प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा ! - हिन्दी काव्य कोश


'प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा'  
 
व्योम से अवतरित होकर , देखो  धरा पर आया कौन ?
व्योम सुन्दरी के यौवन को , देख  हुआ जग सारा मौन||

केश सुनहला ,छबि-छाया में, मस्त लिया जिसने अंगडाई,
मूंदे अधरों में मधुपालाप को, रजनी हंसकर धरा पर आई||

निर्निमेष हो पलक निहारे, भाव-संकुल,भ्रू-चाप भी हैं मौन,
दिन-रात समेटे छबि-छाया में,रहती कहाँ हो, तुम हो कौन||

हिमनद से निकल-निकल,कल-कल , छल-छल निर्मल धारा,
हिम आच्छादित शैल-शिखर पर,रजत वस्त्र में लिपटी काया||

नुपुर बजावत ,नाचत खग-कुल,पंख खोल हैं नभ में उड़ते ,
लाज से अरुण लखि सुकपोल,खोल हृदय आल्हादित करते||

रजत किरण से नैन पखारे , ले  सौरभ  का भार अनूठा ,
ना जाने कितने स्वरुप में,है प्रकृति शक्ति यह सौम्य रूपा ||

                                रचनाकार –विजय कुमार तिवारी’विशु'
                                 पता- नोखा      
                                 जिला-बीकानेर (राजस्थान)



'प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा'

सुरम्य सौम्य इस पुलक प्रकृति को,
मैंने अन्तर्मन से झाँका |
परम पल्लवित पुलकित सृष्टि को,
नवल बधु श्रृंगारित आँका ||
प्रकृति ग्रहों के मध्य अवस्थित,
धन्य धरा का रूप संवारति |
वेश अतुल पल-पल परिवर्तित,
छबि अद्भुत छनिक छिन धारति ||
नीरद,नीरज,नीदधि,नीर,नभ ,
रवि-शशि वायु संग तारे |
हिमश्रृंग तुंग दुर्गम धन्य धवल,
चरन-कमल दृगहरि प्यारे ||
सुघर निर्झर सरस,स्वर बायस,
बिहग कोकिल कलरव गुंजित |
मकर उरग झष मद विहवल सब,
मधुरिम हास यह सुदृश पूजित ||
मदमोहक बलाहक मृदु क्रीडा में,
मधुरस पान करते भ्रमर |
जीव पथिक नित क्षितिज विहरति,
स्वमेव करें आभास अमर ||
स्वर्ग सदृश भारत वसुधा पर,
सूर-नर,मुनि सब नमन चढा़ते |
षड्ऋतु के सरगम में जीव सकल,
लोरी और मल्हार सुनाते ||
कमलानन्द इस धन्य धरा के ,
जैवधारी परिधान अनूपा |
विश्व अलौकिक अलंकृत यह ,
प्रकृति शक्ति है सौम्य रूपा ||
    आचार्य कमलेन्द्र नारायण चौबे
प्रेमनगर, आलमबाग, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)





'प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा'

प्रकृति जब आँचल लहरा दे,
हर शब्द काव्य का हो सीमित ।1।
क्या उपमा दें उस प्रकृति को,
जिस पर उपमाएँ अपरिमित ।2।
पंचतत्व से हुई सुसज्जीत,
प्रकृति से जीवन की सृष्टि  ।3।
सौम्य रूप,अमृत स्वरूप
करे नव चेतनता की वृष्टि ।4।
आग,हवा,पानी,धरती,आकाश
 से प्रकृती का विस्तार ।5।
निर्मित पंच महाभूतों से,
देती है सृष्टि को आधार ।6।
पंच रुपों से शिक्षित करती,
प्रकृति प्रथम गुरु स्वरूप ।7।
प्रकृति ने अपनी संतति को,
सींचा है ले मातृत्व रूप ।8।
मनोहारिणी,सौम्य स्वरूपा,
स्नेहमयी है प्रकृति श्रृंगार ।9।
देकर लक्ष्य वह खोलती,
नव सृजनता का विशाल द्वार ।10।
आओ करें जीवन्त लेखनी,
प्रकृति का सौन्दर्य गान लिखें ।11।
प्रकृति से ही नव शब्द बिन्दु चुन,
प्रकृति का सम्मान लिखें ।12।

                          "नमिता नाएक"
                         "बरगढ़(ओडिसा)"