हिन्दी कविता कवि-एक हत्यारा |
कवि - एक हत्यारा
अपने मन के शोर
एवं पीड़ा को शब्दों द्वारा
कागज़ पर तो
बड़ी आसानी से उतार देते हैं ।
लेकिन क्या कभी सोचा है?
उस कोरे कागज़ के लिए
न जाने कितने ही
पेड़ों को हम हत्या कर देते हैं।
उन पर बसे
न जाने कितने ही पक्षियों
एवं जीव-जंतुओं के
आशियाने को तबाह कर देते हैं ।
क्या हमारी पीड़ाओं
एवं शोर के आगे उन पेड़ों, पक्षियों
एवं जीव-जंतुओं की
पीड़ा का कोई मोल नहीं ?
क्या उन पेड़ों को
काटते समय उन्हें दर्द नहीं होता ?
क्या वें पक्षियाँ
और वें जीव-जंतुएं अपने परिवार
एवं झुण्ड से नहीं बिछरते ?
जो दूसरों की पीड़ा को
ना समझ सके
और ना अनुभव कर सके
चाहो वो पीड़ा
किसी मनुष्य, जानवर, पक्षी
या किसी
पेड़-पौधों की ही क्यों न हो
ऐसे में क्या
हम एक कवि/लेखक कहलाने
योग्य हैं ?
अंकित श्रीवास्तव
जहनाबाद , बिहार
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