कृष्ण न आये/5 उत्कृष्ट हिन्दी कवितायें | Top 5 Hindi Poem On Krishna Na Aaye - Hindi Kavy Kosh

 



कृष्ण न आये- अनामिका सत्यांशु


कृष्ण न आये व्यथा रहे न,

पलट खड़ी हो वार कर।

दुर्गा बन या काली बन,

पर दुर्जन का संहार कर।।


बात अस्मिता की आयेगी,

अंगद बन कर अड़ना होगा।

बना रहे सम्मान-मान,

सीता सा धरा में गड़ना होगा।।


गड़ जाना और मर जाना

सिर को नहीं झुकाना पर।

शीश पे धरा उठायेगी तुमको,

चरणों में झुकेगा ये अंबर।।


चक्र की धार को कसना होगा,

चालें टेढ़ी चलना होगा।।

नीति से रण को विजित करना,

और स्वयं कृष्ण ही बनना होगा।।


कृष्ण न आये व्यथा रहे न,

पलट खड़ी हो वार कर।।

दुर्गा बन या काली बन,

पर दुर्जन का संहार कर।।


~ अनामिका सत्यांशु
लखनऊ, उत्तर प्रदेश 

कृष्ण न आये- मनोरमा शर्मा मनु


विश्व पटल पर कहीं नहीं है अनुशासन,

आज भी पैदा ले रहे हैं सर्वत्र दुशासन,

घुमाया जा रहा द्रोपदी को कर निर्वस्त्र,

शिथिल पड़ गए हैं अब सब अस्त्र-शस्त्र।


शासनाधिकारी धृतराष्ट्र बनकर बैठे हुए,

तुच्छ तृप्ति की प्राप्ति में हैं सब ऐंठे हुए,

तिमिर के प्रभाव में नहीं है कहीं ज्योति,

निर्वस्त्र द्रोपदी आँखों से बहा रही मोती।


मर्यादा की धरती हो गई मर्यादा विहीन,

आर्यावर्त देवभूमि पर प्रजा हुई नेत्रहीन,

भय नहीं किसी को कोई दंड विधान का,

मन भीष्म बन पढ़ रहा है पाठ ज्ञान का।


कलयुग की द्रौपदी सुनो समय की पुकार,

अपनी शक्ति स्वयं बनो दूर करो अंधकार,

कलयुग में तेरी रक्षा के लिए कृष्ण न आये,

अतः करो दानव वध हस्त सुदर्शन उठाये।


~ मनोरमा शर्मा मनु
हैदराबाद, तेलंगाना 

कृष्ण न आये- विनय मोहन शर्मा


कृष्ण नहीं आए

दृश्य वही, परिदृश्य वही

अन्तर केवल युग का है।

द्रुपद की वह राज सुता थी

यह भी कोई द्रुपद सुता है।

लाज लूटते हैं इसकी भी

कुछ कौरव -तनय बनकर।

वहां सभा भी मौन रही थी

देख रही जनता चुप हो कर।

पुकार रही यह सुता ईश को

बन कर कृष्ण चले आओ।

चीर बढ़ाया द्रुपद सुता का

आकर चीर बढ़ाओ।

लुटी लाज को लेकर वह

आज किधर को जाए।

पुकार रही रक्षा हित वह

लेकिन कृष्ण नहीं आए।


~ विनय मोहन शर्मा
अलवर, राजस्थान 


कृष्ण न आये- विभा गुप्ता'दीक्षा'


अद्य ग्राम में मध्य ग्राम में,

लज्जा का व्यापार।

किंचित भय नहिं व्याप्त सृष्टि में,

किस पथ गामी है संसार।

मातृस्वरूपा,शक्तिरूपिणी,

भगिनी, पुत्री है यह नार।

व्यथित नहीं पल भर भी कोई,

उजड़ा चमन बयार।

लोकलाज तज, कुंठित करते,

लज्जाशीला पर प्रहार।

वस्त्रगामिनी का हर वस्त्र,

करते गरिमा का संघार।

हे !गोपाल-नंदलाल कहां तुम?

अग्निसुता की यही पुकार।

इन पापी महिषी असुरों से,

मुक्त करो संसार।


विभा गुप्ता'दीक्षा'
प्रयागराज,उत्तरप्रदेश 

कृष्ण न आये- शीला द्विवेदी-"अक्षरा"


उद्विग्न गगन है कुपित धरा,प्रकृति का कण कण पूछ रहा।

नारी है आदिशक्ति तो फिर,क्यूँ सृष्टि रचयिता मौन रहा।


है सृजनकारिणी जग की तो,क्यूँ जग में वो लाचार हुई।

कलि दुःशासन के हाथों क्यूँ,इक द्रुपद सुता तिरस्कार हुई।


वो करुण पुकार हृदय क्रंदन,वो आत्म निवेदन सुना नहीं।

हे चीर बढाने वाले हरि,क्या तुम सृष्टि में रहे नहीं।


क्यूँ भीष्म, द्रोण,अरु कृपाचार्य,सत्ता के हाथों मौन रहे।

संरक्षण करते धर्म का तो,क्यूँ पाप पंकु से ग्रसित रहे।


हे कलयुग की नारी तुमको,न कृष्ण बचाने आयेंगे।

न सप्त सिन्धु के पार जीत,श्रीराम सिया को लायेंगे।


लो खड्ग हाथ में आज उठो,बन जाओ तुम दुर्गा काली।

अरि महिषासुर को मर्द करो,तुम स्वाभिमान की पी प्याली।


ममता से पूर्ण हृदय में तुम,विद्रोह ज्वाल को प्रकट करो।

कटि में सुत हस्त खड्ग लेकर,लक्ष्मी बाई बन कूच करो।


~ शीला द्विवेदी-'अक्षरा'
   उरई, उत्तर प्रदेश  



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