नाम- कर्मवीर सिरोवाउपनाम- क्रशजन्मतिथि- 25 मई 1991व्यवसाय- अध्यापकशिक्षा- बी.एस.टी.सी, बी.एड, एम.ए( अंग्रेजी)प्रारंभिक रचना काल- 2009पता- ग्राम पोस्ट- बुडाना, जिला- झुंझुनूं, राजस्थानपिन कोड- 333023मोबाइल नम्बर- 9929616103संक्षिप्त परिचयकर्मवीर सिरोवा जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं ज़िले के समीप बुडाना गाँव में हुआ। वे किशोरावस्था से ही तुकबंदी लगाकर दो चार पंक्तियाँ लिख लिया करते थे। पढ़ाई में औसत दर्ज़े का विद्यार्थी हुआ करते थे। कक्षा 10 गाँव के ही सरकारी विद्यालय में द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की, उसी साल विद्यालय में अनुशासन पर पुरस्कार मिला, जीवन को नया आयाम मिला, प्रेरणा मिली।कॉलेज में आने के बाद कुछ लिखना शुरू किया। पहली रचना नज़रिया नाम से लिखी तो बड़े भाई डॉ अनिल सिरोवा और उसके साथियों ने ख़ूब सराहा, उसके बाद और प्रेरणा मिली। 2012 में सेठ मोतीलाल टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में द्विवर्षीय शिक्षण प्रशिक्षण दाख़िला मिला, वहाँ बहुत सारे मित्रों ने उनकी टूटी फूटी पंक्तियों को ख़ूब प्रेम दिया और इसके साथ ही उनका साहित्यिक मोह बढ़ने लगा।सिरोवा जी ज़्यादातर शृंगार रस पर लिखते है। कर्मवीर जी को 2019 में सरकारी क्षेत्र में एक अध्यापक के रूप में सेवा करने का मौका मिला तब से निरन्तर सेवा में हैं।
रचनाएँ
कविताएँ
रचनाएँ जोड़ी जा रही हैं ..
कहानियाँ
रचनाएँ जोड़ी जा रही हैं ..
गजलें
रचनाएँ जोड़ी जा रही हैं ..
1 टिप्पणियाँ
कविता- बचपन बेच दिया
जवाब देंहटाएं-----------------------------------
मोबाईल के जौबन को बचपन बेच दिया,
मैदान खाली, बल्ला कहाँ हैं तुम भूल गए।।
स्कूल से घर आते ही छत दौड़कर जाते थे,
पतंग बनाना तो दूर, तुम उड़ाना भूल गए।।
इतवार के मुंतजिर हम सोमवार से होते थे,
छुट्टी के दिन भी क्यूँ तुम खेलना भूल गए।।
केशियो घड़ी की चूं चूं से खुश हो जाते थे,
क्यूँकर हालात बने कि तुम हँसना भूल गए।।
कंचे, पिठ्ठू, लंगड़ी टाँग, छुपन छुपाई,
गिल्ली डंडा मजेदार खेल तुम क्यूँ भूल गए।।
हरगिज़ ना मिलेंगी लड़कपन की ये दौलत,
कर्मवीर लूटा चूका, तुम कमाना भूल गए।।
कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)
इस विषय पर रचनायें लिखें