प्राण।।१।।

हिन्दी पोषित जो सदा, उन्नत राष्ट्र महान।

वैज्ञानिक भाषा यही, भारत की पहचान।।२।।

हिन्दी भाषानन सजी, बिन्दी मंजुल माथ।

बेटी संस्कृत की बड़ी, गाती गौरव-गाथ।।३।।

वर्ण व्यवस्था श्रेष्ठ अति, भाषा प्रचुर समर्थ।

निश्चित लिपि प्रत्येक ध्वनि, अन-अपवादित अर्थ।।४।।

गूँगे अक्षर हैं नहीं, उच्चारण आसान।

लिखित पठित सम वाच्य यह, देवनागरी शान।।५।।

सत्रह इसकी बोलियाँ, चार शैलियाँ जान।

उपभाषाएँ पाँच हैं, राजभाष सम्मान।।६।।

भाषा बड़ी उदार यह, अपनाती पर-शब्द।

शब्दकोश अतिशय वृहद, कई लाख उपलब्ध।।७।।

विश्व आर्थिक मंच कहे, भाषा हिन्दी खास।

शामिल है दस शीर्ष में, शक्तिवान जग-भाष।।८।।

होता है जिस देश में, निज भाषा सम्मान।

नित उन्नति सोपान पर, करता वो उत्थान।।९।।

हिन्दी भाषा विश्व की, जब थाती बन जाय।

भारत तब ही विश्वगुरु, स्वयं 'आप्त' कहलाय।।१०।।


      - आशीष गुप्त 'आप्त'

         ओबरा, उ०प्र०

_________________________________

आन बान  है  देश  की,  हिन्दी  सबकी  शान।

हो  हिन्दी  के  बोल  का,  अक्षर  अक्षर  ज्ञान।।

है वैज्ञानिक  वर्ण  सब,  करें  शब्द  सब  अर्थ।

हिन्दी  अब  संसार में,  सबसे  अधिक  समर्थ।।

हिन्दी  वर्धन  के लिए,  करना  है  कुछ  काम।

हो  हिन्दी  व्यवहार  में,  जग  में  आठों  याम।।

देश  धरोहर  मानकर,   कर   हिन्दी से  प्यार।

अंतस   में  हिन्दी  रहे,   हिन्दी  जीवन   सार।।

हिन्दी  देती  एकता,   जन-जन  में नित  नेह।

सदा जोड़ती देश को,  बनकर  सुख  की मेह।।

अपनी  भाषा  से सखे,  करें  सदा  अभिमान।

हिन्दी  से  ही  देश  को,  मिले  नयी  पहचान।। 

हिन्दी  में अब  कीजिए,   सदा   सखे  संवाद।

हिन्दी के  उपयोग  से,   मिटे  सभी  अवसाद।।

कविवर हिन्दी में रचें,  नित-नित नूतन काव्य। 

विकसित नव आयाम अब, हिन्दी में संभाव्य।। 

आओ  हिन्दी  को करें,  सदा  नमन  श्रीमान।

हिन्दी  उर में  है  बसी,  युग-युग  से भगवान।।

जन-जन की भाषा यही, यही मधुरतम बोल।

प्यारे   भारत   देश  में,   हिन्दी  है  अनमोल।।


~ भाष्कर बुड़ाकोटी "निर्झर"

    पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

________________________

जननी संस्कृत से उद्गम हिन्दी तो एक सरोवर है।

प्रबुद्धजनों की बनी कल्पना हिन्दी राष्ट्र धरोहर है।

हिन्दी भारत की चिर आयु हिन्दी भारत की आशा है। 

हिन्दी भारत गौरव गाथा हिन्दी जन जन की अभिलाषा है।

हिन्दी दोहों का है प्रकाश हिन्दी मानस चौपाई है।

हिन्दी कबीर की है वाणी हिन्दी तुलसी को भायी है।

हिन्दी मीरा का कृष्ण प्रेम हिन्दी सूर की ज्योतिपुंज।

हिन्दी अगणित शब्दों की बनी एक है दिव्यपुंज ।

हिन्दी पंत का प्रकृति प्रेम हिन्दी दिनकर की राष्ट्रभक्ति।

भारतेन्दु की नाटक है हिन्दी  जयशंकर की अभिव्यक्ति है।

महादेवी की दीपशिखा, बच्चन की मधुशाला है हिन्दी। 

मांँ वीणापाणि की अमर वंदना और निराला है हिन्दी।

है शब्दों का स्वछंद भाव हिन्दी रस है और अलंकार।

हिन्दी है ओजता का पर्वत हिन्दी कविता का है श्रृंगार।

हिन्दी है नदियों का कल कल  हृदय का सौंदर्य है हिन्दी ।

अधरों की मुस्कान है हिन्दी हिन्दी प्रेम माधुर्य है।

हिन्दी है जीवन का प्रभात हिन्दी ही धरा का है गहना।

हिन्दी के पुष्प रजित चरणों में हम सबको ही है रहना।

हिन्दी स्वयं व्याकरण है हिन्दी तो ज्ञान का  रथ भी है ।

हिन्दी राष्ट्र की है भाषा हिन्दी तो स्वयं ही  भारत है।


~ राघवेंद्र सिंह

______________________

कैसा यह दुुर्भाग्य देश का,

मना रहे हिन्दी पखवारा। 

जैसे सौतन के बेटे को,

सौत दे रही हो पुचकारा।।

हिन्द की धरती पर अब भी,

क्यों हिन्दी प्रति आघात करें।

मन ही मन सब करे प्रतिज्ञा,

आओ हिन्दी में बात करें।।

हिन्दी इतनी कमजोर नहीं,

कि इसका बाजार सजाएं।

यह माथे की बिंदी है,

इसको अपना श्रृंगार बनाएं।।

पखवाड़ों की बात करो मत,

हर दिन हर पल हर रात करें।

घर से लेकर कार्यस्थल तक,

आओ हिन्दी में बात करें।।

भारत की सब भाषाओं में,

हिन्दी का स्थान श्रेष्ठ हो।

हर भाषा को मान मिले पर,

उन सब में यह सदा ज्येष्ठ हो।।

इसका मान दिलाने हित,

हम सब मिल शुरूआत करें।

पंचायत से संसद तक,

आओ हिन्दी में बात करें।।

कथनी करनी में भेद त्याग,

इसको जीवन शैली कर लो।

रहो न सीमित भाषण तक,

इसकी कुछ पीड़ा हर लो।।

मातृभूमि की भाषा हित,

सबके मन में यह बात भरें।

गांव गली से न्यायालय तक,

आओ हिन्दी में बात करें।।


~ अनिल 'डफर'

फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ