डॉ कविता सिन्हा की 5 उत्कृष्ट रचनायें / Top 5 Hindi Poems Of Dr Kavita Sinha- Hindi Kavy Kosh

 

Dr Kavita Sinha | Top 5 Hindi Poem

कल्पना- डॉ. कविता सिन्हा

जख्म जरा गहरा है,

दर्द-ए-दिल पर  पहरा है,

गम छुपाएं  किस  -किस  से,

तेरे महफिल  अभी सजी है,

पत्थर से दिल  रखे कुछ,

लोगो की यहाँ जमी है।

नफरत  के परत बनती,

करूणा भी दूर  बसी है।

क्षितिज पर मिलन की

अरमान सजाए बैठे है।

सुखद  स्मृतियों  में  खोई,

मानस पटल पर  कल्पना बनी,

पुरानी याद  दर्पण  रूपी जीवन  में, 

प्रकाशित प्रभाकर  होकर, कंचन  बन,

कुछ  लम्हे पीछे छोड़कर ,

अन्धकार  से प्रकाशित होकर, 

जीवन  को प्रभावपूर्ण  बनाती है 



सावन- डॉ. कविता सिन्हा


बरसे हैं मेध आज जमकर,

तूने प्रेम अब तक न बरसाया,

जब-तब चमक जाती है, बिजली सी,

यादें तुम्हारी,तेरी चंचल काया।

तडप रहे हैं, हम यहाँ पर,

तुम भी तडप रहे होंगे वहाँ पर,

दिल की चुभन कहती है आ जा

जाने कहाँ छिपे बैठे हो जा कर।

धरा -तर हो गयी,

शीतल पावन फुहारें पाकर,

आ जाओ,बरसा दो बादल,

खो जाऊँ तेरे प्यार को पाकर।

काले बादल, काली लटें जैसी,

तडपा जाती याद दिलाकर,

बादल बरसा,तुम मुस्काये, 

खुशी हुई, तुझको अपनाकर।

सोंधी महक,बदन की,तेरी,

सरसराहट तुम्हारे आने की,

झुम रहे मस्ती,में सब कुछ,

देते संदेशा,सावन केआने की।

टपक रही हैं बूदें ऐसी,

जैसे छेडे कोई तराना,

मुक्त पवन सी नाच रही मैं,

जीने का यह मिला बहाना ।



जीवन  के रंग- डॉ. कविता सिन्हा


मैं एक  बसंती रंग  हूं 

मै सभी के संग हूं। 

मेरा कोई  मजहब  नहीं, 

सभी धर्मो को अपनाई हूं। 

मेरा कोई  शत्रु नहीं, 

सभी बन्धुत्व को समेटी हूं। 

नजरो में गुलाबी  शाम लिए, 

मस्तियाँ  भर रजनी को समेटी हूं। 

सर्द  की धुप की ताजगी ले,

मन  तरंगों  में गुनगुनाती हूं। 

लताओं  का वृक्षों से गले मिलना,

तब  पुष्पित  हो अंगड़ाई  लेती हूं। 

प्रकृति के यौवनमय होने पर, 

खुद  को श्रृंगारित  करती हूं। 

जीवन  के हरेक  सफर को,

खुबसूरत  बना हर रंगों में  समाती हूं। 



उम्मीदों  के आशियां - डॉ. कविता सिन्हा


जब चहकती तुम्हारी मखमली आवाज। 

मदभरा शंमा में  कोई  गीत सुना रहा।

वक्त  का रफ्तार भीभागता रहा।

उम्र भी अपना पड़ाव पार कर  रहा।

दिल  ही दिल  में अश्क बहा रहा।

शाम-ए-वफा नज्म  गाता रहा।

तेरे चेहरे की खुशियां  देख ,

खुद में  जीने की तमन्ना तलाश  रहा।

है समय  काफी मुश्किल  की मगर, 

मैं जमाने से रिश्ता निभाना सीख रहा।

रस्मों  रिवाजों के दस्तूरी जंजीरो में,

जकडा पंक्षी  की तरह तडप रहा।

वफा करते तूफ़ान में  चिराग  जला,

उम्मीदों  के आशियां  सजाता रहा। 



नींद  की तलाश- डॉ. कविता सिन्हा


नींद तुम कहाँ  चली गई। 

बैचेन निगाहें तुम्हें  तलाश  रही।

रात  भर करवटे बदलती रही।

रूठना मत,अब सुलह  कर लो,

इंतजार  में निगाहें थक सी गई। 

कितने दौर गुजर गए अब तक, 

तुम्हारे आने की बेक़रारी  में, 

उनके याद  में  जागते हुए। 

तूफ़ानों  में  भी दीप जला कर, 

अरमानों  के गुल खिलाते रहें। 

जमाने से मिले जख्म  गहरे हुए,

अश्क को नज्म  में  छुपाते रहें। 

विवशता के समजस्य  में  डूबते रहें। 

तन्हाई  में  तेरे आगोश  की चाह लिए। 

वेबसी में  नैन अश्क बहाते रहें। 

नींद  तुम  कहाँ  चली गई। 

बैचेन  निगाहें  तुम्हें  तलाश  रही। 




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