साँसों की सृष्टि से, होकर के चेतन,
जीवन सिन्धु लहर सा, चंचल मानव मन!
संघर्षो का लेकर के, अनजाना क्रंदन,
माँ की गोदी के सुख, सुख, अनुपम रंजन!!
चंदन वनी सी महकती जिंदगानी है,
जहरीले सर्पों की निष्ठुर मनमानी है!
हार कहाँ हमने मानी है!
महाभारत में बन हम, पांडव लड़ते हैं,
बाधाओं के सिर पर, तांडव करते हैं!
पावन शीतल गुण, नहीं छोड़ सकते हैं,
अंधकार में भी, ज्योति पुंज से जलते हैं!!
माँ कहती है विपदा तो आनी जानी है,
हार कहाँ हमने मानी है!
लोभ-मोह-मद-क्रोध, यही दुःख दायक हैं ,
उत्साह-शौर्य-साहस, धैर्य ही निर्णायक हैं!
चाहे चिंताओं के, तूफान भयानक हैं,
सीना ताने खड़े, वही महानायक हैं!!
सत्य-अहिंसा-बंधुत्व प्रेम की अमर कहानी है,
हार कहाँ हमने मानी है!
~सोम दीक्षित
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