Hindi Poem On Bachpan | बचपन पर 5 प्रसिद्ध कविता/बचपन पर उत्कृष्ट हिन्दी कविता

Hindi poem on bachpan
Bachpan par hindi kavita

बचपन-अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ

पचपन में बचपन की यादें,

करें मनस को तरल तरंगित,

चलचित्र भाँति मंडराते मानस,

दृश्य हृदय को करें उमंगित।


दायित्वहीन बचपन के वे दिन,

माटी में स्वाद चखा करते नित,

नीर-वृष्टि संचित गड्ढों में प्रिय,

कागज की नाव चलाते हर्षित।


शुचि राग-द्वेष से मुक्त भावमय,

मर्यादित आसक्ति-विहीन वह,

कालखण्ड बचपन अनुभूतिक,

नयन सजल कर जाता अब भी।


अपनत्व भाव, रसधार प्रेम उर,

मन-अनुरंजन,चारित्र्य-गठन की,

चारु पाठशाला सशक्त क्षितितल,

काश! लौट आए फिर बचपन।

अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.) 


बचपन-मोहम्मद अलीम बसना

अबोध बचपन का अल्हड़पन ,

नटखट चंचल फुर्तीला तन ।


विलक्षण प्रतिभा रूपक झलझल ,

बहा चक्षुनीर, रूठे पलपल |


मातु का अगाध प्रेम निश्छल,

हँसता रोता, बचपन चंचल ||


गुल्ली -डंडा ,कंचा ,धावन,

कागज कस्ती, अक्षरी बावन।


मिले भाई बहन मित्र छप्पन,

भुवन बना देते क्रीड़ागन ।।


बाल कहानी लोरी सुनते,

कुछ बाल प्लास्टिक थैली चुनते ||


नव परिधान मित्र स्कूल जाता,

देख उसका भी मन ललचाता |


शांत अछूता निरस जीवन,

लौटाए कोई उसका बचपन ।।

मोहम्मद अलीम बसना

महासमु़ंद, छत्तीसगढ़ 


 बचपन-उर्मिला पुरोहित

 निश्छल मन कोमल तन

नटखट प्यारा सा बचपन

कभी होती मीठी शरारत

कभी रूठ कर छिप जाना

कभी  जिद्द पर अड़ जाना

कभी गले का हार बन जाना

कभी अपना प्यार दिखाना

कभी होती हँसी ठिठोली

बचपन की है हमजोली

प्यारी  होती इनकी बोली

जैसे कोई हो एक पहेली

सुखद अनुभव हम पाते

घर आगंन खुशियाँ लाते

ऊँच-नीच को न ये जाने

सबको ये अपना माने

ईर्ष्या द्वेष से परे जीवन

ह्रदय इनका अति पावन

नटखट प्यारा सा बचपन। ।

उर्मिला पुरोहित
उदयपुर, राजस्थान


 बचपन- भार्गवी रविन्द्र

बाद अरसे के जब अपने आप को मैंने देखा आईने में

चुपके से एक परछाईं झांकने लगी यादों के झीने में।


आँखों के झील में एक बूँद मोती सा चमकता मिला

एक नन्हा चेहरा दरवाज़े पर मुस्कुराता खड़ा मिला।


मैंने जो हाथ मिलाकर पूछना चाहा उसका नाम,पता

मैं तुम्हारा बचपन हूँ कहकर हंसते हुए वो भाग निकला।


याद दिला गया गलियों में सजी दुकानें सपनों की

वो घर-आँगन जो बाँह फैलाएँ राह देखे अपनों की।


वो माटी के खिलौने,रेत के घरौंदे,वो काग़ज़ की नाव

पेड़ों से छनकर उतरती रेशमी धूप,वो बरगद की छाँव


कच्चे पक्के आम,अमरूद तोड़कर सरपट दौड़ लगाना

पोखर में जमकर नहाते हुए एक दूसरे की टाँग खींचना।


यादें दिल में ठहर जाती, दौर बन वक़्त गुज़र जाता

काश! ऐसा भी होता कभी..बचपन कहीं ठहर जाता।


मैं उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ता गया,दूर होता गया मुझसे बचपन

मगर,भूला न पाया कभी वो खिलौने,वो घर,वो गलियाँ,वो आँगन।

~ भार्गवी रविन्द्र
बंगलुरु, कर्नाटक 


बचपन- बीरेन्द्र सिंह राज

मनोहर,मनोरम,पल बचपन सलोना।

हँसता,गमकता घर का कोना-कोना।


सुखद,सुनहरा,मासूम बचपन सुहाना।

अमृत लगता ,माँ  के हाथों से खाना।


पापा के संग खेत- खलिहान जाना।

हली कल्लू चाचा को पानी पिलाना।


पीले-पीले सरसों से तितली भगाना। 

पकड़ना मछलियाँ,बारिश में नहाना।


माँ से बनाना नित,नया-नया बहाना।

दोस्तों के संग,छत पर पतंग उड़ाना।


जन्मदिन पर केक के लिए मचलना।

मिठाई,खिलौना,नये कपड़े पहनना।


सबसे बड़ी लगती,बचपन की हस्ती।

पानी पर  चलती ,कागज की कस्ती।


बचपन में विद्यालय,तिहाड़ कारावास।

माँ का प्यारा पल्लू,पांच तारा निवास।। 

 बीरेन्द्र सिंह राज
नोएडा, उत्तर प्रदेश



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