प्रेम -शमशेर बहादुर सिंह -हिन्दी काव्य कोश

द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मैं करता हूँ प्यार

रूप नहीं कुछ मेरे पास

फिर भी मैं करता हूँ प्यार

सांसारिक व्यवहार ज्ञान

फिर भी मैं करता हूँ प्यार

शक्ति यौवन पर अभिमान

फिर भी मैं करता हूँ प्यार

कुशल कलाविद् हूँ प्रवीण

फिर भी मैं करता हूँ प्यार

केवल भावुक दीन मलीन

फिर भी मैं करता हूँ प्यार।

मैंने कितने किए उपाय

किंतु मुझसे छूटा प्रेम

सब विधि था जीवन असहाय

किंतु मुझसे छूटा प्रेम

सब कुछ साधा, जप, तप, मौन,

किंतु मुझसे छूटा प्रेम

कितना घूमा देश-विदेश

किंतु मुझसे छूटा प्रेम

तरह-तरह के बदले वेष

किंतु मुझसे छूटा प्रेम।

उसकी बात-बात में छल है

फिर भी है वह अनुपम सुंदर

माया ही उसका संबल है

फिर भी है वह अनुपम सुंदर

वह वियोग का बादल मेरा

फिर भी है वह अनुपम सुंदर

छाया जीवन आकुल मेरा

फिर भी है वह अनुपम सुंदर

केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी

फिर भी है वह अनुपम सुंदर

वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी

फिर भी है वह अनुपम सुंदर।


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