हार कहाँ हमने मानी है~करुणा दुबे



"कभी माता- बहना, कभी भार्या-बेटी
 रिश्तों में गूंथी कहानी हैं।
समझ न अबला मुझको मानव
हार कहाँ मैंने मानी हैं।।

(1)सहज , सरल , सौन्दर्य विभूषित
     ममतामयी हूँ, दृढ़ संकल्पित।
     दिखे सुकोमल मेरी काया
    पर कठोर श्रम से हूँ निर्मित।।
    हे मानव ! दासी न समझना
     मैंने विकास की लिखी कहानी हैं
    समझ न अबला मुझको मानव
    हार कहाँ हमने मानी है

(2)वीर सुताएँ इस धरती की
     बलिदानों से जाती पहचानी हैं।
     सीता, सावित्री , माँ दुर्गा
     जीजा बाई, और झांसी की रानी हैं।।
     संकट पड़े तो तज कोमलता
     बन जाती मर्दानी हैं
      समझ न अबला मुझको मानव
       हार कहाँ हमने मानी है

(3)सुभ्रदा देवी सा साहित्य सृजन
     महादेवी वर्मा सा कोई ना सानी हैं।
     लता- आशा सी स्वर साधना
    सरस्वती के वरदान की निशानी हैं।।
      परचम खुद का लहराया जग में
       ऐसे गुण- ज्ञान की खानी हैं
      समझ न अबला मुझको मानव 
     हार कहाँ हमने मानी है

(4)रण कौशल में दम दिखा दिया
      बुद्धि में भी वैज्ञानिक हैं।
      अंतरिक्ष यान में भी भरी उड़ान
      कल्पना- सुनीता जग जानी हैं।।
      कर्त्तव्यों में कोई कमी नही
      पर खुद भी स्वाभिमानी हैं
      समझ न अबला मुझको मानव
      हार कहाँ हमने मानी है

           ~ करुणा दुबे