भारतीय रेल की भूमिका/ऋषीपल सिंह चौधरी

 


आज पूरा भारतवर्ष आजादी का अमृत महोत्सव के रंग में सरोबार हैं, देश भक्ति के रंग में पूर्णरूपेण रंग चुका हैं। चहुऔर मानो भारत में एक बसंती रंग की लहर सी आ गई हो हर एक देशवासी खुद को एक राष्ट्रवाद की इस बेला में अपनी तरफ से जो बन पड़ रहा है, उस तरीके से इस आजादी के अमृत महोत्सव रूपी महायज्ञ में अपनी आहुती देने को आतुर दिख रहा हैं।

सच मानो आज मेरे जीवन के पचास बसंत बीतने को हैं लेकिन इस तरह की देश भक्ति की भावना और हमारे आजादी के मस्तानों और शहीदों के लिए लोगो का जज्बा पहली बार महसूस कर रहा हूँ। देश की हवा और फिंजा कुछ बदली-बदली सी लग रहीं हैं।देश के युवाओं को देश के प्रति इस तरह समर्पित होते हुए देखना अपने आप में बहुत ही सुखद लगता हैं, क्योकि यही वो पीढ़ी हैं जिनके हाथों में आने वाले वक्त में देश की बागडोर होगी और जब सही दिशा में युवा जा रहा हो तो दिल को बडा सुकून मिलता है। 

रेल को देश की धड़कन कहा जाता हैं, रेल चलती हैं तो देश चलता हैं।रेल की प्रगति किसी भी देश के विकास की धुरी कही जाती हैं। या यो कहें कि रेल का पहिया जितनी तेजी से घूमेंगा वह देश उतनी ही तेजी से प्रगति पथ पर अग्रसर होगा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

भारतीय इतिहास का वो स्वर्णिम दिन कैसे भुलाया जा सकता हैं जब बंबई में 1853 को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दोपहर तीन बजकर पेंतीस मिनट पर 21 तोपों की सलामी ले बोरिबंदर से ठाणे के बीच पहली बार 14 डिब्बों की एक ट्रेन एक नव-योवना की भांति रवाना हुई और इस ट्रेन के अनुगामी तीन इंजन सिंध, सुल्तान और साहब थे।तब से निरंतर आज तक ये भारतीय रेल न कभी रुकी और न थकी बस अपने लक्ष्य पथ पर अग्रसर हैं।  

इस रेल ने आजादी के पूर्व का समय भी देखा हैं और आजादी पश्चात भारत को प्रगति पथ ले जाने हेतु अनुगामी भी ये रेल रही है। वहीं यही रेल आज आजादी के अमृत महोत्सव पर्व की साक्षी बन रही हैं और हर एक भारतीय रेलकर्मी इस महोत्सव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। 

सभी जानते हैं कि भारतीय रेल ने स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।वर्ष- 1941 में जब सुभाष चन्द्र बॉस अपने घर मे नजरबंद थे उन्हे किसी तरह इस केद-खाने से निकल कर आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता सुनिचित करनी थी तब यही रेल उस समय उन पलों की साक्षी बनी थी, जब ये महनायक गोमो स्टेशन से दिल्ली-कालका मेल में एक मुश्लिम का भेष धर, घर से निकल पड़े थे और ऐसे निकले की फिर अपने परिवार वालों से कभी नहीं मिल नहीं पाये, क्योकि आजादी के परवानों के लिए देश पहले था।

इसी तरह एक बाल्यावस्था में जब बच्चा खेलना कूदना सीखता हैं तब इस भारतीय रेल को तेरह साल की उम्र के आजादी के दीवाने भगत सिंह से रूबरू होने का मौका मिला जब वे लाहोर से कलकत्ता के लिए रवाना हुये। 

सर्व विदित हैं कि जब साउन्ड्रर्स की हत्या के बाद भगत सिंह और राजगुरु, साहब और नोकर का रूप धर लाहोर स्टेशन से कलकत्ता पहुंचे थे तब इस रेल ने अपनी आंखो से 

उस महनायक के द्वारा अंग्रेज़ो को अपने हुनर से छ्लाते हुए देखा था। 

इस भारतीय रेल की दास्तान यहीं पुरी नहीं होती, अगर कंकोरी कांड का जिक्र न किया जाए तो रेल की आजादी में सहभागिता दर्शाने में थोड़ी कंजूसी सी लगेगी क्योंकि भारत के स्वाधीनता आंदोलन की अहम कड़ी काकोरी कांड को देखा जाता हैं।इस काकोरी कांड ट्रेन लूटने की घटना की गवाह भारतीय रेल रही हैं जहां से देश की आजादी की सही मायने में नीव पड़ी थी। इस घटना ने क्रांतिकारियों में जोश भरने का काम किया था। 

भारतीय रेल ने केवल आजादी के दीवानों की दीवानगी ही नहीं देखि बल्कि उस त्रासदी को भी झेला हैं जब इसी रेल पर आजादी के बाद विभाजन के समय लाखों लोग सवार हो सीमा पार गए थे।भारतीय रेल उस समय की अभूतपूर्व हिंसा और क्रूरता की भी साक्षी रहीं हैं।इस तरह भारतीय रेल ने सुख में दुख में हर भारतीय के साथ भारतीयता निभाई हैं वो भी बिना भेद-भाव के।  

भारतीय रेल ने जब से इस सर जमीन पर चलना सीखा हैं तब से इस देश की सेवा में लगी हुई है, आजादी से पहले इसकी भूमिका स्वतन्त्रता सेनानियों को उनके लक्ष्य प्राप्ति में धूरी बनाना रही तो आजादी पश्चात इस देश के विकास की रीड बन देश को उन्नति की ओर ले जाने का कार्य कर रही हैं। अगर कोई रेल को मात्र “लोह पथ गामिनी” मान बेठे तो ये उसकी केवल सकीर्ण मांसकिता का परिचायक ही होगा।रेल तो अपने आप में देश की जीवंत जीवन-रेखा हैं जिसने 1883 से आज 2022 तक का लंबा सफर तय किया हैं वो भी बिना थके।रेल ने अपनी इस माहन यात्रा में देशभक्तों के राष्ट्रप्रेम को भी देखा हैं और विभाजन के मर्म को भी सहा हैं।

भारतीय रेल इतना लंबा सफर तय कर आज आजादी के 76वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हैं और इस आजादी के पर्व को एक अमृत महोत्सव के रूप में मना रहीं हैं और क्यो न मनाए ? इस रेल की गोदी में बेठ कर ही तो आजादी के दिवानों का रेला चला था आजादी को पाने। आज रेल उन सभी पलों को देशवासियों के संग सांझा कर रहीं हैं। इसके लिए रेल मंत्रालय ने 'सहानुभूति की भावना' को बढ़ाने के लिए देश की 13 अलग-अलग भाषाओं में बड़े ही सुरीली तान के साथ गीत को संजोया हैं।यह गीत भारतीय रेलवे की उपलब्धियों, विकास और एकीकरण को दर्शाता हैं, इसमें देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों के साथ-साथ रेलवे में किए नव-निर्माण कार्यों की झलक भी मिलती हैं।आजादी का अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में यह गीत विविधता में एकता का प्रतिनिधित्व करता है।

जब उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक एक गीत एक ही सूर और ताल मे रेल-कर्मी और यहाँ तक की हमारे आदरणीय रेलमंत्री श्री अश्विनी वैष्णव और रेल अधिकारीगण भी गाते नजर आए तो लगा मानों पूरा देश एक हो पुष्प-माला रूपी एकता के सूत्र में बन्ध गया हो। इस गाने का यह नया संस्करण न केवल रेल कर्मचारियों को बल्कि पूरे देश को भी प्रेरित करेगा। बल्कि यह गीत आने वाली पीढिय़ों के लिए भी राष्टीय एकता का प्रेरणा श्रोत बनेगा। 

आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत माननीय प्रधानमंत्री मोदी के इन वाक्यों से होती है, जिसमें वे कहते हैं कि रेलवे देश को विकास की गति प्रदान करेगा और भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य की एक झलक पेश करेगा. 

भारत सरकार ने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए “आजादी का अमृत महोत्सव” अभियान के तहत अब तक लगभग सात हजार कार्यक्रम आयोजित किए जाने घोषणा की हैं। 15 अगस्त 1947 को भारत, ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ था। आजादी के 75 साल का ये जश्न 12 मार्च 2021 से शुरू हो चुका है जो 75 सप्ताह तक चलेगा। जिसका मूलमंत्र भारतीय जनमानस के मध्य एक सहयोगात्मक तालमेल बनाने का प्रयास हैं एवं नेताजी सुभाष चंद्र बोस नीत आजाद हिन्द फौज जैसे सैनिकों और अनाम नायकों की जीवनी से लोगों को अवगत कराना हैं।

इस कड़ी में भारतीय रेल को भारत सरकार ने महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी हैं जिसे रेल बखूबी अंजाम दे रही हैं। इसी कड़ी में जोधपुर मण्डल गुमनाम और अंजान स्वतन्त्रता सेनानियों को उनकी सही पहचान दिलाने के लिए एक डोक्यूमेंटरी का प्रसारण मण्डल के स्टेशनों पर चलित टेलीविजनों के माध्यम से किया, जिससे रेल में यात्रा करने वाले लोग इनके बारे में जान सके और इनके संघर्षमयी जीवन से प्रेरणा ले सकें। 

भारतीय रेल ने अभी एक “सेल्फ़ी विद डौटर” के तहत अभियान चलाया सच मानों बेटियों को अपने माता-पिता के संग यों मुस्कराते और खिलखिलाते देख मन प्रफुलित हो गया।ये इस आजादी के अमृत महोत्सव के 75वें की बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा चाहिए क्योकि ये नारी के सशक्तिकरण की पहल है और बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के संग बेटियों के मान रखने को प्रेरित करने वाली पहल हैं। 

भारतीय रेककर्मी इस आजादी के अमृत महोतस्व के महाकुम्भ मे विभिन तरीकों से जिसमें नाट्य-कला, कविता-काव्य, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी एवं अन्य क्रिया-कलापों के माध्यम से सहभागिता दे रहा हैं।भारतीय रेल ने हमेशा देश के प्रति अपने समर्पण को दर्शाया हैं एवं जब कभी भी देश ने किसी प्रयोजन हेतू भारतीय रेल का आवाहन किया हैं तो भारतीय रेल ही नहीं वरन रेल का एक-एक कर्मी कभी पीछे नहीं रहा बल्कि हमेशा एक अग्रज की भांति अग्रिम पंक्ति में रहा हैं और अपने देश की आन और शान हेतु अपने प्राण न्योछावर करने में पीछे नहीं रहा हैं।इस तरह भारतीय रेल ने अपने जीवन-रेखा होने के कथन को सार्थक किया हैं।