हिन्दी काव्य कोश~ सुरभित-मुखरित पर्यावरण





" है सुरक्षित जिसके कारण मानवता का आवरण। 
     सदा संरक्षित अपना "सुरभित-मुखरित पर्यावरण।।"

जल,वायु और पृथ्वी तीनों प्रकृति के अंग हैं,
मानव के कल्याण में हर पल रहते उसके संग हैं।
इनका संरक्षण करना ही जीवन का हो आचरण।।
सदा रखें संरक्षित अपना"सुरभित-मुखरित पर्यावरण।"

भोग-विलास ने हर मानव को ऐसा अपना दास किया,
चंद स्वार्थ के बस में होकर पर्यावरण विनाश किया।
अपने ही हाथों से अपनी मृत्यु का कर रहा वरण।
सदा रखें संरक्षित अपना"सुरभित-मुखरित पर्यावरण।"

बड़े-बड़े उद्योग लगा विष धुआं हवा में घोल दिया,
उनका दूषित गंदा पानी सब नदियों में खोल दिया।
प्रकृति की सुन्दरता का कर डाला है चीर हरण।।
सदा रखें संरक्षित अपना"सुरभित-मुखरित पर्यावरण।"

पर्यावरण बचेगा तब ही हम सब भी बचपायेंगे,
वरना ऐसे कई कोरोना बार-बार आयेंगे।
पर्यावरण बचाने हमको लेना होगा मिलकर प्रण।
सदा रखें संरक्षित अपना"सुरभित-मुखरित पर्यावरण।"

मिथ्या ज्ञान दंभ के कारण पर्यावरण से खेल रहा।
उसका ही परिणाम विश्व में हर मानव ये झेल रहा है।
अब भी न हम संभल सके तो होगा सिर मृत्यु का चरण।।
सदा रखें संरक्षित अपना "सुरभित-मुखरित पर्यावरण।"

         कुंज बिहारी यादव
       नरसिंहपुर(मध्य प्रदेश)
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रम्य, सुरम्य हरित धरती
  मनभावन वंदन करता हूँ, ।१।
पक्षी, पौधे, जीवन-धन को
  सुफलित, आह्लादित होता हूँ, ।२।
थक जाता हूँ तो गोद सदा
  आनंद वशी हो सोता हूँ; ।३।
मुझको क्यों हो चिंता-दुविधा
  जब माँ के आंचल होता हूँ। ।४।

सुर-ताल बहे हरियाली और
  कण-कण से एक संगीत झरे, ।५।
सुरभित मनभावन रूप लिए
  सम-नेह लुटाये अंक भरे, ।६।
'पंच-सुधा' मिल जीवन दे
  इन पांचों को वरदान धरो; ।७।
श्वासों का मोल चुकाना हो
  पाँचों का मूल्य महान धरो। ।८।

स्वच्छ रखो पृथ्वी, अम्बर,
  वायु, वारि सब सुंदर हो, ।९।
जन-जीवन सुखमय रूप लिए
  सह-जीवन अंतिम मंतर हो, ।१०।
पुरखों को सदैव रही दृष्टि
  पूजन का रखा इनपे आवरण, ।११।
पीढ़ी नित् आशीष पाए सदा
  सुरभित-मुखरित पर्यावरण। ।१२।

प्रकृति मुखरित संकेत करे
  अब दोहन के पट बंद करो, ।१३।
उर्वर, पोषक, सुफला रूपक
  छवि पोषो और पसंद करो, ।१४।
प्रकृति के रुष्ट स्वरूप को ना
  तुम कर्म से आमंत्रित कर दो; ।१५।
विध्वंस के ना तुम कारक बनो
  शरणागत हो रक्षा कर दो। ।१६।

प्रकृति कहती है मानव से
  आओ साथ चलें पूरक बन के,।१७।
कुछ हमसे लो कुछ हमको दो
  विश्वास रखो प्रकृति धन पर, ।१८।
काल को आमंत्रण देता
  मानव का स्वार्थी आचरण; ।१९।
अपने दायित्व का बोध करें
  "उपवन" रक्षित हो पर्यावरण। ।२०।
   
- शैलेष पाण्डेय 'उपवन'
     प्रयागराज, उ.प्र.

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सुरभित मुखरित पर्यावरण, प्रदूषण का करें हरण 
तरू फूले फल से लदकाए, प्राणी हित कुछ कर्म कमाए
हम भी उन का कर्ज चुकाएं , करें धरा पर वृक्षारोपण           
सुरभित मुखरित पर्यावरण 
सूर्य चंद्र जब समत्व भाव ले ,धरती को आलोकित करते
तब हम क्यों इस भेदभाव से ,अपने अंतरतम को भरते    
विषमता  का  करें क्षरण  ,सुरभित  मुखरित  पर्यावरण 
मनुज  पाप  जब  करना  छोडे़,तब  गंदी  ना  गंगा  होवे 
मोक्ष दायिनी कल कल बहती ,धरा गर्भ में अमृत भरती       
भागीरथी का करें अनुसरण ,सुरभित मुखरित पर्यावरण    
पंचतत्व  से  निर्मित  काया, इन  तत्वों  का भाव न पाया 
जल की निर्मलता अपनाओ ,अंबर सी  विशालता पाओ 
 वायु  सम  सबको  सहलाकर ,करो धरा सा धैर्य धारण
          सुरभित मुखरित पर्यावरण 
इस  पथ  के  हम पथिक बनें ,तो  प्रकृति  आनंदित  होगी
अपने स्वच्छ स्वरूप से हमको ,स्वस्थ सुफलित जीवन देगी 
संबंधों  में  हम  रस घोलें ,प्रकृति  सम  करें आचरण 
तो  सुगंधित हो  वातावरण, सुरभित  मुखरित पर्यावरण |
           
      - डॉ. मंजू स्वाति
     आगरा, उत्तर प्रदेश
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विटप विराजितशौर्य-वरण,
जीव-जन्तु ,स्वच्छंद विचरण!
सुरभित-सौरभ,सुरभित-उपवन,
सुरभित-मुखरित पर्यावरण!!


खग-विहंग कलरव मनहरण,
पपीहा का गान ,मयूर रमण!
 हरियाली चुनरिया मधुमित नयन,
सुरभित- मुखरित पर्यावरण!!

मेघदूत विराजित गिरिराज गुंजन,
निर्झर-झरने रिसता चित्रण!
सरिता-सिंधु पुलकित मिलन ,
सुरभित-मुखरित पर्यावरण!!

सप्तरंगी धनक सिहरन अगन,
तितली पुलकन इक अपनापन!
सावन मुरलिया मनन अंकन ,
सुरभित-मुखरित पर्यावरण!!

~सुरभि

आलीराजपुर मध्यप्रदेश
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युग-कषाय ' मनुज  का  मन '
अब करने लगा 'आत्मशोधन' !
' प्रकृति ' निखर उठी  है देखो,
नहीं   दृष्टिगत पूर्व   सा  'रण' ! 
'विषाणु-रहित' जग करने का है प्रण!
सुरभित-मुखरित  पर्यावरण !! 1!!
न  धूप   तेज   न   पवन   तेज   है,
जब-तब  'ग्रीष्म'  में वर्षा हो गई है!
'झंझावात ' ने बदला अपनी राहों को-
उसको ' संसार ' से  ममता हो गई है!
मानव के भी हैं सीमित चरण !
सुरभित - मुखरित पर्यावरण !!2!!
तारा - मण्डित  नभ  निर्मल है,
चांदनी  रात , धवल   बादल है!
पंक्ति -बद्ध  ' पक्षी '  हैं  उड़ते-
कितना  मनोहर ' चलबल ' है !
'मन'  करे  सभी का  अनुसरण !
सुरभित - मुखरित पर्यावरण !!3!!
मत्स्य  प्रसन्न  हैं  जल जीवन में,
पशु  प्रसन्न  हैं  अपने  बन  में !
चमेली खिली , शेफाली झरती-
तुलसी छतराई   आंगन   में  !
प्रमुदित प्रत्येक है अभ्यारण्य!
सुरभित - मुखरित पर्यावरण !!4!!

     ~ बृजेश आनन्द राय 
           जौनपुर,उ.प्र.