अदम गोंडवी प्रसिद्ध हिन्दी कविता- न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से | Adam Gondvi Famous Hindi Poem- Na Mahlon Ki Bulandi Se Na Lafjon Ke Nageene se

 

अदम गोंडवी हिन्दी कविता | Adam Gondvi Hindi Poem

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से

तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से


कि अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है

उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से


अदब का आईना उन तंग गलियों से गुज़रता है

जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से


बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा

जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से


अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है

सँजो कर रक्खें 'धूमिल' की विरासत को क़रीने से


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