हिन्दी काव्य कोश~ बचपन



एक बचपन,  ऐसा  भी  होता है,
अपेक्षाओं का बोझ, सिर पर होता है,
पाठशाला का मुख कभी देखा नहीं,
उत्तरदायित्व का बस्ता,कंधे पर ढोता है।

धरती का आँचल , जिसकी शैय्या है,
चंदा लेता हर दिन, उसकी बलैया है,
सितारों  संग  बातें  करता,
चाँदनी सुनाती, मीठी लोरियाँ है ।
अम्बर की चादर, ओढ़ कर सोता है ।
एक बचपन,  ऐसा  भी  होता है ।।

आँख खुलते ही हाथों में, जूठे कप व केतली है,
मेहनत के पसीने से भीगी,शर्ट मैली कुचैली है,
यहां वहां  भँगारो  में  ढूँढता,
प्लास्टिक के डिब्बा, बोतल और  थैली है।
सूर्य के ताप से दग्ध तलवों को, अश्रुजल से धोता है।
एक बचपन,  ऐसा  भी  होता है ।।

हाथ फैलाता नहीं, होता मन में स्वाभिमान है,
शुचिता के सिक्कों में, बसते इसके प्राण हैं,
उम्र में  कुछ  कच्चा है लेकिन,
अपने हौसलों पर,  करता अभिमान है ।
संघर्षों के हार में, उज्ज्वल भविष्य के मोती पिरोता है।
एक बचपन,  ऐसा  भी  होता है ।।

    ~ संगीता चौबे "पंखुड़ी"
         इंदौर, मध्यप्रदेश
………………………………

निर्मल चंचल पावन बचपन,
क्यों याद बहुत आता है।(१)
सबसे मधुरकाल जीवन का,
बचपन ही कहलाता है।।(२)

माँ के आँचल की वो छाया,
भय को दूर भगाती थी।(३)
काजल का टीका माथे पर,
क्यों माँ नित्य लगाती थी।।(४)

माटी में बालक की क्रीड़ा,
माँ का मन हर्षित कितना।(५)
देख अटखेलियाँ भर जाता,
सुख भी सागर के जितना।।(६)

हर कामना पूर्ण हो सबकी,
पिता कमाने जाता है।(७)
निर्मल चंचल पावन बचपन,
क्यों याद बहुत आता है।।(८)

बारिश के पानी मे भीगा,
तन-मन आंनन्दमगन था।(९)
लुकना-छिपना भागा-दौड़ी,
कितना प्यारा जीवन था।।(१०)

उन सीधी तिरछी राहों पर,
उछल कूद करते चलना।(११)
प्यारी रंगों भरी तितलियाँ,
धीरे से उसे पकड़ना।।(१२)

बचपन का बीता वो हर पल,
वापस मुझे बुलाता है।(१३)
निर्मल चंचल पावन बचपन,
क्यों याद बहुत आता है।।(१४)

जब भी लड़ते फिर मिल जाते,
मन में द्वैष नहीं लाते।(१५)
मस्ती करना खुलकर हँसना,
रोते को सदा हँसाते।।(१६)

बच्चों की टोली हमजोली,
सीरत भी भोली भाली।(१७)
होते थे सब मन के सच्चे,
फैलाते थे खुशहाली।।(१८)

चिन्ता से मुक्त सुखद बचपन,
सबको कितना भाता हैं।(१९)
निर्मल चंचल पावन बचपन,
क्यों याद बहुत आता है।।(२०)

      ~ पुष्पेन्द्र सिंह भदौरिया
            सीहोर, मध्यप्रदेश
………………………………

बचपन की समयावधि में तो
निश्छल भाव समर्पण है।
मानव के जीवन का यह दिन
लगता जैसे दर्पण है।
कपटहीन माधुर्य समेटे
सुंदर छवि का आयुकाल।
बालक्रीड़ा समभाव संग में
प्रेम राग का अर्पण है।।…….1

बचपन केवल शब्द नहीं है
रंग बिरंगी दुनिया है।
जीवन पथ का शुभारंभ यह
बहता निर्मल दरिया है।
मात-पिता के घर आँगन में
महके फूल मनोहर यह।
सींच रहे जस पौध बगीचा
माली की ये बगिया है।……..2

बचपन जीवनकाल है ऐसा
जहाँ न कोई चिंता है।
वाणी में सब देव विराजे
नहीं किसी की निंदा है।
नहीं किसी का यश-अपयश है
नहीं किसी से बैर भाव।
मनुज मूल्य की मर्यादा है
मानवता भी जिंदा है।।…..….3

जीवन की हर कठिन समस्या
बचपन में है खेल लगे।
सुख-दुख सारे अंतर्मन में
माँ ममता से प्रेम पगे।
याद सुनहरा पल रह जाए
बचपन लौट न आयेगा।
विस्मृत स्मृति के दिन लौटे
अपनों का अनुराग जगे।।…......4

         ~ डॉ वी सी यादव
           आज़मगढ़, उ.प्र.
………………………………

स्मृतियों के मानस पटल पर
सबसे सुनहरा काल था बचपन।
छल दंभ द्वेष पाखंड झूठ
अन्याय से कोसों दूर था बचपन।
प्रबल उत्सुकताओं से परिपूरित
जीवन का अनोखा काल था बचपन।
काश क्षण भर को मिल जाता
वह सुखद सुरभित प्यारा बचपन।।

चंचल पक्षी सदृश्य था बचपन
आश्चर्यों से भरपूर था बचपन।
परियों की कहानी राजाओं के किस्से
नटखट शैतानियों का मेल था बचपन।
खेल -खेल में रूठना -मनाना
निस्वार्थ दोस्ती का काल था बचपन।
काश क्षण भर को मिल जाता
वह सुखद सुरभित प्यारा बचपन।।

मन में हठधर्मिता होंठों पर सच्चाई
अपने-पराये के भावों से अनजान था बचपन।
तोतली वाणी क्रंदनमय खेल
सुखद अहसासों का काल था बचपन।
काश क्षण भर को मिल जाता
वह सुखद सुरभित प्यारा बचपन।।

              ~ वर्षा शर्मा
             सुलतानपुर,उत्तरप्रदेश
………………………………

सुखद सलोने चंचल मन ,
याद आ रहे बचपन के दिन।(१)
नहीं उद्वेग, मलाल कोई ,
भर उमंग वह बचपन के दिन।।(२)

मदमस्त पवन सा चलना ,
तितली सा गगन में विचरना।(३)
लहरों संग खेले अठखेली ,
सखियों संग भाए बचपन के दिन।।(४)

बच्चों का कलरव क्रंदन,
मां !के आंचल का प्रिय नंदन। (५)
हर्षित, पुलकित गहराता ,
मात, सताए बचपन के दिन।।(६)

बगिया में पेंगे मारे ,
जामुन, कैरी के चटकारे।(७)
सब स्नेह सुधा बरसाते ,
नयन सितारे बचपन के दिन।।(८)

मां! के आंचल की छाया ,
बाबा !ने जी भर दुलराया।(९)
 स्नेही, आत्मीय जनों ने,
 प्रीत बिछाई बचपन के दिन।।(१०)

जी भर कर हंसना, खेलना ,
बारिश में निज को भिगोना ।(११)
बाबा! की डांट को सुनकर,
 मां !के आंचल बचपन के दिन।।(१२)

 मातृ- पितृ के आशीर्वचन ,
बाधाओं का कर सकल दमन।(१३)
पुष्पित, पल्लवित आशाएं ,
स्वर्णिम जीवन बचपन के दिन।।(१४)

          ~ नमिता गुप्ता
            लखनऊ उ. प्र.