बंदी जीवन भी क्या जीवन! ~ संगीता चौबे



ईश्वर का मूलतः संयोजित नियम,
पाया मानव ने, उन्मुक्त जीवन,
त्वरित वेदना, उत्सर्गित हुई,
अनुभव कर बेड़ियों की जकड़न ।
क्या इतना विशाल हुआ, विषाणु कण??
आह! बंदी जीवन भी क्या जीवन ..!!


निद्रा स्वप्न से हुई, रिक्त,
और मन पीड़ा से तिक्त,
किए उद्वेलित भावों के मंथन ने,
चक्षु, अश्रु से सिक्त ।
जीवन की सारगर्भिता क्षुण्ण, हृदय कर उठा क्रंदन ।
आह! बंदी जीवन भी क्या जीवन ..!!


मन तो करे, स्पर्श गगन,
तन चाहे, संग करना विचरण,
किन्तु अनुशासन व सुरक्षा की,
हुई सीमा - रेखा, प्रत्युत्पन्न ।
तन छिन्न, मन खिन्न, जीवन बना स्वयं एक प्रश्न ।
आह! बंदी जीवन भी क्या जीवन ..!!!

नाम - संगीता चौबे
पता - ए बी रोड, इन्दौर
जिला - इन्दौर