हिन्दी काव्य कोश~ चलते रहना ही जीवन है




अमर-ध्येय-पथ धार नयन में, करना नव-सृष्टि सृजन है।
सद्-पथ विचलित मरण वरण सम, चलते रहना ही जीवन है।। 

शैल-शिखर से गिरकर सरिता, जूझ रही झंझावातों से, 
तृण-तृण चुन खग नीड़ बनाते, भीत नहीं अगणित घातों से। 
त्यागी-तरुवर, जीव-जगत को, प्राण-पवन से सरसाते हैं, 
तिल-तिल जलकर दीपक कहता, लड़ना है तम की रातों से। 
लुटा रही अनुपम सौगातें, यही नियति का अल्हड़पन है। 
सद्-पथ विचलित मरण वरण सम, चलते रहना ही जीवन है।। 

घोर निद्रा मोह त्याग कर, अथक अटल बढ़ना होगा, 
पर्वत-सी बाधाओं, विनाशक-तूफानों से लड़ना होगा। 
यदि यति सद्गति में आती है, असफलता ही हाथ लगी,
कभी-कभी प्रतिकूल लहर के, निज भावों को गढ़ना होगा। 
दिग्-दिगन्त जय गुंजित उनकी, सतत कर्मरत, जिनकी धुन है। 
सद्-पथ विचलित मरण वरण सम, चलते रहना ही जीवन है।। 

दुःखी-दरिद्र-असहाय-रुग्ण जन के मिलकर संताप हरें, 
स्वार्थ त्याज्य परमार्थ काज में, दृढ़-व्रत धर कर नित्य बढ़ें। 
जाति, भाषा, सम्प्रदाय, क्षेत्र की खाई पाटकर सजग बनें, 
राष्ट्र-भक्ति उर भाव सजाकर, मातृ-चरण, बन सुमन चढ़ें। 
मातृ-पितृ-गुरु अरु राष्ट्र ऋण में अर्पण तन-मन-धन है। 
सद्-पथ विचलित मरण वरण सम, चलते रहना ही जीवन है।। 
     ~ बसंत कोष्टी 'ऋतुराज '
        जिला-सागर, म. प्र.
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देख हिमालय सी कठिनाई,
क्यूं राहों का परित्याग किया,
अथक परिश्रम करते करते,
बढ़ते रहना ही जीवन है...!
चलते रहना ही जीवन है...!!

ठहराव अगर जल में हो,
जल की निर्मलता कैसे हो...??
पग पग ही सही... पल पल ही सही,
बहते रहना ही जीवन है...!
चलते रहना ही जीवन है...!!

एकांत वरण कर लोगे तुम,
अवसाद ग्रसित हो जाओगे,
व्यक्तित्व निखर पाए तेरा,
मिलते रहना ही जीवन है...!
चलते रहना ही जीवन है...!!

अन्याय कपट की लंका में,
रावण ही रावण भरे पड़े,
राम - भाव के अस्त्रों से,
लड़ते रहना ही जीवन है...!
चलते रहना ही जीवन है...!!

चीर हरण करने वाले,
अगनित दुर्योधन बैठे हैं,
ऐसे कापुरूषों असुरों से,
भिड़ते रहना ही जीवन है...!
चलते रहना ही जीवन है...!!

हो लाख कठिन कठिनाई,
मानव का जन्म मिला हमको,
गिर कर उठना, उठ कर चलना,
प्रभु से वरदान मिला हमको,

जीवन के हर इक दुख में बस,
हँसते रहना ही जीवन है...!!
चलते रहना ही जीवन है...!!!

~ऋषि देव तिवारी
मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश
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ठहर गई तो लगा था ऐसे
मन मेरा कितना निर्जन है
खाली-खाली सा उपवन है
चांद सो रहा चादर ताने
सूना-सूना सा ये गगन है,
औंधे मुंह लेटी है धरती
पवन भी धीमा या मध्यम है,

पर अपनी गति से बहती नदियां
कितनी स्वच्छ और निर्मल है,
तभी से सोच लिया था मैंने 
कि चलते रहना ही जीवन है।

पर्वत से गिरती है नदियां
चट्टानों से टकराती हैं
घाव कई खाती है लेकिन
कहां हार कर थम जाती हैं,
अवरोध कई  पथ पर आए
पर कभी नहीं वो घबराती हैं
डटकर उनका सामना करती
चीर के आगे बढ़ जाती हैं,

साहस ही बाधाएं हरते
जब-जब परिस्थितियां हुई विषम हैं
अब जाकर जाना है मैंने
चलते रहना ही जीवन है,

संघर्ष करो तो सरल है सबकुछ
नहीं तो हर अवरोध सघन है
फिर कुंठित हो लगता है ऐसे
जैसे जीवन ही निर्मम है

हां नदियों से सीखा है मैंने
चलते रहना ही जीवन है
चलते रहना ही जीवन है।

  ~अर्चना झा 
गाजियाबाद,दिल्ली
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हुए विचलित जब पार्थ शैय्या पर देख पितामह को ,
देख शोणित की सरिताओं के उस दृश्य भयावह को ,
तब माधव द्वारा कर्मज्ञान का किया गया सृजन है ,
कर्तव्यपथ पर अनवरत बढ़ो , चलते जाना ही जीवन है ।

जीवन अनुकरणीय सदा रहा है मर्यादित श्रीराम का ,
मर्यादा पथ के अनुरागी सकल कोटि निष्काम का ,
युद्ध फिर भी रचना होगा यदि सम्मुख कोई दशानन है ,
तब अधर्म विरुद्ध युद्ध करो , चलते जाना ही जीवन है ।

कंटकों सम्मुख हिम्मत से हमको अड़ना बहुत जरूरी है ,
बैरी यदि आँख दिखाए निरंतर तो लड़ना बहुत जरूरी है ,
तब स्वाभिमान रक्षा हेतु हर आँगन रण का कानन है ,
तुम रणभेरी की हुंकार भरो , चलते जाना ही जीवन है ।

व्यवधानों के घनघोर तमस को अन्तस् से हटाना होगा ,
कर्तव्यपथ पर डटकर आगे ही आगे बढ़ जाना होगा ,
दृष्टि धर निहारो प्रतीक्षा में उत्तुंग शिखर का वृंदावन है ,
लक्ष्य धर गाण्डीव की टंकार करो , चलते जाना ही जीवन है ।।
     
    ~आरती अक्षय गोस्वामी
         देवास, मध्यप्रदेश
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यद्यपि नियति का सत्य मृत्यु,
नित नवल सृजन के स्वप्न लिए हैं!
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं!!

तू दिनकर सा नित कर्म प्रखर,
उठ देख, प्रकृति कैसे मुखरित,
नित भोर रागिनी खग गुंजित,
कलियां खिल पुष्प सुसज्जित हो,
हो पवन सुवासित है विधान,
अद्वितीय है जीवन चिर महान,
थक हार किंतु ना रुक सुजान,
है दुष्कर, मार्ग प्रशस्त किए हैं!
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं!!

गतिहीन जलाशय हो दूषित,
गतिमान हो निर्मल जल की धार,
प्रति कर्म प्रधान बना जीवन,
सुंदर-सत्यम-शिव विद्यमान,
मन आत्मसात करुणानिधान,
भवसागर में हम भी उतरे हैं!
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं!!

मनु कण-कण से कर प्राप्त ज्ञान,
जीवन है प्रतिक्षण वर्तमान,
हो आनंदित यह पल प्रधान,
नश्वर है जीवन तत्वज्ञान,
अनुसंधान सहज प्रज्वलित किए हैं!
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं
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     ~ रूपम 
   सुल्तानपुर, उ.प्र.