हार कहाँ हमने मानी है~पुष्पेन्द्र सिंह भदौरिया



जन्म-मृत्यु मध्यकाल जीवन,
संघर्षों भरी कहानी है।(१)
कृष्ण व्योम अनंत विस्तृत पथ,
हार कहाँ हमने मानी है।।(२)

हृदय भाव की उच्छृंखलता,
आच्छादित दृग मति सुमिरन(३)
दृश्य पटल वर्तमान अदृश्य,
अन्तर्मन भूतकाल दर्शन।।(४)

खग मन अम्बर की अनुकांक्षा,
अभिशापित पंखों का कर्तन(५)
डगमग डगमग पग पग विचरण,
पिंजरा सम गृह,भय दूर-गमन।।(६)

सीमित आंगन के बंधन में,
अस्वीकृत आनाकानी है(७)
कृष्ण व्योम अनंत विस्तृत पथ
हार कहाँ हमने मानी है।।(८)

अनुबंधन की बाधक सीमा,
बहिर्गमन का अविरत प्रयत्न(९)
जग ये जाना नट नटनी सा,
क्रीड़ा से तृप्त मनोरंजन(१०)

आशाओं के पंख पसारे,
कल्पित पंखविहीन उड्डयन(११)
ठहरे पग किन्तु नहीं विस्मृत,
पद अभ्यासों का अनुकूलन(१२)

धेर्य परीक्षा चिरकालिक है,
विश्वास अड़िग चट्टानी है(१३)
कृष्ण व्योम अनंत विस्तृत पथ
हार कहाँ हमने मानी है।।(१४)

मूर्छित काया जब मृत जानी,
खोल दिया सारा पटबंधन(१५)
स्वीकार किया हाड़ माँस ने,
अनभिज्ञ राह का अभिनंदन(१६)

भार भरे पग का पथ विचरण
आनन्दित पल नूतन जीवन(१७)
छलक रहा दृग में बीता कल,
कैसा बीता पतझड़ कानन(१८)

अवरोधों का तय आना जाना,
विजय पताका लहरानी है(१९)
कृष्ण व्योम अनंत विस्तृत पथ,
हार कहाँ हमने मानी है।।(२०)

        ~पुष्पेन्द्र सिंह भदौरिया