हिन्दी काव्य कोश~ रक्षाबंधन

 

राखी के त्यौहार को वंदन, भाई बहन के प्यार को वंदन,

दुनिया के हर रिश्ते से बढ़कर , ये  है अटल विश्वास का बंधन,

निश्छल प्रेम भरा हो जिसमें, दर्द हृदय का पढ़ा हो जिसने,

मान और सम्मान का बंधन, अनुपम,अद्भुद, अपार ये बंधन,

हीरे - मोती ना सोना चांदी, है सबसे अनमोल ये बंधन, 

इस प्यारी सी धरती पर, है ईश्वर का वरदान ये बंधन,

इस सावन में मेरे भाई, चली है ये कैसी पुरवायी,

क्या सोचेगी तेरी कलाई, राखी तुमको भेज न पायी,

दूर देश में रहते हो तुम, आने की भी ख़बर न पायी,

राखी के दिन मेरे भैया, याद मुझे कर लेना दिल से,

प्यार मेरा पहुँचेगा तुम तक, आशीर्वाद मेरा पहुँचेगा तुम तक,

हर भाव मेरा पहुँचेगा तुम तक, माथे पे तुम तिलक लगाना,

पूजा में रखे हुए मौली धागे को, बांध कलाई में तुम लेना ,

और जरा तुम फिर कर लेना,दो पल को  आँखों को बंद ,

मुझे पास अपने पाओगे, बचपन की यादें दोहराओगे,

राखी का तुम मुझको भाई, कोई भी उपहार न भेजो,

हो कोई  बहन कहीं संकट में, बस उसके तुम काम आ जाओ,

हर नारी का सम्मान तुम करना, यही वचन राखी में मैं मांगूँ,

जिस दिन किसी बहन के आँसू , पोंछ सके इस काबिल होगा,

इस राखी के धागे के ऋण से, मेरे प्यारे भाई उऋण तू होगा।


~ नीलम द्विवेदी

रायपुर, छत्तीसगढ़

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रक्षाबंधन पर्व अनोखा, इसको अनुपम बनाएं ।

आओ हम सब मिलकर रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


बहनों की आन की खातिर भाई भातृभाव दिखाएं ।

आओ हम सब मिलकर रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


लक्ष्मी जी ने बांधा धागा, राजा बलि से हरी को लाये ।

द्रौपदी को मान भगिनी, कृष्ण फिर लाज बचाए ।

आओ हम सब मिलकर,  रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


असमता भाव से पीड़ित सुता को समता भाव दिलाएं ।

वह भी है समान अधिकारी समाज को यह समझाएं ।

आओ हम सब मिलकर , रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


बहन अपनी हो या दूजे की, आचरण श्रेष्ठ दिखाएं ।

रक्षा के धागे सम है तो क्यों हम भेदभाव कर जाएं?

आओ हम सब मिलकर,  रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


विपत्त पड़े यदि कभी भाई पर,बहन आधार स्तंभ बन जाए

तब दृढ़ हो एक बहन भी भाई की पथ प्रदर्शक बन जाए।

आओ हम सब मिलकर , रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


रक्षा सूत्र भाई के द्वारा, क्यों ना बहन को भी बांधा जाए ?

अस्थिर से इस जीवन में, बहन भी तो कर्तव्य निभाएं ।

आओ हम सब मिलकर , रक्षाबंधन नवल मनाए ।।


रक्षाबंधन पर्व है स्नेह का ,भाई बहन का प्रेम बढ़ाये ।

लेन-देन का चक्र बढ़ा, ना हम इसको बोझ बनाएं ।।

आओ हम सब मिलकर रक्षाबंधन नवल मनाए ।।

      ~ अंजना भट्ट

           दिल्ली

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बाँधे बहनें डोर कलाई 

प्यार लुटाते उनपर भाई 

खिड़की पर बैठी एक बहना 

 खोल रही मन की तुरपाई 


आँखो से ढलके हैं मोती 

जाने कितनी पीड़ा ढोती 

सुधियों की लहरें मानो 

उतराती फिर और डुबोतीं


घर के अँधियारे कोने से

उसने एक संदूक उठाया

सिसक रहे इस वर्तमान के

सीने में सुंदर भूत समाया 


काँप उठी उसकी उँगलियाँ 

हाथों ने जब ताला खोला

उसमें रखी वर्दी को 

जी भर उसने आज टटोला 


समय ठिठक रुक गया वहीं 

रुक गयी हवा रुक गयी धरा

कराह उठी धरती भी एक पल

मौसम में बढ़ गयी नमीं 


कितनी बहनों की राखी की

भैया तुमने लाज बचाकर

सीमा पर बलिदान दिया

देशप्रेम का धर्म निभाकर 


सहसा भीगी पलकों पर 

एक गर्व सा चमक उठा

अँधियारे को काट गगन में 

जैसे सूरज दमक उठा


वर्दी को बाँधी राखी और

उस पर चन्दन तिलक किया

मत पूछो  बस जैसे उसने 

प्राणों को जैसे अलग किया 


हाथ जोड़ कर बहना ने

भाई से आशीर्वाद लिया

हर जन्म तुम्हारी बहन बनूँ  

कह पल्लू का कोना बाँध लिया


होठों पर मुस्कान बिखेरे 

लौट पड़ी खिड़की की ओर 

बाहर बहनें प्रेम लिये 

बाँध रहीं रेशम की डोर


~ अभिनव सिंह "सौरभ"

   सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश

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स्नेहिल पावन अति सुहावन 

विश्वास भरा सुमधुर बंधन 

भाई-बहन के अमर प्रेम का 

स्नेह निःसृत रक्षाबंधन ।


सुमंगल थाल सजाती बहना 

माथे कुमकुम रोली चानन 

बांध कलाई रेशम का धागा 

सद्भाव झंकृत रक्षाबंधन ।


पवित्र प्रेम का माधुर्य तरंग 

कान्हा कृष्णा का नेह बंधन 

अपनेपन का शुभ दर्शन 

पावन संस्कृति का रक्षाबंधन ।


प्यार पवित्रता त्याग समर्पण 

शुभकामनाओं का आशीर्वचन 

अन्तर्मन छवि उज्जवल हर क्षण 

अरदास समाहित रक्षाबंधन ।


मर्यादा का है यह बंधन 

हर बहना का हो संरक्षण 

स्वर्णिम हो मानव जीवन 

नव उम्मीद स्पंदित रक्षाबंधन ।


~दिलीप कुमार गुप्ता 

    अररिया, बिहार

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धागा बंधे कपास का,या रेशम की डोर।

बहना भ्राता स्नेह बंध, करता रहे अंजोर।।1।।

गाँठ न इसको मानिये,बंधन नेह अटूट।

ये  रक्षा  अनुबंध  है, पड़े  कभी ना फूट।।2।।

शोभित तिलक ललाट जो, विजयी भव आशीष।

मांगे   भगिनी   ईश  से , 

अरि  होवे ना बीस।।3।।

हुमायूँ भी समझा था, रक्षाबंधन मर्म।

रक्षा  के इस बंध को,माना अपना

धर्म।।4।।

कटी  कृष्ण  की  तर्जनी, सावन पूनम    मान।

बांधी आँचल फाड़कर , लाज रखे भगवान।।5।।

भाई-भगिनी बंध को, लगे कभी ना   घात।

कुछ   कलाई  सूनी  है, कुछ राखी  बिन हाथ।।6।।

रक्षाबंधन  सीख  दे, रखती बहन  महत्व ।

कली न कुसुमित हो सकी,मानव का जड़त्व।।7।।

सावन सूखा  ना  रहे, हरियाली चहुंओर।

भाई-भगिनी  बंध को ,शक्ति मिले

पुरजोर।।8।।

बहना भूखी  भाव  की, मांगे ना उपहार।

नेह सुरक्षा मान  मिले,और मिले सत्कार।।9।।

युग युग से प्रमाणित है, रीति नीति इतिहास।

पावन बंध इस सूत्र का, रहे बारहो  मास।।10।।


~ अवधेश शर्मा 'नन्द'

  गोरखपुर, उ.प्र.

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