हिन्दी काव्य कोश~ मोबाइल

 

हिन्दी कविता


वाह! मोबाइल अजब गजब तुम्हारे कारनामे हैं

युवा ही क्या ! बूढ़े और बच्चे भी तेरे दीवाने हैं

जमीन की दूरियाँ मिट गयी हैं जब से तुम आये हो

अपनों के बीच दूरियाँ बढ़ी चक्कर कैसे चलाये हो

ज्ञान की खान हो तुम पर किशोरों को भरमाये हो

शारीरिक खेल भूल गए फ्री फायर में उलझाये हो

तुम ही किताब,  तुम ही गुरु,  तुम पाठशाला हो

तुम ही गीत, तुम ही संगीत, तुम ही रंगशाला हो

तुम ही कमाई का जरिया बन, रोजगार दिलाते हो

तुम ही गपसप काअड्डा बन, निठल्ले भी बैठाए हो

डाक घर का पता भूल गए हैं हम जब से तुम आये हो

महीनों में पहुंचने वाली बात पल भर में पहुंचाए हो

गुमशुदा को घर तक पहुँचाते, हर खबर को बताते हो

जागरुक करते हो तुम,अफवाह भी तुम ही फैलाते हो

ग्राहक को उत्पाद की सही जानकारी तुम ही बताते हो

ऑनलाइन ठगी का शिकार भी सबको तुम ही बनाते हो

बिछड़े हुए रांझे को हीर से तुम ही मिलवाते हो

घर गृहस्ती में झगड़े की फसाद तुम ही लाते हो

अच्छाई के गुण साथ लिये बुराई भी तुम लाये हो

लाख बुराईयाँ हो तुझमें फिर भी सबको भाए हो

      ~ गावस्कर कौशिक

          सुकमा, छत्तीसगढ़

_________________

छोटा सा यह यंत्र पर, जीवन का है अंग |

आदी इसके हो गये, इसके बिना अपंग ||

मोबाइल इस फोन से, दिन की अब शुरुआत |

दुनिया में अपडेट है, हम सब रात बिरात ||

जब चाहे मन आपका, कर सकते सम्पर्क |

पूरी दुनिया में कहीं, क्या पड़ता है फर्क ||

सबको ही अब चाहिए, यह मोबाइल फोन |

बहुत जरूरी आजकल, रहे आप जिस जोन ||

मत पूछो किस कार्य में,कितना है सहयोग |

ऐसा कोई क्षेत्र क्या, जहाँ नहीं उपयोग ||

फोटो ई-बुक वीडियो, से हो अगर लगाव |

मन को खुश कर लीजिए, होगा नहीं तनाव |

जीवन को समृद्ध अरु काम किया आसान |

बैठे ही उपलब्ध अब, कोई भी सामान |

गुण है तो कुछ दोष भी,भले लोग अंजान |

इसकी किरणें आँख को, पहुॅऺचाती नुकसान ||

गोपनीय हर सूचना, लीक न हो नित रोज |

डाटा होती हैक क्यों, जारी इस पर खोज ||

कोरोना का  काल यह, सबको इस पर नाज |

अब सीधे सम्पर्क में, मोबाइल से आज ||


~ सुनील प्रहरी

जमालपुर, मुंगेर,( बिहार)

_______________

हाथों की लकीरों को चुराकर

 होठों से मुस्कान मिटा कर 

 पाती से ले गया शब्दों की गरिमा

 वाह रे मोबाइल तेरी महिमा।

 मोबाइल पर फिरती उंगलियां

 ना जाने किन एहसासों को तलाशती है

 सुबह शाम बस आते जाते संदेशों को

 एक पलक सूखी आंखों से निहारती हैं।

 हर उमर, हर विषय की है चाहत

 मोबाइल में गुम हो रही लोगों की ज़रूरत,

 जीवन के पड़ाव के रस को अछूता कर रहा है 

 मोबाइल हमको खुद से ही जुदा कर रहा है।

 अब बोलो में मिठास नहीं आती

 दिलों में एहसास नहीं जगाती

 हर जीवन में मोबाईल समाया है

 यही कलयुग की मोहमाया है।


 ~ रवि प्रकाश केशरी

    वाराणसी, उ.प्र.

__________________

भावनाएँ हुईं चिता हवाले, कैसा दृश्य दिखाया है।

सबकी दुनिया अलग हो गई, अब कैसा युग ये आया है।।

नहीं दिखती यारों में यारी, दोस्ती के खुले हैं खाते।

माॅं की ममता मोबाइल हुई, दिखावे के रिश्ते नाते।

भावनाओं की भाषा बदली, आया ईमोजी का काल।

बटन दबा कर बेदर्दी से, बता देते हैं दिल का हाल।

काग़ज़ कलम हैं रोते फिरते, मोबाइल ही छाया है।

सबकी दुनिया अलग हो गई, अब कैसा युग ये आया है।।

प्रेम करे कोई चैटिंग करके, नफ़रत हुई ट्विटर के जिम्मे।

अलग हुई है सबकी दुनिया, बचा नहीं अपनापन हममें।

दिल की जगह उँगली ने ले ली,इससे ही चलती ये दुनिया।

आज जेबों में घूम रही है,सबकी अपनी एक-एक दुनिया।

सम्मान मिला अँगूठे को भी, मोबाइल जब से आया है।

सबकी दुनिया अलग हो गई, अब कैसा युग ये आया है।।

कोई पुस्तक कोई अख़बार, सब कुछ इसमें है तैयार।

गुणा भाग भी हो जाता है, और फोटो खींचो बारंबार।

कैसी भी हो विद्या चाहे, इतिहास,भूगोल,गणित,विज्ञान। 

सब कुछ इसमें मिल जायेगा, कितना भी हो उत्तम ज्ञान।

जन्म जन्मों से जो ना सीखा, मोबाइल ने सिखाया है।

सबकी दुनिया अलग हो गई, अब कैसा युग ये आया है।।


~ संजीव सिंह 

द्वारका, नई दिल्ली

__________________

बनाने वाले ने बेशक़ बेहतरीन चीज बनाई 

दुनिया को मोबाइल में भरने की क्या खूब कला पाई ।

ये कैसा अनोखा मायावी यंत्र है,

बच्चों से लेकर बड़ो तक को किया परतंत्र है।

एक युग था जब छोटी -छोटी चीजों के भरोसे था संसार,

अब देश- विदेश को समेटे रखता सदी का यह आविष्कार।

रेडियो ,टीवी और कितने मनोरंजन का इसमें मंत्र है,

मोबाइल नहीं,इंसान के खुद का मन रहा नहीं अब स्वतन्त्र है।

पहले दूर - दूर रहते, अपनों को देखने के लिए तरसते थे लोग,

अब हर सुख-दुःख में वीडियो कॉल के जरिए दिलासा देते लोग।

शहर-शहर घुमने और देखने का अरमान था होता,

अब तो बस ऊँगलियों में सिमटा ये जहान है होता।

प्रकृति सुन्दर है ,आज भी उन्मुक्त है पक्षियों की उड़ान,

मोबाइल की क्या गलती,इसका इस्तेमाल ही गलत करे इंसान।

गुण-दोष ,अच्छाई-बुराई इंसानों में भी कम कहाँ,

फिर तो ये पथ भटकाता निर्जीव मोबाइल है जहाँ।

लत किसी चीज की हो,होती बहुत बुरी है,

सीमित और सही उपयोग करें,तो इससे बड़ी उम्मीदें जुड़ी है।।


        ~ नेहा झा 'नेहामणी'

            वाराणसी, उत्तर प्रदेश

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ